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Mohammed Arif's Blog – April 2018 Archive (3)

लघुकथा--बोध

प्रसंग था 'दशा और 'बोध ' किसे कहते हैं ? जिज्ञासु और दार्शनिक के बीच इस विषय को लेकर काफी वाद-विवाद चला । जिज्ञासु दार्शनिक के तर्कों से संतुष्ट नहीं हो रहा था । अंत में दार्शनिक ने जो सांकेतिक जवाब दिया उसे सुनकर जिज्ञासु अभिभूत हो गया । दार्शनिक ने उंगली से चींटियों के जाते हुए झुण्ड की ओर इशारा कर दिया ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on April 23, 2018 at 9:00am — 16 Comments

कविता -- अनकही ख़ामोशियाँ



अनकही ख़ामोशियाँ

बहुत कुछ कहती है

उनका शोर बहुत दूर तक सुनाई देता है

उन ख़ामोशियों की ज़मीन पे

बीज अंकुरित होते हैं

बहुत कुछ कहने के

मगर अनकही ख़ामोशियाँ

ख़ामोश बनकर रह जाती है

जैसे हड़ताल की अधूरी रह जाती है माँगें

जो कभी पूरी नहीं होती है

और माँगें हड़ताल को चलाती है

अतीत की स्मृतियों को भी

दबाती है अनकही ख़ामोशियाँ

धीरे-धीरे अनकही ख़ामोशियाँ

कब भीतर की तपिश बन जाती है

पता ही नहीं चलता है

यह तपिश

लावा बनकर फूट पड़ती है…

Continue

Added by Mohammed Arif on April 8, 2018 at 9:06am — 12 Comments

लघुकथा--हठ


एक दिन तंग आकर ज़िंदगी मौत से बोली-" आख़िर तू मुझे कब तक डसती रहेगी ?"
मौत खिलखिलाकर बोली-" जब तक तू जीने की हठ करती रहेगी ।"

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on April 1, 2018 at 9:00am — 8 Comments

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