For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पीयूष द्विवेदी भारत's Blog (21)

सफर में चलते रहना ही हमारी कामयाबी है (गज़ल)

अरकान : १२२२/ १२२२/ १२२२/ १२२२

गिरें  तो  फिर  सम्हलना  ही  हमारी  कामयाबी है !

सफर  में  चलते  रहना  ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

नही  ये कामयाबी  है  कि  मंजिल  पा  लिया हमने…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on September 24, 2013 at 8:24am — 26 Comments

लघुकथा : आंधी

एक गाँव था ! वहां बहुत सारे पापी रहते थे ! पाप करते और पानी से धो लेते ! धोते-धोते एकदिन सारा पानी खत्म हो गया ! पानी खत्म होने पर उन पापियों के पाप से गाँव तपने लगा ! उस तपन को पापियों ने नज़रंदाज़ कर दिया और पहले की ही तरह पाप करते रहे ! तपते-तपते आखिर एकदिन बड़ी भयानक आग उठी और उन पापियों को जलाने के लिए बढ़ने लगी ! पानी तो था नही,  इसलिए पापियों ने आग से बचने के लिए उसपर खूब सारी मिटटी डाल दी ! आग दबने लगी, पापी खुश होने लगे कि तभी बड़ी जोर से आंधी आई और सारी मिट्टी उड़ गई ! अब हवा से परवाज…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on August 7, 2013 at 7:04pm — 10 Comments

तुम मेरी कौन हो

अनंत मनोभाव जब,

शब्द से क्यों मौन हो ?

तुम मेरी कौन हो ?

 

किंचित मुझे भी ज्ञान है,

किंचित जो तुमसे ज्ञात हो,

अनुत्तरित सा प्रश्न ये,

उत्तरित हो जाय, कि

आभास से समीपता,

पर दृष्टि से क्यों गौण हो ?

 

लगता मुझे कि ब्रह्म-सी,

नेत्र-शक्ति से परे,

अनुभवीय मात्र हो !

आत्मदर्शनीय, किन्तु

बाह्य हींन गात्र हो !

 

सत्य क्या ? पता नही,

किन्तु, कुछ अनुमान है…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on July 31, 2013 at 4:04pm — 4 Comments

गज़ल

शैक्षिक व्यस्तताओं तथा गाँव यात्रा के कारण काफी समय तक ओबीओ से दूर रहना पड़ा ! इतने दिनों में काफी याद आया अपना ये ओबीओ परिवार ! लगभग पाँच महीने बाद आज पुनः ओबीओ पर लौटा हूँ ! सर्वप्रथम सभी आदरणीय मित्रों को नमस्कार, तत्पश्चात ये एक छोटी-सी गज़ल नज़र कर रहा हू ! इसके गुणों-दोषों पर प्रकाश डालकर, मुझ अकिंचन को कृतार्थ करें ! सादर आभार !

अरकान : २१२२/२१२२

जिन्दगी की क्या कहानी !

गर नही आँखों में पानी !

भ्रष्टता…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on July 20, 2013 at 4:30pm — 24 Comments

सरस्वती-वंदना (चौपइया छंद पर एक प्रयास))

 आगामी बसंत पंचमी पर 'सरस्वती पूजन' के आयोजन  का कार्यक्रम है, उसीके उपलक्ष्य में इस वंदना की रचना किया हूँ ! सभी आदरणीयों से सादर निवेदन है कि कृपया इसके गुणों, दोषों से अवगत कराएं तथा आवश्यक प्रतीत होने पर उपयुक्त परिवर्तन भी सुझाएँ ! धन्यवाद !                                      

  

(मौलिक व अप्रकाशित)…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on February 10, 2013 at 2:05pm — 10 Comments

