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देखूँ इसको मै शरमाऊं

मन का सारा हाल सुनाऊ

सांझ सवेरे इसको अर्पण

का सखी साजन ?ना सखि दर्पण

२.

चूमे होंठ लाल कर जाए

मन में शीतलता भर जाए 

उस पल रहे ना कोई भान

का सखि साजन ? ना सखि पान

3.

लम्बा है इतना जैसे ऊँट 

पहना नहीं है कोई सूट

तन के खड़ा है जैसे बन्ना

का सखि साजन ?ना सखी गन्ना      

---------पारुल'पंखुरी'

(मौलिक औए अप्रकाशित)

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Comment by Saurabh Pandey on July 10, 2014 at 11:38pm

आपने कह-मुकरिया विधा में अच्छी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं. सुधीजनों ने जो उचित सुझाव-सलाह दिये हैं उनके प्रति सचेत हों, आदरणीया.

शुभेच्छाएँ.

Comment by Madan Mohan saxena on July 9, 2014 at 4:00pm

बहुत खूब ,बहुत सुन्दर,हार्दिक बधाई

Comment by parul 'pankhuri' on July 8, 2014 at 1:29pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी आपका हार्दिक आभार !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 7, 2014 at 6:36pm

पारुल गुप्ता जी, आप का प्रयास अवस्य रंग लाएगा | कह-मुकरिया की तीसरी पंक्ति में 16 मात्राए अनिवार्य नहीं है | हां यह अवश्य 

है की यह पंक्ति ऊपर की प्रथम दो पंक्तियों का साथ दे रही हो, जैसा कि आदरणीय अशोक जी ने भी कहा है | 

तीसरी रचना में - :लम्बा बहुत जैसी हो ऊँट" किया जा सकता है |आपाके सद्प्रयास के लिए बधाई 

Comment by parul 'pankhuri' on July 7, 2014 at 5:58pm

आदरणीय लक्ष्मण  प्रसाद जी  आपको कह मुकरियां अछि लगी उसके लिए हार्दिक धन्यवाद .. आदरणीय वैसे मैंने मात्र गिनना अभी अभी सीखा है पर "मुझको होता सुन्दर भान" में १५ मात्र ही बैठेंगी मेरे हिसाब से अगर मै गलती कर रही हूँ तो कृपया बताइयेगा  इसी प्रकार "लम्बा इतना जितना ऊँट " में भी १५ होंगी जबकि हमे १६ मात्र की जरुरत है  ,,आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है  सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 7, 2014 at 12:29pm

प्रथम दोने कह्मुकरिया बहुत सुन्दर रची है |  दूसरी रचना की "उस पल रहे ना कोई भान" की जगह "मुझको होता सुन्दर भान"

कर सकते है |

 तीसरी रचना में संशोधन वांछनीय है | सुझावित रचना -

लम्बा इतना जितना ऊँट 

पहना नहीं है कोई सूट

तन के रहता जैसे  बन्ना

का सखि साजन ?न सखी गन्ना      

Comment by parul 'pankhuri' on July 7, 2014 at 9:27am

आदरणीय अरुण जी केवल जी जीतेन्द्र जी आप सभी का ह्रदय ताल से आभार ! 

Comment by parul 'pankhuri' on July 7, 2014 at 9:26am

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी आपने जिस प्रकार मेरी रचना की समीक्षा की आपकी ह्रदय से आभारी हूँ ये मेरा कह मुकरी कहने का प्रथम प्रयास है  .. तीसरी मुकरी पर मै फिर से काम करुँगी  दूसरी मुकरी की तीसरी पंक्ति को अगर यूँ कह दूँ तो क्या वह पूरी मुकरी से मेल खाएगी कृपया बताएं 

चूमे होंठ लाल कर जाए

मन में शीतलता भर जाए 

उस पर कुर्बान मेरी जान 

का सखि साजन ? ना सखि पान

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 6, 2014 at 5:02pm

आदरणीया पारुल जी प्रथम कह-मुकरी बहुत ही सुन्दर है अंतिम दो पर आदरणीय अशोक सर जी ने उचित सलाह दी है गौर फरमाएं प्रयासरत रहें. प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 6, 2014 at 3:00pm

खूँ इसको मै शरमाऊं

मन का सारा हाल सुनाऊ

सांझ सवेरे इसको अर्पण

का सखी साजन ?ना सखि दर्पण.......... वाह ! बहुत अच्छा रचा है  बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें !

चूमे होंठ लाल कर जाए

मन में शीतलता भर जाए 

उस पल रहे ना कोई भान.....................यह पंक्ति ऊपर की दोनों पंक्तियों का साथ नहीं दे रही है. "उस पल" 

का सखि साजन ? ना सखि पान

लम्बा है इतना जैसे ऊँट ...........१७ मात्राएँ 

पहना नहीं है कोई सूट

तन के खड़ा है जैसे बन्ना.......................१७ मात्राएँ 

का सखि साजन ?ना सखी गन्ना........१७ मात्राएँ |................जब १६ मात्राओं के शिल्प में रचना सम्भव है तब अधिक मात्राएँ होना उचित नहीं है |

आदरणीया पारुल जी सुन्दर प्रयास है ! सुन्दर भाव हैं. रचना करते वक्त शिल्प का भी ध्यान रखा जाए तो रचना में और निखार आयेगा. आपके इस सद्प्रयास के लिए दिल से बधाई स्वीकारें.सादर.     

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