दोहा त्रयी : बदनाम
उल्फत में रुसवा हुए, मुफ्त हुए बदनाम ।
आँसू आहों का मिला , इस दिल को ईनाम ।।
शमा जली महफिल सजी, चले जाम पर जाम ।
रिन्दों ने की मस्तियाँ, शाम हुई बदनाम ।।
वफा न जाने बेवफ़ा ,क्या उस पर इल्जाम ।
खाया फरेब इस तरह, इश्क हुआ बदनाम ।।
सुशील सरना / 3-8-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 3, 2023 at 1:59pm — No Comments
दोहा पंचक. . . ( क्रोध )
क्रोध मूल है बैर का, करे बुध्दि का नाश ।
काट सको तो काट दो ,क्रोध रास का पाश ।।
रिश्तों को पल में करे, खाक क्रोध की आग ।
जीवन भर मिटते नहीं, इन जख्मों के दाग ।।
क्रोध पनपता है वहाँ , होता जहाँ विरोध ।
हरदम चाहे आदमी , लेना बस प्रतिशोध ।।
घातक होते हैं बड़े, क्रोध जनित परिणाम ।
जीवित रहते शूल से, अंतस में संग्राम ।।
मित्र क्रोध से क्रोध का, मुश्किल है…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 21, 2023 at 2:07pm — 2 Comments
क्षणिकाएँ. . . .
समझा दिया
मतलब मोहब्बत का
गिर कर
हथेली पर
एक आँसू ने
*
प्यास
एक हसीं अहसास
सुलगते अरमानों की
*
तन से दूर
मन के पास
मन की प्यास
*
आँखों में
करतीं रास
दरस की प्यास
*
जीवन
मरीचिका
सिर्फ
प्यास ही प्यास
सुशील सरना / 5-7-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 5, 2023 at 3:08pm — No Comments
दोहा पंचक . . . .
नारी का कामुक करे, दागदार जब चीर ।
आँखों की प्राचीर से, झर- झर बहता नीर ।।
हार वही जो जीत का, लिख डाले इतिहास ।
तृप्ति संग तृष्णा करे, हरदम प्यासी रास ।।
जीवन मधुबन ही नहीं, इसमें हैं कुछ खार ।
दो पल खुशियों के मिलें, दुख की लगी कतार।।
मन को मन का मिल गया, मन चाहा मन मीत ।
मन के आँगन अवतरित, मन की होती प्रीत ।।
वो नजरों के पास हैं, या नजरों से दूर ।
दिल के सारे खेल तो, दिल से…
Added by Sushil Sarna on June 27, 2023 at 6:30pm — 6 Comments
दोहा पंचक
विषय : संगत
संगत सच्चे मित्र की, उन्नत करे चरित्र ।
ऐसे मित्रों के सदा, पूजे जाते चित्र ।।
ओछी संगत के सदा, ओछे होते रंग ।
कटे सदा फिर जिंदगी, बदनामी के संग ।।
अच्छे बुरे हर कर्म का, संगत है आधार ।
संगत के अनुरूप ही, जीव करे व्यवहार ।।
कहाँ निभा है आज तक, केर बेर का संग ।
संगत सज्जन की सदा, मन में भरे उमंग ।।
भला बुरा हर आचरण , संगत के आधीन ।
जैसी संगत जीव की, वैसी बजती बीन…
Added by Sushil Sarna on May 4, 2023 at 1:51pm — 4 Comments
दोहा मुक्तक
मन को जब मन में मिली , मन चाही पहचान ।
मन में जागे प्यार के, अनजाने तूफान ।
मन की मोहक कल्पना, मन के सुन्दर तीर -
मन ही मन मुस्का रहे, मन के सब अरमान ।
* * *
पागल इच्छा सो गई, स्वप्न हुए साकार ।
चातक नैनों को मिला, तृष्णा का उपहार ।
शापित अभिलाषा हुई, मन को मिला न मीत -
क्षीण बिम्ब सब हो गए, धधक पड़े शृंगार ।
सुशील सरना / 22-4-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 22, 2023 at 2:54pm — 2 Comments
दोहा मुक्तक
नाम बदलने से कहाँ , खुलें भाग्य के द्वार ।
बिना कर्म संसार में, कब होता उद्धार ।
जब तक चलती जिन्दगी, चले जीव संग्राम -
जीवन के हर मोड़ का, हार जीत शृंगार ।
***
काहे अपने रूप पर, करता जीव गुमान ।
कहते हैं रहती नहीं, उम्र ढले पहचान ।
बुझ कर भी बुझती नहीं, अरमानों की आँच -
मुट्ठी भर की जिंदगी, तेरी है इंसान ।
सुशील सरना /
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 5, 2023 at 1:01pm — 2 Comments
ममता ....
