For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें (4)

गंगा कहती रहीं-

‘और तुम्हारे ज्ञानी गण


केवल पारब्रह्म का रास्ता ही नहीं बताते


जिस पारब्रह्म का मन्दिर सिर्फ आत्मा होती है


धरती पर वे बताते हैं मन्दिर कहाँ बनेगा!


और यहां से उठ कर


किन दिलों को तोड़ना है


सब का हिसाब बना रखा है


सब व्यवस्था कर रखी है


मानव मल का बोझ मैं ढो लूंगी


पर मानवीय क्रूरता के इस अथाह मल को


वे मेरे पानियों में फेंक आते है!


वे सब ज्ञानी गण! इतना बड़ा अहम् संजोये रखते हैं


वे वाद का कम प्रचार करते हैं विवादों का ज्यादा....!


तुम परम आत्मा की खोज करते हो?


परमात्मा की खोज करने वालों की मदद करते हो?


सुनो, सुनते हो अगर!


परमात्मा तुम्हारे शब्दों के ढेर के नीचे दबा पड़ा है!


आत्मा तुम्हारे ज्ञान के नीचे सिसक रही है!


अपरिचित स्थान पर जमा वे लाखों भक्त


और तुम जानते हो


वह लाख़ों भक्तों की भगदड़!


वे सहकते प्राणि!


तुम लोग भूल जाते हो हर बार मैं नहीं भूलती.


मानव इतना तुच्छ है तुम्हारे लिये!


मानवता इतनी छोटी है क्या?


या तुम्हारे व्यक्तिगत अभिमान की

तुम्हारे स्वार्थमय अभियान की,

तुम्हारी सनक की जनून की


साधन मात्र!

गंगा अस्फुट वाणि में कहती रहीं.


ज्ञानी भावुक हो गया

 
कुछ बोलते न बना


वहां से उठ खड़ा हुआ

 
उसे डर लगने लगा कि वहां बैठा रहा

तो मानवीय मल का


या मानवीय मन का


अपने व्यक्तिगत स्वार्थमय मनन का


कोई हिस्सा छोड़ देगा गंगा जी में घुलने के लिये!


अभी तक कुछ धारा तो बची है-


साफ़! स्वच्छ! निर्मल!


अभी तक कुछ ज्ञान तो बचा है-


शुद्ध! शाश्वत! महान्तम सत्य!


मानवीय कुण्ठायों, मानवीय अहम्, और मानवीय मन से अप्रभावित!


जो प्रकृति के नियमों के अंत्रगत ही अंतस् में उतरा


और जैसा आया वैसा बांट दिया गया


तथ आगत!(जैसा आया)


तथागत!! (वैसा गया)


पर कुछ कहते न बना

 
वहां से उठ खड़ा हुआ


पहला प्रवचन दिया-


‘चलिये  शाश्वत गंगा की खोज करें’

‘चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें. महानुभाव!


 शाश्वत गंगा केवल पानी की गंगा नहीं


शुद्ध शाश्वत सत्य की गंगा

 
अजी... आप हरिद्वार के पास,


हरिद्वार इलाहाबाद संगम के पास


से हो कर चल दिये वापिस

अपने घर अपने कारोबार! 

आइये थोड़ा उत्तर दिषा में भटकें!


आइये शाश्वत गंगा की खोज करें!


कहां तक चलेंगे आप? देहरादून .... गंगोत्री या गौमुख तक!


गंगा जी का उदगम् स्थान!


अजी रुकिये मत. थोड़ा और उपर चलें!


गंगा जी यहां भी शाश्वत नहीं.


यहां भी बरतन डुबाते हैं लोग, हाथ भी.


थोड़ा और उपर चलें!


वहां यहां स्फेद बर्फ की चादर बिछी है!


स्फेद रुई सी बर्फ!


या बरखा की हलकी फुहार!


ज़रा चेहरे पर लगने दें!


चेहरे पर, देह पर, आत्मा पर!


ज़रा उपर आसमान की ओर देखें!