लघुकथा: चौथा खम्भा

१३-१४ साल के आसपास की उम्र होगी उसकी ! शायद कुछ अंडे चुराए थे उसने ! बस इसीलिए लोग उसे बेतहाशा पीट रहे थे ! कहीं से पुलिस को इत्तला हुई ! पुलिस पहुंची ! बहुत मशक्कत हुई, पर लोग उसे बख्शने को तैयार न थे ! आखिर पुलिस को लाठीचार्ज और हवाई फायर करना पड़ा ! दो-चार लोग घायल हुवे, पर उसे बचा लिया गया ! अगले दिन खबर थी, “जनता के रक्षक हुवे भक्षक” ये खबर खूब चली ! पुलिस ने इस खबर को देखा और अगले मामले में शांत रही ! कोई लाठीचार्ज, कोई हवाई फायर नही ! अगले दिन खबर थी, “पब्लिक की सरेआम गुण्डागर्दी,…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on February 3, 2013 at 7:15am — 7 Comments

व्यंग्य : निबुहवा बाबा

एक बालक था | बालक बेरोजगार था | बहुत प्रयास किया, पर सही रोजगार नहीं मिला | अंततः थक हारकर वो जुगाड़ू बाबा की शरण में गया | उसने जुगाड़ू बाबा को अपना दुखड़ा सुनाया | उसका दुखड़ा सुनकर जुगाड़ू बाबा ने उसे दो मिर्च, एक काला धांगा और एक नींबू दिया और बोले इनको गूथ और बेच | बालक बोला- बाबा ! ये क्या रोजगार है ? बालक की बात सुनकर ऐसे मुस्कुराये जुगाड़ू बाबा, जैसे बालक ने कोइ बचकानी बतिया दी हो | वो बोले - बालक ! तू अभी अनुभवहीन है, तुझे इस संसार का कुछ नहीं पता है, इसीलिए ऐसी बेतुकी बात पूछ रहा है | इस…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on January 27, 2013 at 12:30pm — 6 Comments

लघुकथा : संवेदनहीन

सड़क पर पड़े, उस दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को अपनी गाड़ी में लेकर रमेश अभी-अभी अस्पताल पहुंचा था ! उससे नहीं देखा गया कि हजारों की भीड़ में से एक आदमी भी उस तड़पते व्यक्ति के लिए आगे नही आ रहा है ! वो समझ नही पा रहा था कि लोग इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं ? और बस इसीलिए वो उस व्यक्ति को अपनी कार में डालकर अस्पताल ले आया था ! अभी उस व्यक्ति का ऑपरेशन चल रहा था ! कुछ देर बाद....! ओटी के बाहर जलता बल्ब बंद हुवा और डॉक्टर बाहर निकले !

“क्या हुवा डॉक्टर? सब ठीक तो है न ?” रमेश ने पूछा…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on December 13, 2012 at 8:30am — 18 Comments

कहानी : तमाचा

  उस बस में जगह की वैसी ही किल्लत थी, जैसी मुंबई में पानी की है ! पर ये किल्लत मेरे पहुँचने के बाद हुई, इसलिए मुझे सीट मिल गई थी, और मै बैठा था ! अगला स्टॉपेज आया, यहाँ पर्याप्त लोग उतर गए, कुछ चढ़े भी, पर उतरने की मात्रा ज्यादा थी ! इसलिए अब बस में कुछ हल्कापन था ! बस में चढ़ने वालों में एक लड़की भी थी, जोकि मेरे पास आकर बोली, “थोड़ी जगह मिलेगी?” मै अपनी जगह से जरा सा खिसककर उसको जगह दिया ! उस लड़की के तत्काल बाद, याकि उसके पीछे ही एक लड़का भी बस में चढ़ा, उस लड़के के विषय में मुझे अजीब बात ये लगी…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 11:00am — 13 Comments

लघुकथा: नपुंसक

“अनिता, यार जल्दी करो, ऐसे तो दोपहर का शो भी निकल जाएगा !” विजय अपनी पत्नी अनिता से बोला !

