For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Dr. Vijai Shanker's Blog (202)

क्षणिकायें 01/23 - डॉ० विजय शंकर

वक़्त अच्छा है
तो सब अच्छा है ,
वर्ना बुरे वक़्त से
बुरा, कुछ नहीं। ....... (1)

जोड़ना और जुड़ जाना भी
एक बहुत बड़ा  हुनर है।
अक्सर लोग , टूट कर ,
खुद ही बिखर जाते हैं ,
दूसरों को तोड़ने में । ... (2)

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on September 24, 2023 at 5:30pm — 6 Comments

सत्य और झूठ -- डॉ० विजय शंकर

सत्य अटल है , स्थिर है ,
झूठ न अटल है ,न स्थिर है।
समय के अनुसार परिवर्तन शील है ,
परिस्थिति वश बदल जाता है ,
हर हाल से समझौता कर लेता है ,
मुखर है , निडर है ,सर चढ़ कर बोल लेता है ,
बहुरंगी है , बहुधन्धी है ,
इसलिए हर जगह चलता है ,
सत्य स्थिर है , अटल है ,
सत्य खोजना पड़ता है ,
झूट स्वयं उपस्थित हो जाता है.

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on September 14, 2023 at 10:00pm — 4 Comments

क्षणिकाएं ( मार्च 22 ) — डॉo विजय शंकर

हम समझते थे , 

झूठ के करोड़ों प्रकार होते हैं।
यहां तो सच भी हर एक का
अपना अपना हैं। .......... 1. 

तुम बेशक मेरे रास्ते में
रोड़े बिछा सकते हो ,
मेरा नसीब नहीं बदल सकते,
अगर बदल सकते तो
अपनी तक़दीर बदलते ,
दूसरों के रास्ते में यूं
रोड़े नहीं बिछाते रहते।......... 2.

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2022 at 9:59am — 2 Comments

भूख नैसर्गिक है — डॉo विजय शंकर

भूख नैसर्गिक है ,

पर रोटी , रोटी

नैसर्गिक नहीं है।

भूख का निदान

स्वयं को करना होता है ,

रोटी कमानी पड़ती है ,

रोटी खरीदनी पड़ती है ,

रोटी पर टैक्स चुकाना पड़ता है ,

रोटी निदान है , आय का जरिया है।

भूख ऐसी कुछ नहीं , उसका निदान ,

आदमी से क्या कुछ नहीं करा देता है ,

उसे एक शब्द में कमाई कह देते हैं।

अपने लिए , अपने पेट के लिए।

सब कुछ नैसर्गिक है ......... ?

व्यापार के लिए , राजस्व के लिए।

मौलिक…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on November 27, 2021 at 11:29am — 2 Comments

क्षणिकाएं (२०२१ -१ )- डॉo विजय शंकर

जो समझते हैं

वे जमे पड़े हैं ,

ये ख्याल है उनका ,

सच में तो वे

केवल पड़े हैं। .........1 .

छत पड़ी भी नहीं

और बुनियाद खिसक रही है ,

वो महल बनाने चले थे

कितनों की झोपड़ी भी उजड़ गई ,

लोग फिसल रहे हैं या उनके

पैरों के नीचे जमीन खिसक रही है। ......... 2 .

यूँ ही सफर में ही गुजर जाए , जिंदगी

अच्छा है ,

जिनकी तलाश हो

वो मंजिलों पे मिला नहीं करते ll ......... 3 .

मौलिक एवं…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 27, 2021 at 8:30pm — 13 Comments

विसंगति —डॉo विजय शंकर

बीते कुछ दिनों में लगा
कि हम कुछ बड़े हो गये ,
अहंकार से फूलने लगे
और फूलते...चले गए।
फूले इतना कि हर समस्या
के सामने बौने हो गये।
यकीन नहीं होता कि
आदमी खुद कुछ नहीं होता ,
ये जानने के बाद भी ,
कुछ का ख्याल हैं कि
लूटो-खाओ, पाप-पुण्य
कहीं कुछ नहीं होता ,
भगवान भी कहीं नहीं होता।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on April 30, 2021 at 10:48am — 2 Comments

मुहब्बत हो जाती है - डॉo विजय शंकर

मुहब्बत हो जाती है ,
मुहब्बत हो जाती है ,
मुहब्बत हो जाती है ,
ये तो नफ़रतें हैं ,
जिनके लिए टेंडर
निकाले जाते हैं . 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on April 25, 2021 at 10:00pm — 2 Comments

