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50 अशआर के साथ मेरी जिंदगी की सबसे लम्बी ग़ज़ल ।

2122 2122 212

तू न मेरा हो सका तो क्या हुआ ।
हो गया है फिर जुदा तो क्या हुआ ।।

हम सफ़र था जिंदगी का वो मिरे ।
बस यहीं तक चल सका तो क्या हुआ।।

मैकदों की वो फ़िजा भी खो गई ।
वक्त पर वो चल दिया तो क्या हुआ ।।

फिर यकीं का खून कर के वह गयी ।
दर्द दिल का कह लिया तो क्या हुआ।।

सुर्ख लब पे रात भर जो हुस्न था ।
तिश्नगी में बह गया तो क्या हुआ ।।

डर गया इंसान अपनी मौत से ।
खो गया वो हौसला तो क्या हुआ ।।

फिर हक़ीक़त खुल गयी चेहरे से है ।
हो गयी तू बेवफा तो क्या हुआ ।।

चन्द मिसरे थे ग़ज़ल में दर्द के ।
उम्र भर पढ़ता रहा तो क्या हुआ ।।

थी बहुत चर्चा मिजाजे इश्क़ की ।
हो गई हम पर फ़िदा तो क्या हुआ ।।

आसुओं में फिर बहे हैं हौसले ।
वह नही कुछ मानता तो क्या हुआ ।।

खर्च हो जाती है अक्सर जिंदगी ।
है नहीं हासिल नफा तो क्या हुआ।।

रेत पर था वो घरौंदा भी बना ।
गर लहर से वह मिटा तो क्या हुआ ।।

था बहुत अंजाम से वह बेखबर ।
घर नया उसका बिका तो क्या हुआ।।

जर्द पत्तों की तरह वह गिर गया ।
थी बड़ी हल्की हवा तो क्या हुआ ।।

ढह गयी दिल की इमारत शान से ।
नाम था लिक्खा हुआ तो क्या हुआ।।

कुछ दुआएं माँ की उसके साथ थीं ।
कुछ उसे तोहफ़ा मिला तो क्या हुआ ।।

भूंख से बच्चे ने तोडा दम यहाँ ।
दूध शंकर पर चढ़ा तो क्या हुआ ।।

उम्र भर तरसा जो रोटी के लिए ।
लाश पर चंदा हुआ तो क्या हुआ ।।

हैं बहुत हाजी नगर में आज भी ।
है गरीबो से जफ़ा तो क्या हुआ ।।

पी गया है वह समन्दर उम्र तक ।
अब सड़क पर आ गया तो क्या हुआ ।।

जीत जाएगा वही शातिर यहाँ ।
है रगों में भ्रष्टता तो क्या हुआ ।।

जेब अपनी गर्म होनी चाहिए ।
रुपया है गैर का तो क्या हुआ ।।

लुट रहा है मुल्क वर्षो से यही ।
अब कोई लड़ने चला तो क्या हुआ ।।

फिर बदायूं और यमुना वे मिले ।
है यही उसकी अदा तो क्या हुआ ।।

क्यों उसे खुजली हुई कानून से ।
नोट आया गर नया तो क्या हुआ ।।

है इलेक्शन से उसे शिकवा बहुत ।
धन नही काला बचा तो क्या हुआ ।।

बुन रहें हैं साजिशें सब जात की ।
वह तरक्की मांगता तो क्या हुआ ।।

आ गई जो बज्म में उल्फत नई ।
गर कोई दिल टूटता तो क्या हुआ ।।

हाँ पता मालूम था घर का उसे ।
खत नहीं कोई लिखा तो क्या हुआ ।।

बेबसी का लुत्फ़ सब लेते रहे ।
सिर्फ वो मुझको पढ़ा तो क्या हुआ ।।

आईने से हर हक़ीक़त जानकर ।
रात भर रोता रहा तो क्या हुआ ।।

वह रिहाई बाँटती थी इश्क़ की ।
हो गया तू भी रिहा तो क्या हुआ ।।

बेखुदी में डूब जाने के लिए ।
दिल मेरा तुझसे मिला तो क्या हुआ ।।

बिन हुनर वह आग के दरिया में है ।
फिर मुहब्बत में जला तो क्या हुआ ।।

था कहाँ वह इश्क़ के काबिल कभी ।
अक्ल पर पत्थर पड़ा तो क्या हुआ ।।

इस ताल्लुक़ का भी गहरा सा असर ।
बोझ अब लगने लगा तो क्या हुआ ।।

डस गयी नागन हो जिसके जिस्म को ।
फिर भी वो हँसता मिला तो क्या हुआ ।।

यह तबस्सुम है तेरा जालिम बहुत ।
मैं सलामत बच गया तो क्या हुआ ।।

फिर हवा से क्यों दुपट्टा उड़ गया ।
साजिशों की थी अदा तो क्या हुआ ।।

चाँद शरमाया हुआ है आजकल ।
इश्क़ की अर्जी दिया तो क्या हुआ ।।

जुर्म है सच बोलना यारों यहां ।
झूठ पर पर्दा किया तो हुआ ।।

कत्ल खानो से तेरा था वास्ता ।
बन गया मकतूल सा तो क्या हुआ ।।

थी तरन्नुम में पढ़ी उसने गजल ।
दिल उसी पे आ गया तो क्या हुआ ।।

शक की ख़ातिर लुट गई इज्जत सभी ।
आदमी ठहरा भला तो क्या हुआ ।।

है बहुत लाचार यह इंसान भी ।
जिस्म का सौदा किया तो क्या हुआ ।।

हारता पोरस सिकन्दर से यहां ।
वक्त से शिकवा गिला तो क्या हुआ ।।

हुस्न की तारीफ लिख आई कलम।
हो गई हमसे खता तो क्या हुआ ।।

तुम दगा दोगे न ये उम्मीद थी।
हो गया कुछ हादसा तो क्या हुआ ।।

इस सुखनवर में नए आलिम मिले ।
मैं नहीं इसमें ढला तो क्या हुआ ।।

ले गई दिल को हरम से छीनकर ।
थी मिली पहली दफ़ा तो क्या हुआ ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on December 27, 2016 at 1:24am