आसमान से उतरती वर्षा को देखें!


वहां से अविरल गंगा जी धारा बह रही है!


आसमान से उतरती गंगा!


स्वर्ग से धरती पर आती गंगा!


शुद्ध शाश्वत गंगा!


ऋग्-वैदिक व पौराणिक गंगा!


युगों युगों से बहती गंगा!


वह मानव मल रहित गंगा!


केवल अपना तेज लिये!


शायद कहेंगे आप-


यह स्वर्ग से आती गंगा!


अरे ...


वर्षा ही तो वह शुद्ध शाश्वत गंगा है


जिसका दर्शन जिस का अहसास


मैं अपने घर की मुण्डेर पर ...टैरेस पर,


आषाड़ ...श्रावण ....भादों में,


साल के बहुत सारे दिन, मैं करता हूं!


मेरे तो पास है यह गंगा!


वर्षा ही तो है यह गंगा


यह शुद्ध शाश्वत गंगा!


और मैं गंगा ....वह पवित्र नदी की खोज में

पवित्र नदी को मलिन करने


पहुंच जाता था, हरिद्वार ...काषी .....संगम!!!

(इति प्रथम अंक)

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 2, 2013 at 6:46pm

धन्यवाद सौरभ पांडेय जी, आप के स्वरूप में मुझे रचना का सही मूल्यांकनकर्ता मिला है। आप के विचारों व मार्गदर्शन का सम्मान करता हूँ। कृपया ऐसा सहयोग बनाये रखें। मैं तो प्रयतनरत हूँ कि रचना बहु -आयामी हो  और चर्चा भी। हृदय से बयान कर रहा हूँ लेकिन उचित आलोच्ना स्मालोचना का सम्मान करूंगा।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 2, 2013 at 5:35pm

गंगा की पौराणिकता से जो प्रतीक लिया गया है वह रोचक है. वायव्य अनुभूतियों को शब्द देना सहज नहीं होता कभी.

चर्चा को बड़े कैनवास पर लेजाने के लिए बधाई..

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 19, 2013 at 3:53pm

धन्यवाद ram shiromani pathak जी 

आप की टिपणी  का शुक्रिया 

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 19, 2013 at 3:52pm

धन्यवाद  Dr. Mohan जी

 आप की टिपणी  का शुक्रिया 

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 19, 2013 at 3:51pm

धन्यवाद Yogi Saraswat जी 

Comment by Yogi Saraswat on March 19, 2013 at 3:12pm

वर्षा ही तो वह शुद्ध शाश्वत गंगा है


जिसका दर्शन जिस का अहसास


मैं अपने घर की मुण्डेर पर ...टैरेस पर,


आषाड़ ...श्रावण ....भादों में,


साल के बहुत सारे दिन, मैं करता हूं!


मेरे तो पास है यह गंगा!


वर्षा ही तो है यह गंगा


यह शुद्ध शाश्वत गंगा!


और मैं गंगा ....वह पवित्र नदी की खोज में

पवित्र नदी को मलिन करने


पहुंच जाता था, हरिद्वार ...काषी .....संगम!!!

हमने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर अपने जीवन जो सँभालने वाली गंगा तक को भी नहीं बख्श ! आपने बहुत सुन्दर शब्दों में गंगा की व्यथा को लिखा है

Comment by मोहन बेगोवाल on March 18, 2013 at 10:57pm

डाक्टर साहिब, 

आप जी की रचना शक्ष्ताकार है,मनुष्य का खुद से  और उसकी भटकना से जिस के कारण बहुत से विकार पैदा हो रहें है, इस कविता में आप जी ने अंत में उन के हल की तरफ भी इशारा किया है -बहुत बहुत बधाई ऐसी रचना को पाठकों के समक्ष रखने के लिए 

Comment by ram shiromani pathak on March 18, 2013 at 10:19pm

adarneey badi gyanvardhak baat kah di apane.....hardik badhai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
8 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
8 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
9 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
9 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
15 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service