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सलाखों में क़फ़स के गर लगा ज़र(८२ )

(1222 1222 122 )
सलाखों में क़फ़स के गर लगा ज़र
रहेंगे क्या उसी में ज़िंदगी भर ?
**
किसी की ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है
अगर ता-उम्र उसका ख़म रहे सर ?
**
तुम्हारी ज़िंदगी से कौन खेले
किसानों ख़ुदक़ुशी की रह दिखा कर ?
**
सियासत के मिलेंगे ख़ूब मौक़े
ज़रा हालात को होने दो बेहतर
**
तलातुम आजकल ख़बरों के आते
भरोसा कीजिए मत हर ख़बर पर
**
महामारी सुबूत अब दे रही है
कि जा महफूज़ सबसे आपका घर 
**
रखें सब ध्यान ये कोविड न देखे
अमीर-ओ-मुफ़लिस-ओ-दरवेश का दर
**
निज़ामत का ज़रूरी साथ देना
खड़ा मत कीजिए कोई बवंडर
**
'तुरंत ' अब तक न देखा ज़िंदगी में
कभी ऐसा बशर का मौत से डर
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
मौलिक व अप्रकाशित

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