"सुनिए, मैं ये कह रही थी कि 5 दिन के बाद अपनी पोती नीलू का जन्म दिन है । नीलू पूरे चार साल की हो जाएगी" पार्वती ने लेटे-लेटे अपने पति राघव से कहा।
"हाँ वो तो है ।" राघव ने जम्हाई लेते हुए कहा ।
"मैं ये सोच रही थी क्यों न हम इस मौके पर हम अपनी तरफ से ग्यारह हजार रुपये का चेक अपने आशीर्वाद के रूप में भेज दें क्योंकि शारीरिक व्याधियों की हम दिल्ली तो जा नहीं सकते ।" पार्वती ने कहा ।
"तेरा विचार सही है । मैं कल ही बैंक में चेक डाल दूँगा ।…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 28, 2023 at 9:46pm — 4 Comments
मनमोहन छंद (प्रथम प्रयास )
8,6-पदान्त 111
कान्हा जी से, लगी लगन ।
पागल मन ये , हुआ मगन ।
मन में जागी, प्रीत अगन ।
भूल गया मन , धरा गगन ।
***
मनमोहन तू, बड़ा चपल ।
तुझे निहारें , नैन सजल ।
हरदम लगता , रूप नवल ।
छलकें नैना , छल छल छल ।
सुशील सरना /
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 11, 2023 at 3:22pm — No Comments
दोहा पंचक. . . .
साथ चलेंगी नेकियाँ, छूटेगा जब हाथ ।
बन्दे तेरे कर्म बस , होंगे तेरे साथ ।।
मिथ्या इस संसार में, अर्थहीन सम्बंध।
देह घरोंदा जीव का, साँसों का अनुबंध ।।
रह जाएगी जगत में, कर्मों की बस गंध ।
इस जग में है जिंदगी, दो पल का अनुबंध ।।
आभासी संसार के, आभासी संबंध ।
मिट जाता जब सब यहाँ, रहती कर्म सुगंध ।।
जब तक साँसें देह में, चलें देह सम्बंध ।
शेष रहे संसार में, जीव कर्म की …
Added by Sushil Sarna on February 3, 2023 at 2:00pm — 4 Comments
Continueदोहा मुक्तक. . . .
दर्द भरी हैं लोरियाँ, भूखे बीते रैन।
दृगजल से रहते भरे, निर्धन के दो नैन ।
हुआ कटोरा भीख का, सिक्कों का मुहताज -
दूर तलक मिलता नहीं,अब निर्धन को चैन ।
*****
आँसू शोभित गाल का, कौन यहाँ हमदर्द ।
सूखे होठों पर जमी , निर्धनता की गर्द ।
पैर पेट से मिल गए, थर - थर काँपे देह -
जीण-क्षीण सा आवरण, लगे पवन भी सर्द ।सुशील सरना…
Added by Sushil Sarna on January 30, 2023 at 3:37pm — 2 Comments
दोहा ग़ज़ल- चाय
प्याली से हो चाय की ,जाड़े का सत्कार ।
फिर चुस्की से नेह का, बढ़े प्रणय संसार ।
नैन मिले जब नैन से, स्वरित हुआ संदेश,
किया अधर अभिसार ने,जाड़े का शृंगार ।
रैन अलावों में हुए , क्षीण सभी अनुबंध ,
अन्धकार की कैद में, हार गए इंकार ।
बढ़ी शीत होने लगा , मन में मिलन प्रभात,
दम तोड़ा इंकार ने, जीत गए स्वीकार ।
मौन चरम मुखरित हुए, चली प्रेम की नाव ,
वाह्य अगन …
Added by Sushil Sarna on January 4, 2023 at 3:45pm — No Comments
भिखारी छंद - 24 मात्रिक - 12 पर यति
पदांत-गा ला
जब -जब सर्दी आती ,कब वृद्धों को भाती ।
गिरे आँख से पानी ,खाँसी बहुत सताती ।
रोटी गिर -गिर जाती ,चाल संभल न पाती ।
लड़ते-लड़ते आख़िर ,काया चुप हो जाती ।
* * *
ठहर जरा दीवानी , तेरी उम्र सयानी ।
आशिक़ नज़रें घूरें, तेरी मस्त जवानी ।
अक्सर मीठे धोखे ,इन राहों पर होते ।
पड़ न जाए महंगी , थोड़ी सी नादानी ।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 25, 2022 at 1:30pm — 8 Comments
दोहा त्रयी :मैं क्या जानूं
मैं क्या जानूं आज का, कल क्या होगा रूप ।
सुख की होगी छाँव या , दुख की होगी धूप ।।
मैं क्या जानूं भोर का, होगा क्या अंजाम।
दिन बीतेगा किस तरह , कैसी होगी शाम ।।
मैं क्या जानूं जिन्दगी, क्या खेलेगी खेल ।
उड़ जाए कब तोड़ कर , पंछी तन की जेल ।।
सुशील सरना / 17-11-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 17, 2022 at 12:00pm — 6 Comments
बालदिवस पर चन्द दोहे :. . . .
