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Nilesh Shevgaonkar's Blog (183)

ग़ज़ल -निलेश 'नूर' $अगर राधा न बन पाओ बनो मीरा मुहब्बत में$

१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,

**

हुआ है तज्रिबा मत पूछ हम को क्या मुहब्बत में,........पहले तज़ुर्बा लिखा था जो गलत था .. अत: मिसरे में तरमीम की है. 

लगा दीदा ए तर का आब भी मीठा मुहब्बत में.

**

जो चलते देख पाते हम तो शायद बच भी सकते थे,

नज़र का तीर दिल पे जा लगा सीधा मुहब्बत में.

**

ख़ुमारी छाई रहती है, ख़लिश सी दिल में होती है,      

अजब है दर्द जो ख़ुद ही लगे चारा मुहब्बत में.

**

रवायत आज भी भारी ही…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 9:00am — 16 Comments

ग़ज़ल.. निलेश 'नूर' --चलो चलें अब यहाँ से यारो, रहा न अपना यहाँ ठिकाना

1 २ १ २ २ / १ २ १ २ २/ १ २ १ २ २ /१ २ १ २ २

चलो चलें अब यहाँ से यारो, रहा न अपना यहाँ ठिकाना,

नहीं रहा अब, जो हम से रूठे, किसे भला है हमें मनाना.

***

था इश्क़ हमको, था इश्क़ तुमको, मगर बगावत न कर सकें हम,

न तुम ने छोड़ा, न बेवफ़ा हम, न तुम ने समझा, न हम ने जाना.

***

शराब छोड़ी, नशा बुरा था, नज़र से पी ली, नज़र मिलाकर,

नज़र नज़र में नशा चढ़ा यूँ, वो भूल बैठा मुझे पिलाना.

***

न फेरियें मुंह, अभी से साहिब, अभी सफ़र ये शुरू हुआ है,

कत’आ करो…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 15, 2013 at 1:00pm — 21 Comments

इस मंच पर ग़ज़ल कहने का प्रथम प्रयास.. एक तरही ग़ज़ल .."ज़रूरत से ज़ियादा क्यूँ करें हम?"

1222, 1222, 122.

.

ज़रूरत से ज़ियादा क्यूँ करें हम?

लहू दिल से निचोड़ा क्यूँ करें हम?

.

फ़ना हो जाएगा सबकुछ जहां में,

ये झूठा फिर दिखावा क्यूँ करें हम?

.

उगेंगे एक दिन कांटें ही कांटें,

ज़हन में याद बोया क्यूँ करें हम?

.

नहीं परवाह है उनको हमारी,

बिना कारण ही रोया क्यूँ करें हम?

.

हमारे काम खुद ही बोलतें है,

ज़ुबानी कोई दावा क्यूँ करें हम?

.

जुदा है रास्ते तुमसे हमारे,

बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on October 13, 2013 at 12:30pm — 26 Comments

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