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Anand Vats's Blog (10)

रिक्त

मैं और मेरी कृत्य के बीच एक रिक्त सदा से 

खुद से खुद को जकडे जंजीरों के शून्य हो जैसे



बंधे है एक दूसरे से बाहों में बाहें डाल कर 

फिर भी एक बड़ा घेरा जो घिर न रहा हो जैसे 



युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं 

लग रहा फिर भी…

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Added by Anand Vats on March 2, 2012 at 12:30pm — 8 Comments

कोई सुनेगा

पाषाण समाज के सीने पे पडी नन्ही अश्रु की बूँद गाती है अनसुना गीत ,सुनाती है अजन्मी कहानी .|

उसकी गिरेबां को पकडे रोती ,बिलखती , कोसती, झकझोरती , सवाल करती , पता पूछती हैं उस भ्रूण हत्यारे का|

फिर सहसा आंसू पोछती .सोचती कहती की अच्छा हुआ जन्म  से पहले मिटा दी  गयी पैदा होती तो जाने क्या हश्र होता |…

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Added by Anand Vats on March 5, 2011 at 10:21am — 3 Comments

चिंगारी

उष्ण आगोश था
मैं मदहोश था
ना मुझे होश था
ना मुझमे जोश था
मैं शीतस्वापन में था
ना ही मैं जगा
ना मुझे उठाया गया
ना ही मैं जला
न मुझे सुलगाया गया
मुझे तो बुझाया गया
अब राख ही राख है
और हैं एक चिंगारी


आपका :- आनंद वत्स

Added by Anand Vats on August 14, 2010 at 11:24am — 1 Comment

प्यार में डूबने के बाद

कुर्क हो जाती है आत्मा मेरी तुम्हारी मुस्कान से हर बार

सुर्ख मधुर अधरों से गूंजा सा मेरा नाम जब पुकारती हो तुम



स्वेक्षा से अपने आप को को मरता हुआ सा देख सकता हु

मार डालो मुझे मृत्यु तुम्हारे अधरों पे लटका देख सकता हु



नित तुम्हारा नाम लेता हु चेहरा मस्तिस्क में लिए फिरता हु

हम तुम शब्दों के पुष्प उछाल रहे हैं दिल का स्पंदन जब्त सा है



मुक्त करो तुम्हारी यादो के भरोसे से संजोकर मुझे आज

तुम में पूरा डूबा मैं अब किनारे पर सूखने की कोशिश में… Continue

Added by Anand Vats on July 17, 2010 at 2:30pm — 6 Comments

कितना बदल गया इंसान

जाने क्या हो गया है
आजकल के इंसान को .
पेड काट के आता है
बिल्डिंग बना जाता है|

मार्बल मकराना पत्थर
खूब अच्छे से पहचानता है
बस बुढे बाप की
बढ़ती पथरी नहीं देख पता |

स्वार्थ जलन मोह धन वासना
लक्ष बन जाता है
गौर से देखो यारो इंसान
जानवर से भी पीछे नज़र आता है |



लेखक :- आनंद वत्स .

सह्रदय आभार- आदरणीय बब्बन पाण्डेय जी ..आपसे प्रेरणा मिली है |

Added by Anand Vats on June 26, 2010 at 3:00pm — 4 Comments

सलाईआ

दफ्तर जाते हुए सेक्टर ६२ नॉएडा से रिक्शा लिया, बैठते ही किसी को सिगरेट फूंकते देखकर धूम्रपान की तलब हुयी तो मैंने भी फौरन सिगरेट सुलगानी शुरू कर दी ! लेकिन हवा तो जैसे मेरे पीछे ही पडी हुयी थी .. एक ..दो ...तीन .. चार, मगर यह क्या ? माचिस की तीलियाँ तो बुझती ही जा रही थीं और मेरी सिगरेट सुलग नहीं पा रही थी ! तब एकदम ख्याल आ गया उस पुरानी माचिस का जो बचपन में घरो में आम हुआ करती थी ! पतली प्लाईवुड कवर वाली और नीले कागज़ वाली .. शायद एक्का माचिस थी ! क्या माचिस हुआ करता थी - एकदम मोटी सी लकड़ी,… Continue

Added by Anand Vats on June 11, 2010 at 6:00pm — 5 Comments

फूलिश

सीना नहीं बना पाए तो क्या ..पेट तो फुला लिया .. अपराध मिटा न सके तो क्या .. अवरोधक तो बना लिया ....

पेट में जो चर्बी है सब आम जनता की अमानत है ..वापस लेना है की नहीं..
. इतनी चर्बी से ना जाने कितने घुप्प घरो के दिए रोशन हुए होते ..



Added by Anand Vats on June 2, 2010 at 12:09pm — 8 Comments

बचपन

मैं कोई लेखक नहीं हु लेकिन मेरे अंदर कीड़ा मचला है अब ..शब्दों को पिरोना संजोना नहीं अत्ता है .. लेकिंग जो बातें हैं कही अनकही बस लिख देना है



गर्मी भीषण हो रही है दिल्ली में मगर बचपना याद दिला रही है..झारखण्ड में एक जगह है , साहिबगंज . वह एक तरफ झरने वाली पहाड़ी है दूसरी तरफ उत्तर वाहिनी गंगा ..चिलचिलाती धुप में कभी झरने में नहा के सुकून लेते थे केकड़ो को पकड़ पकड़ कर हमलोग उसके शल्य चिकित्सा किया करते थे . रोज़ स्कूल से भाग के गंगा नहाने जाते थे सारा दिन मस्ती शाम को आंखे लाल होती… Continue

Added by Anand Vats on June 1, 2010 at 1:03pm — 9 Comments

हरी

माँ की सुनायी प्रयाय्वाची पे आधारित कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी है ....

हरी गए हरी से मिलने , हरी बैठे हरी पास
ये हरी वोह हरी मिल गए , ये हरी भये उदास |

हरी अर्थात (साप , मेढक . नदी )

Added by Anand Vats on June 1, 2010 at 12:06pm — 1 Comment

क्षमा कीजिये मुझे मैं हाथ जोड़ता हू|

मैं तत्काल प्रभाव से मेरे सारे कार्यों से त्यागपत्र दे रहा हूँ -- मेरे इस्तीफे के लिए कारण है कि मैं आज सुबह काम पर जाने से पहले मुझे एहसास हुआ की बाल मजदूरी आपराध है|| आपसे शिकायत है की आप मुझे एहसास न दिला पाए .

Added by Anand Vats on June 1, 2010 at 11:50am — 6 Comments

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