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जयनित कुमार मेहता's Blog – December 2016 Archive (2)

मंजिल की चाह ने हमें रस्ते पे ला दिया (ग़ज़ल)

221 2121 1221 212



किसने मेरी उदासी पे ये क़ह्र ढा दिया

इक पल को मेरे लब पे तबस्सुम सजा दिया



तन्हाइयां, उदासियां, हैरत में पड़ गयीं

मुश्किल घड़ी जब आई तो मैं मुस्कुरा दिया



यूं सोचने पे रस्ते भी दुश्वार लगते थे

चलने लगे, पहाड़ों भी ने रास्ता दिया



हद से ज़ियादा बढ़ने लगा चाँद का ग़रूर

क़ुदरत को ग़ुस्सा आया तो धब्बा लगा दिया



मुद्दत हुई अंधेरों से टकरा रहा है वो

किसका है जाने मुन्तज़िर इक काँपता दिया



घर से निकल के आज ये… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on December 16, 2016 at 6:47am — 8 Comments

मुसाफ़िर थोड़े हूँ, मैं रास्ता हूँ (ग़ज़ल)

1222 1222 122



विरह की ठंड से जब काँपता हूँ।

तेरी यादों की चादर ओढ़ता हूँ।



पहुंचना ही नहीं मुझको कहीं पर

मुसाफ़िर थोड़े हूँ, मैं रास्ता हूँ।



न जाने कौन मुझको मिल गया है

कई दिन से मैं ख़ुद से लापता हूँ



बस इक उम्मीद का आलम है ये, मैं

हर आहट पर उचक कर देखता हूँ।



हुआ है ख़ाक कब का जिस्म मेरा

मैं अब तक उसमें दिल को ढूंढता हूँ।



उफनता है तेरी यादों का दरिया

मैं रफ़्ता-रफ़्ता उसमें डूबता हूँ।



(मौलिक व… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on December 7, 2016 at 5:08pm — 8 Comments

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गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
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सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
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Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
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"धन्यवाद आदरणीय "
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Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
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