दो लघु कवितायें —डॉo विजय शंकर

( एक )

लोग राजनीति में बड़े - बड़े

बदलाव लाने के लिए आते हैं।

सत्ता में आते ही कद-काठी ,

डील-डौल , रंग-रूप , वाणी ,

पहनावा सब बदल जाते हैं ,

सबसे बड़ी बात , चेहरे - मोहरे

और इरादे तक बदल जाते हैं।



( दो )

वह गतिमान है ,

चलते रहना उसकी प्रकृति।

वह समय है , गुजर जाता है।

पर अतीत को छोड़ जाता है ,

और छोड़ जाता है ,

अतीत के अवशेष, धरोहरें,

स्मृतियाँ , स्मारक , कहानियां।

समय प्रति क्षण चलायमान…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 17, 2020 at 9:30am — 6 Comments

कौन हो तुम — डॉo विजय शंकर

ओजस्वी तेजस्वी

से दिखाई देते हो ,

अपनी जयकार से

आत्म मुग्ध लगते हो।

आईने में खुद को

रोज ही देखते हो ,

क्या खुद को

कुछ पहचानते भी हो।

बड़े आदमी हो , बहुत बड़े ,

लोग तुम्हें जानते हैं ,

बच्चे सामान्य ज्ञान के लिए

तुम्हारा नाम रटते और जानते हैं ,

रोज कितने ही लोग तुम्हारी ड्योढ़ी

पर खड़े रहते हैं , टकटकी लगाए ,

कितने आदमी तुमसे रोज ही

मिलने के लिए आते रहते हैं ,

तुम भी कभी किसी से

आदमी की तरह मिलते हो…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 4, 2020 at 11:28am — 8 Comments

क्षणिकाएं — डॉ0 विजय शंकर

वाह जनतंत्र ,

कुर्सी स्वतंत्र ,

आदमी परतंत्र।

कल कुर्सी पर था

तो स्वतंत्र था ,

आज हट गया ,

परतंत्र हो गया।........... 1.

किसी को भी कहीं भी

यूं ही बुरा बोल देते हो।

सच , किसी बुरे को भी

कभी बुरा बोल लेते हो।...........2.

कुछ कर न कर

दूसरे के काम में

दखल जरूर कर।

अच्छा बोल , बुरा

बोल , कैसा भी बोल,

शहद में लपेट कर बोल l.......... 3.

मौलिक एवं…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 28, 2020 at 6:57am — 8 Comments

नसीब — डॉo विजय शंकर

एक उम्र भर हम
लोगों को समझते रहे।
हालातों को समझते रहे ,
दोनों से समझौता करते रहे ,
दुनिया में समझदार माने गए।
बस अफ़सोस यह ही रहा ,
हमें कोई ऐसा मिला ही नहीं ,
या नसीब में था ही नहीं ,
जिसे हम भी समझदार मानते
और हम भी समझदार कहते।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on July 20, 2020 at 10:31pm — 2 Comments

दो लघु-कवितायें — डॉo विजय शंकर

सच्चे मन से ईश्वर

मंदिर से अधिक

अस्पतालों में

याद किया जाता है l 

जो…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 12, 2020 at 8:30am — 2 Comments

हिसाब-किताब— डॉO विजय शंकर।



उम्र साठ-सत्तर तक की ,

आदमी पांच पीढ़ियों से रूबरू हो लेता है।

देखता है , समझ लेता है कि

कौन कहाँ से चला , कहाँ तक पहुंचा ,

कैसे-कैसे चला , कहाँ ठोकर लगी , ,

कहाँ लुढ़का , गिरा तो उठा या नहीं उठा ,

और उठा तो कितना सम्भला।

कर्म , कर्म का फल , स्वर्ग - नर्क ,

कितना ज्ञान , विश्वास , सब अपनी जगह हैं।

हिसाब -किताब सब यहीं होता दिखाई देता है।

बस रेस में दौड़ने वालों को सिर्फ

लाल फीता ही दिखाई देता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 2, 2020 at 9:36am — 4 Comments

दुनिया में दुनिया - डॉo विजय शंकर

इस दुनिया में
हर आदमी की
अपनी एक दुनिया होती है।
वह इस दुनिया में
रहते हुए भी अपनी
उस दुनिया में रहता है।
उसी में रह कर रहता है ,
उसी में सोचता है ,
उसी में जीता है।
**************************
वो बेहद खुशनसीब हैं
जो रिश्तों को जी लेते हैं ,
वफ़ा के लिए जी लेते हैं ,
वफ़ा के लिए मर जाते हैं ,
बाकी तो सिर्फ ,इन्हें
निभाते-निभाते मर जाते हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2020 at 9:30am — 9 Comments

