एक नदी पर एक पुल था , जिसमे सात पाये थे। एक बार सबसे बीच वाले पाए ने सबसे किनारे वाले पाए से कहा “जानते हो यह पुल मेरी वजह से ही है। नदी की जलधारा का सबसे ज्यादा प्रवाह मैं ही झेलता हूँ। मैं हमेशा पानी में डूबा रहता हूँ, तुमलोगों का क्या किनारे खड़े रहते हो, बरसात में कभी कभी नदी की जलधारा तुम तक पहुँचती है वरना सालो भर ऐसे ही खड़े रहते हो, तुम्हारी उपयोगिता ही क्या है। मेरे कारण ही लाखों लोग इस पुल का प्रयोग कर नदी के आर पार जा पाते हैं । “
किनारे वाले पाये ने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ दिनो बाद किनारे वाले दोनों पाये ढह गए। अब उस पुल का सड़क से संपर्क टूट गया। उस पुल का प्रयोग बंद हो गया। उसी पुल के बगल में एक नया पुल बन गया। लोग उसी पुल से आने जाने लगे । बीच वाला पाया चुपचाप पानी में खड़ा नए बने पुल और उस पर आते जाते लोगों को देखता रहता।
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ जी इस प्रयास को सराहने एवं उत्साहवर्धन हेतू आपका आभार ॥
आदरणीय श्री सुनील जी आपका आभार
उचित परिणाम के साथ लघुकथा का अंत होता है. आपके प्रयास केलिए हार्दिक धन्यवाद.
शुभेच्छाएँ.
आपकी बधाई अनमोल है आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब .... आपका आभार.
आदरणीया कांता रॉय जी रचना को समर्थन देने एवं उत्साह बढाए के लिए आपका बहुत आभार...
आभार आदरणीय विनय जी ... आपको रचना पसंद आई इससे उत्साहवर्धन हुआ है ..
आपका आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी.... आपकी सलाह सर आँखों पर....
नीर जी
इस लघु कथा केलिए मेरी और सा आपको बधाई , सुन्दर .
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