1.
चिंतन की मथनी करे, मन का मंथन नित्य |
सार-सार तरै ऊपर , छूटे निकृष्ट कृत्य ||
छूटे निकृष्ट कृत्य , विचार में शुद्धि आए |
उज्ज्वल होय चरित्र, उत्तम व्यवहार बनाए||
मिले सटीक उपाय, समस्या को हो भंजन |
चिंता भी हो दूर , करें जब मन में चितन ||
2.
अक्ल बिना बंधु देखो , सरै न एकौ काम |
सब जीवों में श्रेष्ठतम , मानव तेरा नाम||
मानव तेरा नाम, है यह विवेक सिखाती |
ऊँच-नीच की बात, मानवों को समझाती ||
इक जैसा…
ContinueAdded by shalini rastogi on June 29, 2014 at 11:00pm — 6 Comments
( गुरुजनों की समीक्षार्थ प्रस्तुत )
तृष्णा मृग की ज्यों उसे, सहरा में भटकाय |
तपती रेत में देता , जल का बिम्ब दिखाय ||
जल का बिम्ब दिखाय, बुझे पर प्यास न उसकी|
त्यों माया से होय , बुद्धि कुंठित मानव की ||
प्रज्ञा का पट खोल, नाम ले राधे - कृष्णा |
सुमिरन करते साथ, मिटेगी हरेक तृष्णा ||
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मौलिक व अप्रकाशित
Added by shalini rastogi on June 24, 2014 at 11:30am — 12 Comments
(सभी गुरुजनों की समीक्षार्थ ... सादर -)
चिंता चित पर ज्यों चढ़े, पल-पल मन झुलसाय|
चिंता रथ पर जो चढ़े, चिता तलक पहुँचाय ||
चिता तलक पहुँचाय , रहे तन छिन-छिन घुलता |
छिने दिमागी चैन , नींद से वंचित फिरता ||
देत न कोय उपाय, सुख व सेहत की हंता |
करें चिंतन सदैव, करें न कभी भी चिंता ||
.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by shalini rastogi on June 23, 2014 at 6:30pm — 9 Comments
१.
जोड़ी जुगल निहार मन, प्रेम रस सराबोर|
राधा सुन्दर मानिनी, कान्हा नवल किशोर||
२.
हरे बाँस की बांसुरी, नव नीलोत्पल गात|
रक्त कली से अधर द्वय,दरसत मन न अघात…
ContinueAdded by shalini rastogi on October 18, 2013 at 7:30pm — 8 Comments
कुण्डलिया
सावन संग आज लगी, सखी नैन की होड़|
मान हार कौन अपनी, देत बरसना छोड़||
देत बरसना छोड़, नैन परनार बहे हैं |
कंचुकि पट भी भीज , विरह की गाथ कहे हैं ||
पड़े विरह की धूप, जले है विरहन का मन|
हिय से उठे उसाँस, बरसे नैन…
ContinueAdded by shalini rastogi on September 23, 2013 at 6:29pm — 14 Comments
१ २ २ २ / १ २ २ २ /१ २ २ २
न मिलने का नया, उसका बहाना है.
उसे हर हाल बस, मेरा दिल दुखाना है .
कहाँ तक सुनें, कभी तो खत्म हो जाएँ,
नए किस्से नया, उसका हर फ़साना है.
जिसे देखो, वो संग ले हाथ में, दौड़े,
जहाँ में मुझ पागल का, क्या ठिकाना है .…
ContinueAdded by shalini rastogi on September 19, 2013 at 11:12pm — 16 Comments
1 2 1 2 / 2 2 1 2 / 1 2 1 2 / 2 2 1
न रंज करना ठीक है, न तंज करना ठीक
जो दौर बीता उससे यूँ, न फिर गुज़रना ठीक.
कि आखिरी सच मौत, इससे क्यों हमें हो खौफ़
यूँ डर के इससे हर घड़ी, न रोज़ मरना ठीक .
हर्फे आखिरी है जो खुदा ने लिख भेजा किस्मत में,
बने जो आका फिरते, उनसे क्यों हुआ ये डरना ठीक.
कोशिश ही बस में तेरे, खुदा के हाथ अंजाम,
भला लगे तो अच्छा है, बुरा भी वरना ठीक.
लाजिम है वज़न बात…
ContinueAdded by shalini rastogi on September 18, 2013 at 5:30pm — 20 Comments
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