दूसरे का दर्द - डॉo विजय शंकर

दर्द की एक
अजब अनुभूति होती है ,
अपने और अपनों के दर्द
कुछ न कुछ तकलीफ देते हैं।
कभी किसी बिलकुल
दूसरे के दर्द को महसूस करो ,
वो तकलीफ तो कुछ ख़ास
नहीं देते हैं , पर जो दे जाते हैं
वो किसी भी दर्द से भी
कहीं अधिक कीमती होता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on November 26, 2019 at 11:57am — 14 Comments

अकेलापन —डॉo विजय शंकर

जिंदगी जीने का मौक़ा ,

भीड़ से निकल कर मिलता है ,

माहौल कुछ इस कदर

असर करता है।

अकेले हों तो ख़ुद से बात

करने का मौक़ा मिलता है l

भीड़ में तो आदमी बस

दूसरों की सुनता है।

हर आदमी कोई न कोई

सवाल लिए मिलता है ,

आपको अपनी सुनाता है ,

फिर भी आपके जवाब

को कौन सुनता है ?

शायद इसीलिये अकेलापन

आपको बहुत कुछ सीखने

समझने का मौक़ा देता है।

जिंदगी जीने का मौक़ा तो

भीड़ से निकल कर ही मिलता है।

मौलिक…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on November 4, 2019 at 4:57pm — 14 Comments

प्रश्न , एक छोटी सी बहुत बड़ी कविता — डॉo विजय शंकर

प्रश्न ये है
कि अन्तोगत्वा
हाथ क्या लगता है ?
समझ में आ जाये
तो बताइये हाथ
आपका क्या लगता है ?

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on October 23, 2019 at 7:55am — 10 Comments

पुरोधा कौन — डॉo विजय शंकर

मूर्खता विद्व्ता के सर पर ताण्डव कर रही है ,

सर के अंदर छुपी विद्व्ता संतुलन बनाये हुए है ,

क्योंकि मूर्खता में कोई वजन नहीं है ,

विद्व्ता शालीन है , संयत है , संतुलित है

आराम से मूर्खता को ढोये जा रही है ,

क्योंकि यही युग धर्म है आज , शायद ,

कि वह मूर्खता को शिरोधार्य करे ,

उसे नाचने के लिए ठोस मंच दे , आधार दे।

युगदृष्टा जाने विद्व्ता ने शायद ही कभी

मूर्खता का पृश्रय लिया हो , उसे आधार बनाया हो।

भाषा वैज्ञानिक स्वयं भ्रमित…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 27, 2019 at 6:30pm — 4 Comments

क्या सोचते हैं हम — डॉo विजय शंकर

सोचता हूँ ,

अब तो यह भी सोचना पड़ेगा

कि कैसे सोचते हैं हम ?

कितनी सीमाओं में सोचते हैं हम ?

या किस सीमा तक सोचते हैं हम ?

कुछ सोचते भी हैं हम ?

अगर नहीं तो क्यों नहीं सोचते हैं हम ?

सच तो यह है कि ' बिना विचारे जो करे ' .....

भी नहीं सोचते हैं हम।

खुद में गज़ब का विश्वास रखते है हम ?

बस सोचने में क्रियाशील रहते हैं हम ,

जितनी तेजी से आगे जाते हैं

उतनी हे तेजी से लौट आते हैं।

नतीज़तन वहीं के वहीं रह जाते हैं हम।…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 23, 2019 at 10:01am — 6 Comments

क्षणिकाएं —डॉo विजय शंकर

एक नेता ने दूसरे को धोया ,
बदले में उसने उसे धो दिया।
छवि दोनों की साफ़ हो गई।।.......1.

मातृ-भाषा हिंदी दिवस ,
एक उत्सव हम ऐसा मनाते हैं ,
जिसमें हम हिंदी बोलने वालों से
उनकीं माँ का परिचय कराते हैं।। .......2 .

अपनों से हट के कभी
दूर के लोगों से भी मिला करो ,
वो कुछ देगा नहीं ... ,
हाँ ,धोखा भी नहीं देगा।l ....... 3 .

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on September 17, 2019 at 10:30am — 8 Comments

Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
4 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
4 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
5 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"विषय पर सार्थक दोहावली, हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service