For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Naveen Mani Tripathi's Blog – October 2016 Archive (6)

ग़ज़ल - मेरे गर्दिशों का आलम तुझे देखना न आया

ग़ज़ल



1121 2122 1121 2122

था नसीब का तकाजा वो बना ठना न आया ।

मेरे गर्दिशों का आलम तुझे देखना न आया ।।



कई जख़्म सह गए हम ये निशान कह रहे हैं ।

तेरी बदसलूकियों पे , मुझे रूठना न आया।।



ये वफ़ा की थी तिज़ारत,मैं समझ सका न तुझको ।

है सितम का इन्तिहाँ ये , मुझे टूटना न आया ।।



हुए हम भी बे खबर जब,वो नई नई थी बंदिश।

वो ग़ज़ल की तर्जुमा थी , हमे झूमना न आया ।।



था सराफ़तों का मंजर ,वो झुकी हुई निगाहें ।

बड़ी तेज आंधियाँ थीं ,… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 28, 2016 at 1:00am — 2 Comments

ग़ज़ल - जाती तेरे मिज़ाज से क्यूँ बेरुख़ी नहीं

221 2121 1221 212

बुझते रहे चिराग गई तीरगी नही ।

फिर भी हवा के रुख से मेरी दुश्मनी नही ।।





आ जाइए हुज़ूर मुहब्बत के वास्ते ।

दैरो हरम में आज कहीं बेबसी नहीं ।।





बहकी अदा के साथ बहुत आशिकी हुई ।

गुजरी तमाम रात मिटी तिश्नगी नहीं ।।





कब से नज़र को फेर के बैठी है वो सनम ।

शायद मेरे नसीब में वो बात ही नहीं ।।





माना कि गैर से है ये वादा भी वस्ल का ।

उल्फ़त की बेखुदी में कहीं रौशनी नही ।।





तेरा… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 24, 2016 at 1:00am — 6 Comments

दीवानगी में हम वफ़ा लिखते गए

‌2212 2212 2212

.

दीवानगी में हम वफ़ा लिखते गए ।

तुम बेखुदी में बस जफ़ा पढ़ते गए ।।



पूछा किया वो आईने से रात भर ।

आवारगी में हुस्न क्यूँ ढलते गए ।।



आयी तबस्सुम जब मेरी दहलीज पर ।

देखा चिराग़े अश्क भी जलते गए ।।



नादानियों में फासलो से बेखबर ।

बस जिंदगी भर हाथ को मलते गए ।।



तालीम ले बैठा था जब इन्साफ की ।

क्यूँ मुज़रिमो के फैसले बदले गए ।।



जिसकी बेबाकी के चर्चे थे बहुत ।

तहज़ीब को अक्सर वही छलते गए…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 22, 2016 at 7:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल - ये जिंदगी है यहाँ इम्तहान और भी हैं

1212 1122 1212 112



हमारे जख़्म के गहरे निशान और भी हैं ।

ये जिंदगी है यहाँ इम्तहान और भी हैं ।।



न रोक आज परिंदों की आजमाइश को ।

फ़ना के बाद कई आसमान और भी हैं ।।



समझ सको तो मेरी बात मान लो वरना ।

मेरी किताब में लिक्खी जुबान और भी हैं ।।



जरा सँभल के चलो ये मुकाम ठीक नही ।

यहां तो लोग भी रखते इमान और भी हैं ।।



न जाइयेगा कभी इश्क के समन्दर में ।

वहाँ तो दर्द के बढ़ते उफान और भी हैं ।।



जो हुक्मरां है उसे… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 19, 2016 at 2:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल - हर मयकशी के बीच कई सिलसिले मिले

221 2121 1221 212



हर मयकशी के बीच कई सिलसिले मिले ।

देखा तो मयकदा में कई मयकदे मिले ।।



साकी शराब डाल के हँस कर के यूं कहा।

आ जाइए हुजूर मुकद्दर भले मिले ।।



कैसे कहूँ खुदा की इबादत नहीं वहां ।

रिन्दों के साथ में भी नए फ़लसफ़े मिले ।।



यह बात और है की उसे होश आ गया ।

वरना तमाम रात उसे मनचले मिले ।।



जिसको फ़कीर जान के लिल्लाह कर दिया ।

चर्चा उसी के घर में ख़ज़ाने दबे मिले ।।



मुझ से न पूछिए कि…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 17, 2016 at 3:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल

221 2121 1221 212



बिकते रहे ईमान हुकूमत की फेर में ।

मरते गए जवान हिफ़ाज़त की फेर में ।।



नापाक पाक है ये खबर आम हो गई ।

बरबादियाँ तमाम नसीहत की फेर में ।।



कुछ दर्द को बयां वो सरेआम कर गया ।

मिटता रहा ये मुल्क शराफ़त की फेर में ।।



आ जाइए हुजूर ये हिन्दोस्तान है ।

गद्दार बिक रहे हैं रियासत के फेर में ।।



ऐटम की धमकियों का असर कुछ नही हुआ ।

हम भी पड़े हुए हैं हिमाकत की फेर में।।



सुन ले मेरे रकीब जमाना बदल गया… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 7, 2016 at 9:25am — 2 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
10 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service