ज़िंदगी में रह गया है अपनी तो बस अब यही
प्रदीप्ति में तुम रहो रहोगे,तिरगी में हम सही
किसको किससे प्यार कितना, क्या करोगे जानकर
उसका मुझसे कुछ है ज्यादा, औऱ मेरा कम सही
आ चलें मंदिर में,औऱ सौगंध खा कर ये कहें
साथ गर टूटेगा अगर तो, हम नहीं या तुम नहीं
पी रहे हो रात दिन, होकर मगन क्या सोचकर
बादा है जान लो तुम,आब-ए ये जमजम…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 20, 2019 at 12:00pm — 1 Comment
झूम के बरख़ा बरसी है ऐसे
जैसे दिन आया हो कोई ख़ास
मेरा तन भी भीगा मन भी भीगा
जगी अब पिया मिलन क़ी आस
पवन वेग से जल क़ी बूंदे कुछ
पूरब से पश्चिम तक हैं जाती
और पिया के सन्देशों को मेरे
अन्तर्मन की तह तक पहुँचाती
इससे पहले रुक जाए बरख़ा
तुम जल्दी घर आ जाओ ना
तप्त ह्रदय की ज्वाला की तुम
अपने नेह से प्यास बुझाओ ना
(मौलिक व अप्रकाशित)
- प्रदीप…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 19, 2019 at 4:41pm — 2 Comments
मुझको पता नहीं है, मैं कहाँ पे जा रही हूँ
तेरे नक़्श-ए-पा के पीछे,पीछे मैं आ रही हूँ
उल्फत का रोग है ये, कोई दवा ना इसकी
मैं चारागर को फिर भी,दुःखड़ा सुना रही हूँ
सुन के भी अनसुनी क्यूँ,करते हो तुम सदाएँ
फिर भी मैं देख तुमको यूँ मुस्कुरा रही हूँ
बेचैनियों का मुझ पर, आलम है ऐसा छाया
क्यो खो दिया है जिसको, पा कर ना पा रही हूँ
मुझे भूलना भी इतना ,आसाँ तो नहीं होगा
दिन रात होगें भारी, तुमको बता रही…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 6, 2019 at 11:30am — 1 Comment
प्रकृति हम सबकी माता है
सोच, समझ,सुन मेरे लाल
कभी अनादर इसका मत करना
वरना बन जाएगी काल
गिरना उठना और चल देना
तू स्वंय को रखना सदा संभाल
इतना भी आसाँ ना समझो
बनना सबके लिए मिसाल
सत्य व्रत का पालन करना
कभी किसी ना तू डरना
विपदाओं को मित्र बनाकर
बस थामे रहना ‘दीप’ मशाल
मौलिक…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 3, 2019 at 12:30pm — 2 Comments
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