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दोहा पंचक. . . . . उमर

दोहा पंचक. . . . .  उमर

बहुत छुपाया हो गई, व्यक्त उमर की पीर ।
झुर्री में रुक- रुक चला, व्यथित नयन का नीर ।।

साथ उमर के काल का, साया चलता साथ ।
अकस्मात ही छोड़ती, साँस देह का हाथ ।।

बैठे-बैठे सोचती, उमर पुरातन काल ।
शैशव यौवन सब गया, बदली जीवन चाल ।।

दौड़ी जाती जिंदगी, ओझल है ठहराव ।
यादें बीती उम्र की, आँखों में दें  स्राव ।।

साथ उमर के हो गए, क्षीण सभी संबंध ।
विचलित करती है बहुत, बीते युग की गंध ।।

सुशील सरना / 28-2-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on Saturday

आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना का ।

Comment by Sushil Sarna on Saturday

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत हुआ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on Saturday

आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान दीजिएगा 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on Friday

आदरणीय सुशील सरना भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की प्रस्तुति के क्रम में थोड़ा समय लेना चाहिए. संप्रेषणीयता और निखर उठेगी. एक ही प्रस्तुति में उम्र और उमर का प्रयोग खटकता है. 

बाकी, आप अवश्य ही प्रयासरत रहें. किंतु प्रत्येक अभ्यास प्रस्तुति हेतु मुफीद नहीं होता. 

शुभातिशुभ

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