बाल दिवस का बचपना, क्या जाने अब अर्थ ।
अर्थ चक्र में पीसते, बचपन चन्द समर्थ ।।
बाल दिवस से बेखबर, भोलेपन से दूर ।
बना रहे कुछ भेड़िये , बच्चों को मजदूर ।।
भाषण में शिक्षा मिले, भाषण ही दे प्यार ।
बालदिवस पर बाँटते, नेता प्यार -दुलार ।।
फुटपाथों पर देखिए, बच्चों का संसार ।
दो रोटी की चाह में , झोली रहे पसार ।।
गाली की लोरी मिले, लातों के उपहार ।
इनका बचपन खा गया, अर्थ लिप्त संसार ।।
बाल दिवस पर दीजिए,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 14, 2022 at 3:30pm — 2 Comments
भिखारी छंद -
24 मात्रिक - 12 पर यति - पदांत-गा ला
साजन के दीवाने , दो नैना मस्ताने ।
कभी लगें ये अपने , कभी लगें बेगाने ।।
पागल दिल को भाते, उसके सपन सुहाने ।
खामोशी की बातें, खामोशी ही जाने ।।
=×=×=×=
रैन काल के सपने , भोर लगें अनजाने ।
अवगुंठन में बनते , प्यार भरे अफसाने ।।
बिन बोले ही होतीं , जाने क्या-क्या बातें ।
मन से कभी न जातीं , आलिंगन की रातें ।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 8, 2022 at 4:54pm — 4 Comments
दुर्घटना ....(लघुकथा)
"निकल लो उस्ताद । बहुत भयंकर दुर्घटना हुई है । लगता है वो शायद मर गया है ।" कल्लू हेल्पर ने ड्राइवर रघु से कहा ।
रघु ने व्यू मिरर से पीछे देखा तो दुर्घटना स्थल पर भीड़ दिखी । रघु ने ट्रक भगाने में भलाई समझी । रघु वहाँ से चला तो घर जा कर रुका।
"कल्लू ये घर पर भीड़ कैसी है ।" रघु ट्रक रोकते हुए बोला ।
भीड़ को चीरते हुए रघु जैसे ही अन्दर पहुंचा, तो देख कर सन्न रह गया । उसका 10 साल का इकलौता बेटा रक्तरंजित बीच आँगन में तड़प रहा…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 6, 2022 at 12:52pm — 2 Comments
दोहा त्रयी : सागर
सागर से बादल चला, लेकर खारा नीर ।
धरती को लौटा रहा, मृदु बूँदों का क्षीर ।।
जाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर ।
पीते -पीते हो गया , खारा उसका नीर ।।
लहरों से गीले सदा, रहते सागर तीर ।
बन कर कितने ही मिटे, यहाँ स्वप्न प्राचीर ।।
सुशील सरना / 31-10-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 31, 2022 at 12:51pm — 10 Comments
गीतिका
आधार छंद - चौपई (जयकरी छंद )-15 मात्रिक -पदात-गाल
साँसें जीवन का शृंगार ।
बिना साँस सजती दीवार ।
कब जीवित का होता मान ,
चित्रों को पूजे संसार ।
मिलता अपनों से आघात ,
इनका प्यार लगे बेकार ।
पल-पल रिश्ते बदलें रूप ,
मतभेदों से पड़ी दरार ।
बड़ा अजब जग का दस्तूर ,
भरे प्यार में ये अंगार ।
सुशील सरना / 17-10-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 17, 2022 at 5:40pm — 10 Comments
दशहरा पर्व पर कुछ दोहे. . . .
सदियों से लंकेश का, जलता दम्भ प्रतीक ।
मिटी नहीं पर आज तक, बैर भाव की लीक।।
सीता ढूँढे राम को, गली-गली में आज ।
लूट रहे हर मोड़ पर, देखो रावण लाज ।।
मन के रावण के लिए, बन जाओ तुम राम।
अंतस को पावन करो,हृदय बने श्री धाम।।
कहते हैं रावण बड़ा, जग में था विद्वान ।
पर नारी के मोह ने, छीनी उसकी जान ।।
माँ सीता का कर हरण, इठलाया लंकेश ।
मिटा दिया फिर राम ने, लंकापति…
Added by Sushil Sarna on October 5, 2022 at 1:00pm — 6 Comments
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