For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की-2-ऐ ख़ुदा! रूतबा इबादत-गाहों का अपनी जगह

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 
.

ज़ाहिदो! रूतबा इबादत-गाहों का अपनी जगह
पर सुकूँ की राह में है मैकदा अपनी जगह.
.  
इश्क़ में मजबूरियों को बेवफ़ाई क्यूँ कहें   
चाहना अपनी जगह था भूलना अपनी जगह.
.
सादा-दिल होने के दुनिया में कई नुक्सान हैं
पर किसी के काम आने का मज़ा अपनी जगह.
.
आपने जब दिल लगाया ही नहीं, समझेंगे क्या?  
जीतना हो शौक़ कोई, हारना अपनी जगह.
.
इम्तिहाँ कब “नूर” का है इम्तिहाँ आँधी का है
रात भर जलता रहेगा यह दीया अपनी जगह.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 748

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2018 at 2:51pm

धन्यवाद आ. डॉ आशुतोष जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2018 at 2:50pm

धन्यवाद आ. नीलम जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 23, 2018 at 11:44am

आदरणीय भाई निलेश जी ..आपकी पिछली ग़ज़ल जैसी यह ग़ज़ल है यह भी उम्दा लगी रचना पर आपको ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Neelam Upadhyaya on April 23, 2018 at 10:51am

आदरणीय नीलेश जी।  खूबसूरत गजल के लिए मुबारकबाद।  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 22, 2018 at 3:38pm

सभी पाठको से निवेदन है कि चौथे शेर को यूँ पढ़ा जाए 
.

जब लगाया ही नहीं दिल आपने समझेंगे क्या'
जीतना हो शौक़ कोई, हारना अपनी जगह.
सादर 
 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 22, 2018 at 3:36pm

जी इसे अभी बदल लेता हूँ..
बहुत बहुत आभार 

Comment by Samar kabeer on April 22, 2018 at 3:34pm

'जब लगाया ही नहीं दिल आपने समझेंगे क्या'

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 22, 2018 at 3:19pm

धन्यवाद आ. समर सर,
यह ग़ज़ल दरअस्ल पिछली वाली की त्रुटियों पर मिसरे सोचते सोचते हो गयी ..
तनाफुर पर विचार करता हूँ लेकिन शायद मुश्किल होगा.. दिल लगाना ज़ुबान का जुमला बन गया है..फिर भी सोचता हूँ..
मार्गदर्शन के लिए आभार 

Comment by Samar kabeer on April 22, 2018 at 3:10pm

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,इस ज़मीन में आपकी ये दूसरी ग़ज़ल भी बहुत उम्दा हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

4थे शैर के ऊला में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,ये लिखना मेरा फ़र्ज़ है, आग्रह नहीं ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 21, 2018 at 3:47pm

धन्यवाद आ. मनोज कुमार जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service