“बस अब सब्जी कट ही गई, इसे गैस चढ़ाकर तैयार हो जाऊंगी, टेंसन नॉट, समय पर पहुँच जाएंगे !” अनिता सब्जी काटते हुवे कह रही थी कि तभी, “आह...!” अचानक चाकू हाथ पर लग गया !

“अरे अनिता..... ध्यान कहाँ था..? छोड़ो ये सब्जी, चलो मै दवा लगा देता हूँ !” विजय चौकता हुवा बोला, और फिर जख्म पर दवा लगाकर पट्टी किया ! इसके बाद सब्जी काटकर गैस पर चढ़ा दिया ! इधर अनिता तैयार होने की कोशिश…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on December 1, 2012 at 1:18pm — 20 Comments

लघुकथा: लिटमस टेस्ट

 "प्रेमहीन जीवन शून्य है, ये मुझे बेहतर पता है ! इसलिए उसकी पीड़ा को समझता हूं !"  आकाश  शून्य की ओर देखते हुवे प्रतीक से बोला !

"किसकी पीड़ा? तुम्हारी प्रेमिका?" प्रतीक बोला !

"ना! एक मित्र है, बहुत प्रेम करता है एक से, पर कह नही पा रहा है !"

“कौन मित्र?”

“अभिनव, कॉलेज वाला...!”

“जानता हूं ! किसको चाहता है? रहती कहाँ है?”

“जैसा कि उसने बताया है, तुम्हारे ही मोहल्ले में !”

“क्या बात कर रहे हो, ऐसा है, तब तो तुम्हारे दोस्त की समस्या हल..!”…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on November 18, 2012 at 8:00pm — 14 Comments

अमृत समान हे चाय मेरी, मै तुमको भूल न पाऊंगा

                                                                      

                                                                      

तुम शीतल, ग्रीष्म, उभय तापी;

तुम  बहुप्रकार, तुम  बहुरंगी !

हो  रंग, रूप  व  ताप  कोई,…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on November 16, 2012 at 10:27am — 14 Comments

दीपावली की शुभकामनाएँ (मत्तगयंद सवैया)



(७ भगड़ और अंत में दो गुरु)

मानस  जो  अँधियार  हुवा अब नष्ट उसे निज से कर डालें !

ज्ञान कि बाति व सत्य क ईंधन से चहुँ धर्म क दीप जला…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on November 12, 2012 at 7:55am — 10 Comments

लघुकथा :- रंगभेद

उस कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है ! मंगल बाहर उत्सुक सा चहलकदमी कर रहा है ! कमरे से कुछ औरतों के बोलने की, और बीच-बीच में एक औरत के चींखने की आवाज आ रही है ! ये सब झूमरी के प्रसव का आयोजन है !...................कुछ समय बाद ! “केहाँ...केहाँ...केहाँ !” बच्चे के रोने की आवाज हुई ! अब मंगल बेचैन हो उठा ! कि तभी कमरे का दरवाजा खुला, और रामधुनी काकी बाहर निकलीं !

“के हुवा काकी?” मंगल ने पूछा !…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on November 1, 2012 at 3:30pm — 10 Comments

जिम्मेदारी

महिमा रोज की ही तरह आज भी सुबह पाँच बजे अधपूरी नींद से उठ गई ! फिर घर की दैनिक सफाई के बाद बेड टी बनाकर अजय को जगाया, और सोनू को जगाकर स्कूल के लिए तैयार करने लगी ! सोनू स्कूल चला गया ! महिमा ने अजय के ऑफिस के कपड़े इस्त्री किए, फिर उसे जगाया, उसका नाश्ता बनाया ! अजय उठा और महिमा को इधर-उधर की दो चार हिदायते देते हुवे तैयार हुवा, और आखिर नौ बजे ऑफिस चला गया ! उसके जाने के बाद महिमा ने नहाकर थोड़ी पूजा की, फिर लंच तैयार किया और लंच लेकर सोनू के स्कूल गई, समय था बारह ! घर आकर खाना खाई और फिर…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on October 25, 2012 at 3:30pm — 24 Comments

गज़ल

गज़ल के विषय में मेरा ज्ञान ना के बराबर भी शायद ही हो, फिर भी प्रयास कर रहा हूँ ! आशा है, आशीष रहेगा !

