हमारे जीवन मूल्य
सरेआम नीलाम हो जायेंगें
हम फिर से गुलाम हो जायेंगें ..
स्वतंत्रता का काल स्वर्णिम
तेजी से है बीत रहा
हासिल हुआ जो मुश्किल से
तेजी से है रीत रहा.
धरी रह जाएगी नैतिकता,
आदर्श सभी बेकाम हो जाएँगे .
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..
कहों ना ! जो सत्य है.
सत्य कहने से घबराते हो
सत्य अकाट्य है , अक्षत
छूपता नहीं छद्मावरण से
जो प्राचीन है , धुंधला,
गर्व उसी पर करके बार बार दुहराते हो.
टूटे…
Added by Neeraj Neer on April 23, 2014 at 8:30am — 10 Comments
क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल
है पिया मिलन की आस
या बीत चुका मधुमास
वियोग की है वेदना
या पारगमन है पास
मत जाओ न रह जाओ यह छोड़ अम्बर भूतल
क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल
तू गाती तो आता
यह वसंत मदमाता
तू आती तो आता
मलयानिल महकाता
तू जाती तो देता कर जेठ मुझे बेकल
क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल
कलि कुसुम का यह देश
रह बदल कोई वेष
सुबह सबेरे आना
हौले से तुम गाना…
Added by Neeraj Neer on April 19, 2014 at 8:30pm — 9 Comments
कभी कभी खो जाता हूँ ,
भ्रम में इतना कि
एहसास ही नहीं रहता कि
तुम एक परछाई हो..
पाता हूँ तुम्हें खुद से करीब
हाथ बढ़ा कर छूना चाहता हूँ.
हाथ आती है महज शुन्यता .
स्वप्न भंग होता है ..
पर सत्य साबित होता है
क्षणभंगुर.
स्वप्न पुनः तारी होने लगता है.
पुनः आ खड़ी होती हो
नजरों के सामने ..
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं प्रकाशित
Added by Neeraj Neer on April 16, 2014 at 8:07am — 13 Comments
सुगंध बनकर आ जाओ तुम
मेरे जीवन के मधुबन में
प्रेम सिंचित हरी वसुंधरा
पल पल में जीवन महकाओ
परितप्त ह्रदय के मरुतल पर
मेघा दल बन कर छा जाओ
बस जाओ न प्रतिबिम्ब बनकर
मेरे जीवन के दर्पण में.
सुगंध बनकर आ जाओ तुम
मेरे जीवन के मधुबन में ..
तुझ से ही है मेरा होना
तुझ से मिलकर हँसना रोना
तुम चन्दा , मैं टिम टिम तारा
अर्पण तुझ पर जीवन सारा
तुझ से दूर रहूँ मैं कैसे
आसक्त बंधा हूँ बंधन में
सुगंध बनकर आ जाओ…
Added by Neeraj Neer on April 9, 2014 at 10:01am — 14 Comments
गाँव की फिजाओं में
अब नहीं गूंजते
बैलों के घूँघरू ,
रहट की आवाज.
नहीं दिखते मक्के के खेत
और ऊँचे मचान .
उल्लास हीन गलियां
सूना दृश्य
मानो उजड़ा मसान.
नहीं गूंजती गांवों में
ढोलक की थाप पर
चैता की तान
गाँव में नहीं रहते अब
पहले से बांके जवान.
गाँव के युवा गए सूरत, दिल्ली और
गुडगांव
पीछे हैं पड़े
बच्चे , स्त्रियाँ, बेवा व बूढ़े
गाँव के स्कूलों में शिक्षा की जगह
बटती है खिचड़ी.
मास्टर साहब…
Added by Neeraj Neer on April 6, 2014 at 12:30pm — 26 Comments
संध्या निश्चित है ,
सूर्य अस्ताचल की ओर
है अग्रसर ..
मुझे संदेह नहीं
अपनी भिज्ञता पर
तुम्हारी विस्मरणशीलता के प्रति
फिर भी अपनी बात सुनाता हूँ.
आओ बैठो मेरे पास
जीवन गीत सुनाता हूँ.
डूबेगा व सूरज भी
जो प्रबलता से अभी
है प्रखर .
तुम भूला दोगे मुझे, कल
जैसे मैं था ही नहीं कोई.
सुख के उन्माद में मानो
आने वाली व्यथा ही नहीं कोई.
सत्य का स्वाद तीखा है,
असत्य क्षणिक है,
मैं सत्य सुनाता हूँ…
Added by Neeraj Neer on April 1, 2014 at 9:24am — 12 Comments
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