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शायरी चीज़ ही ऐसी है यार (ग़ज़ल)

2122 1122 22

हर घड़ी? चीज़ ही ऐसी है यार..!
शायरी चीज़ ही ऐसी है यार..!

तिश्नगी और भड़क जाती है,
उफ़! नदी चीज़ ही ऐसी है यार..!

कोई हँसता है, कोई रोता है
ज़िन्दगी चीज़ ही ऐसी है यार..!

चाँद का नूर भी फीका पड़ जाए
सादगी चीज़ ही ऐसी है यार..!

लो! हुआ मैं भी अब आदम से मशीन
नौकरी चीज़ ही ऐसी है यार..!

साथ अश्क़ों के गुज़रती है उम्र
आशिक़ी चीज़ ही ऐसी है यार..!

सारा दरिया पी के भी बाक़ी है
तिश्नगी चीज़ ही ऐसी है यार..!

राब्ता आंसुओं से है इसका
ये ख़ुशी चीज़ ही ऐसी है यार..!

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Samar kabeer on July 1, 2017 at 12:26pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,अभी पिछली ग़ज़ल पर आपने किसी भी टिप्पणी का उत्तर नहीं दिया है,और आज ये ग़ज़ल सामने है, भाई,मंच के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें,और अपनी कुछ तो सक्रियता दिखाएँ,ये मेरा आपसे निवेदन है ।
अब आपकी ये ग़ज़ल,मतले के दोनों मिसरे अलग अलग हैं,उनमें रब्त नहीं है,कुछ ऊला मिसरों की बह्र भी चेक कीजिये,कुछ अशआर ठीक हैं,इसके लिए आपको मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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