 

तुमसे  जो  चंद  बात में कुछ पल ठहर गया !

जरा  खबर  ना  हुई  बड़ा  लम्हा गुज़र गया !

 

अमृत  ही  पाने  को निकला था सफर पे मै !

पीछे  मधु  की  बूंदों  के  सारा  सफर गया !

 …

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on October 10, 2012 at 10:30pm — 18 Comments

लघुकथा :- मोम

“रोहन! अब ये आदत कहाँ से सीख रहा है! रोमी आंटी को नमस्ते क्यों नही किया?” रमेश गुस्से में बोला!

“थॉरी पापा!” रुआंसा आवाज थी रोहन की!

“ह्वाट सॉरी...गलती फिर सॉरी..कोई सॉरी नही मिलेगी!”

“अरे बेटा! अब जाने भी दो! पाँच साल का भी तो नही है ये....” कमरे में बैठे बुज़ुर्ग बोले ही थे कि रमेश बीच में ही बोल पड़ा, “पिताजी, आपको पता है न, मुझे टोक पसंद नही, फिर भी? शांत रहिए!” बुज़ुर्ग चुप हो गए! रमेश बोलता रहा!

अगले दिन! स्कूल में!

“रोहन! बातें नही, इधर ध्यान दो!” टीचर… Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on September 29, 2012 at 10:34pm — 10 Comments

मिलन की बात है असंभव

तुम कंचन हो,

मै कालिख हूँ!

तुम पारस, मै

कंकड़ इक हूँ!

 

तुम सरिता हो,

मै कूप रहा!

तुम रूपा, इत

ना रूप रहा!

जो मानव नहीं है उसको, देव की पांत है असंभव!

है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!

 तुम ज्वाला हो,

मै…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on September 11, 2012 at 2:30pm — 58 Comments

हाँ वही मेरी प्रिया है

जिसमे राष्ट्रिय मान  भी  हो!

दूजों के प्रति सम्मान  भी हो!

अभिमान नही किंचित मन में,

पर दृढ़मय स्वाभिमान भी हो!

 

वाणी  से  केवल सत्य कहे!

जो सत्य हेतु  हर कष्ट सहे!

निर्बल का जो बल बन जाए!

परदुख से जिसके  नैन  बहें!

उस अदृश्य को ही मैंने, मन समर्पित कर दिया है!

हाँ  वही  मेरी  प्रिया  है, हाँ  वही  मेरी प्रिया है!

 

जो  अत्याचार  विरोधी  हो!

अन्याय-राह   अवरोधी  हो!

पथभ्रष्ट जनों की खातिर…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on September 1, 2012 at 7:00am — 10 Comments

प्रकृति मेरी प्रेयसी

सौन्दर्य तुम्हारा प्रियतमे, सप्तसुर संगीत है!

धरती-गगन संयुक्तता सा, प्रेम अपना गीत है!



संसार ये अतिशय है तप्त, मै बहुत संतप्त हूं!

संतप्तता के इस गहर में, संग तुम तो शीत है!



जग क्षितिज पर पाषाणता के, है तुम्हे भी कष्ट दे!

परन्तु उसी जग हेतु तुममे, शेष अति नवनीत है!



तुम नित करो नवनीत वर्षण, जग बदल सकता नही!

पाषाण मानव के ह्रदय में, कृतघ्न एक रीत है!



सत्प्रेमता का इस मनुज में, भाव कोई है नही!

सो…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on August 30, 2012 at 11:30am — 8 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service