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ग़ज़ल--122--122 / 122 --122 चमन की कहानी

कहूँ आपसे क्या थकन की कहानी

न समझोगे गाफ़िल बदन की कहानी

 

बनाती है ज़र्रे को रोशन सितारा

लुभाती बहुत है लगन की कहानी

 

समझ लो य’ अश्कों का सावन निरख कर

लबों से कहूँ क्या नयन की कहानी

 

जली उँगलियों से ज़रा पूछ आओ

कहेंगे फफोले हवन की कहानी

 

हर इक गम को ढाला ग़ज़ल में मुसल्सल

है झूठी अदीबों ग़बन की कहानी

 

सुनाते मिलेंगे चहकते चहकते

कफ़स में परिंदे चमन की कहानी

 

किरन दर किरन सुनाओ फ़ज़ा को

वो ‘खुरशीद’ नीले गगन की कहानी

मौलिक व अप्रकाशित 

 

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Comment

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Comment by rajesh kumari on February 26, 2015 at 8:42pm

बहुत शनदार ग़ज़ल कही इन शेरो के लिए तो बारम्बार दाद 

जली उँगलियों से ज़रा पूछ आओ

कहेंगे फफोले हवन की कहानी

 

हर इक गम को ढाला ग़ज़ल में मुसल्सल

है झूठी अदीबों ग़बन की कहानी

 

सुनाते मिलेंगे चहकते चहकते

कफ़स में परिंदे चमन की कहानी

 तहे दिल से बधाई लीजिये आ० खुर्शीद भैय्या 

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:39am

आदरणीय मिथिलेश जी ,आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी ,आदरणीय हरिप्रकाश सर ,आप सभी के स्नेह का शुक्रगुजार हूं |सादर आभार |

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:37am

आदरणीय गोपालनारायण सर ,आदरणीय गिरिराज सर ,आप जैसे महानुभवों का आशीर्वाद सदा बना रहे| आप द्वारा सुझाया मिसरा 

किरन दर किरन अब सुनाओ फ़ज़ा को i .....भी काफ़ी अच्छा है , किंतु यह ग़ज़ल महीनों पहले लिखी हुई है तथा इसके मूल पाठ में मिसरा निम्नवत है ,इसलिय क्षमा प्रार्थना के साथ मिसरा कॉपी \पेस्ट कर रहा हूं |इस मंच पर टाइपिंग के समय  'फिर ' छूट गया था |

किरन दर किरन फिर सुनाओ फ़ज़ा को

वो ‘खुरशीद’ नीले गगन की कहानी

आपकी सजगता वंदनीय है |आशीर्वाद बनाये रखियेगा |सादर आभार 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 11:48pm

आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी बहुत खूब..../ जली उँगलियों से ज़रा पूछ आओ

कहेंगे फफोले हवन की कहानी/ ..शानदार ग़ज़ल ,बधाई आपको ! सादर .


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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 8:23pm
आदरणीय खुर्शीद सर बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद कुबूल कीजिये। हार्दिक बधाई निवेदित है।
Comment by maharshi tripathi on February 25, 2015 at 5:57pm

हर इक गम को ढाला ग़ज़ल में मुसल्सल

है झूठी अदीबों ग़बन की कहानी

 

सुनाते मिलेंगे चहकते चहकते

कफ़स में परिंदे चमन की कहानी

 बहुत सुन्दर खुर्शीद जी ,,,,,,ये कुछ मिसरे मुझे खूब भाए ,,,,,आपको हार्दिक बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2015 at 5:33pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , रदीफ बहुत कठिन ले कर आपने सरलता से निबाह लिया है आपने !! पूरी गज़ल बेमिसाल है ॥ हार्दिक बधाइयाँ कुबूल करें ॥ 

किरन दर किरन सुनाओ फ़ज़ा को  --  आदरणीय इस मिसरे मे शायद एक शब्द टाइप होना रहगया है । देख लीजियेगा ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 4:26pm

आ० खुर्शीद जी

किरन दर किरन सुनाओ फ़ज़ा को------- मेरी तुच्छ मति में यह पंक्ति आपसे कुछ और समय चाहती है i  यदि ऐसा हो --- किरन दर किरन अब सुनाओ फ़ज़ा को i  सादर i

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