आ0 मिथिलेश साहब आपकी बात से सहमत हूँ । आपका सुझाव अति महत्वपूर्ण है ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 27, 2016 at 1:23am
आ0 कबीर सर सादर नमन । अलिफ़ काफ़िया पर लिखना आसान है मैं आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ । बहुत ही दिलचस्प वाकया से आपने रूबरू कराया अपनी हसी नही रोक सका । आपने पूरी ग़ज़ल पढ़ी तहे दिल से आभारी हूँ । मैं कमियो को ठीक कर लूँगा । सादर नमन ।
Comment by Samar kabeer on December 26, 2016 at 9:51pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का ख़ूब अभ्यास हो रहा है ख़ुशी की बात है,इस 50 शैर की ग़ज़ल के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
शैर नम्बर 5,12,14,38,41तक़ाबुल-ए-रदीफ़ेन दोष के शिकार हैं ।
शैर नम्बर 22 का सानी मिसरा लय में नहीं है ।
शैर नम्बर 28 ऐब-ए-तनाफ़ुर का शिकार है 'बज़्म में'देखियेगा ।
ये बात सही है कि उर्दू शाइरी में ग़ज़ल के अशआर की तादाद पर कोई पाबंदी नहीं लगाई है,लेकिन ये बात ध्यान देने योग्य है कि अगर आदमी ख़ूराक से ज़ियादा खायेगा तो बदहज़्मी तो निश्चित ही होगी,इसलिये बहतर यही है कि आप जनाब मिथिलेश वामनकर जी के सुझाव पर अमल करें,वैसे अलिफ़ का क़ाफ़िया रखने से की वजह से आपके अशआर की तादाद बढ़ी है,मज़ा तो जब है कि आप "चमन"यानी 'अन'का क़ाफ़िया लेकर 50 शैर कहें ।
तवील ग़ज़लों के बारे में पता चलता है कि 'फ़िराक़ गोरखपुरी'साहिब ने 150 शैरों पर मुश्तमिल ग़ज़लें ज़रूर कहीं हैं और उसकी ख़ूबी ये है कि वो अलिफ़ के आसान क़ाफिये में नहीं हैं ।यहां एक दिलचस्प वाक़ीआ साझा करता हूँ,मेरे एक मित्र जो उज्जैन से 25kmदेवास शह्र में रहते हैं,ने मुझे बताया कि हमारे यहां के एक शाइर ने 10हज़ार शैर की ग़ज़ल कही है और उनकी वो ग़ज़ल गिरिनिज बुक में दर्ज हो गई,मैंने उत्सुकता जताई कि भाई उन शाइर साहिब के हमें भी दर्शन करवा दो, कुछ दिन बाद वो उन शाइर साहिब को लेकर मेरे पास आगये,मैं बड़े तपाक से मिला,और उनसे पूछा,आप अपनी दस हज़ार वाली ग़ज़ल के कुछ अशआर सुनाइये, आपको हैरत होगी कि उन्हें उनका एक शैर भी याद नहीं आया,बड़ी देर बाद सोचने के बाद बोले वो ग़ज़ल मैंने 'ग़ालिब'की ज़मीन में कही है'या इलाही ये माजरा क्या है'और फिर एक मतला और एक शैर सुनाया,मतले में उन्होंने क़ाफिये लिए थे'सज़ा' और 'मज़ा'शैर में अलिफ़ का क़ाफ़िया था,मैंने कहा जनाब मतले में ईताए जली का दोष है,वो कहने लगे,ये क्या होता है,हा हा हा..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 2:52am

आदरणीय नवीन जी, अभ्यास के क्रम में बढ़िया अशआर कहें हैं आपने. अब इनमें से 7-8 बढ़िया अशआर लेकर  7-8 अशआर वाली एक मुकम्मल ग़ज़ल बना लीजिये. भर्ती के अशआर खुद-ब-ख़ुद हट जायेंगे. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 25, 2016 at 11:34pm
आ0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर सादर नमन । ग़ज़ल में शेरो की संख्या का निर्धारण अरूज़ शास्त्र में नहीं किया गया है । 3000 से ऊपर अशआर वाली ग़ज़ल भी इसी काल में लिखी गई है । 5 से 11 शेर प्रकाशक व् पाठक के की रुचियों के अनुसार वर्तमान समय में यह स्व निर्धारण ही है । अशआर की कोई सीमा नहीं । 30 से 40 अशआर मेरे जानने वाले कई शायरों ने अभी हाल में ही गज़लें लिखी हैं । "आसान अरूज़ शास्त्र" के पुस्तक के लेखक से मेरी अभी हाल में ही बात हुई है इस सम्बन्ध में । उनके मुताबिक भी कोई सीमा नही है । यही सोच कर मैंने लिख डाली ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2016 at 9:08pm

आ० नवीन जी . गजल के लिए वैसे तो कोइ शेर की सीमा तय नहीं है पर अमूमन 5 शेर से 11 शेर तक को ही मान्य  समझा गया है , गजल में शेर की संख्या  odd होती है  even नहीं . गजल अच्छी है . गुनीजन विस्तार में जायेंगे  ऐसी उम्मीद करता हूँ . सादर .  

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