For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

3 मुक्तक …

१.

ऐ खुदा  मुझ  को  बता  कैसा  तेरा दस्तूर है
तुझसे  मिलने  के लिए  बंदा तेरा मजबूर है
जब तलक रहती हैं सांसें दूरियां मिटती नहीं
नूर हो के रूह का तू क्यूँ उसकी रूह से दूर है


२.

हिसाब तो  साथ  ज़िंदगी  के पूरा हुआ करता है
साँसों के  बाद  ज़िस्म फिर धुंआ हुआ करता है
टुकड़ों में बिखर जाता है हर पन्ना ज़िन्दगी का
ज़मीं का  बशर  फिर आसमाँ का हुआ करता है


३.

हम परिंदों  को  खुदा  से बन्दगी नहीं आती
कैदे-कफ़स  में  जीनी  ज़िन्दगी  नहीं आती
पर काट के  परवाज़  का हौसला न आजमा
हम परिंदों को इन्सां सी दरिंदगी नहीं आती

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 668

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on July 9, 2014 at 8:05pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी - मुक्तकों पर आपकी गहन सुझावात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार - कृपया तोषदायक शब्द का अर्थ बताने का कष्ट करें।  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 9, 2014 at 6:19pm

मुक्तक चाहे शास्त्रीय छन्द के हों या अरुज़ के अनुसार बह्र आधारित,  किसी न किसी वर्ण-व्यवस्था या मात्रिकता को मानते हैं, जबतक कि वे अतुकान्त न हों.  कृपया आप साझा करें आदरणीय, कि ये किस व्यवस्था के अंतर्गत हैं .. .

वैसे भी भावदशा के अनुसार आपकी यह प्रस्तति भी बहुत ही तोषदायक है. 

सादर

Comment by Sushil Sarna on July 5, 2014 at 5:56pm

आदरणीया पारुल पंखुड़ी  जी मुक्तकों पर आपकी मधुर  प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on July 5, 2014 at 5:55pm

आदरणीय विजय मिश्र जी मुक्तकों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by parul 'pankhuri' on July 5, 2014 at 4:32pm

बहुत सुन्दर एवं सार्थक मुक्तक !

Comment by विजय मिश्र on July 5, 2014 at 4:05pm
इंसानी दरिंदगी का आखिरी दो लाइनों में बहुत सही मुआयना कराया |समूची रचना बहुत सुंदर |बधाई सरना भाई |
Comment by Sushil Sarna on July 4, 2014 at 2:01pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला  जी मुक्तकों पर आपके आत्मीय प्रशंसनीय अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on July 4, 2014 at 2:00pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मुक्तकों पर आपके मधुर वचनों का हार्दिक आभार 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 4, 2014 at 1:14pm

लाजवाब मुक्तक रचना हुई है | तीनो मुक्तक सुंदर और सार्थक रचे है | विशेषकर तीसरा मुक्तक बेहद पसंद आया -

पर काट के  परवाज़  का हौसला न आजमा
हम परिंदों को इन्सां सी दरिंदगी नहीं आती ---- बहुत खूब 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2014 at 11:26am

आ० सुशील जी इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई l

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service