1222 1222 1222 1222
जगाकर दिल में उम्मीदें दिलों को तोड़ने वालो
हमारा क्या है हम तो बेसहारा हैं सो जी लेंगे
तुम्हारा दिल अगर टूटा तो फ़िर तुम जी न पाओगे
मिरे लख़्त-ए-जिगर सुन लो गमों को पी न पाओगे
जरा सा नर्म रक्खो इस गुमाँ के सख़्त लहजे को
ये चादर फट गयी गर ज़िंदगी की सी न पाओगे
यहाँ हर शय पे रहता है मिरी जाँ वक़्त का पहरा
अगर जो वक़्त बदला तो बचा हस्ती न पाओगे
हमें आदत है पीने की सो हम तो…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 30, 2021 at 11:22am — No Comments
जलता है जिस्म सुर्ख है किंदील के जैसे
इक झील दिन में लगती है किंदील के जैसे
हर शाम उतर आता है ये दरियाओं झीलों पर
मर फ़ासलाई होगी इक खगोलिये इकाई
दिखता भी सुर्ख सुर्ख है घामें लपेटे है
सूरज भी तो जलता है इक किंदील के जैसे
है तीरगी घनी घनी ज़हनों के अंदर तक
सब भूल जायें जात-पात हद-कद और सरहद
सब ख़ाक करके बंदिशें रौशन करें ख़ुद को
मैं भी जलू तू भी जले किंदील के जैसे
चलो मिलके सारे जलते हैं किंदील के जैसे
है धरती के…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 28, 2021 at 10:59am — No Comments
14-12
रास्ते सुनसान और घर, कैद खाने हो गये
खुशनुमा इंसान दहशत, के निशाने हो गये
बेबसी का हाल देखा, दिल दहल कर रह गया
मुफ़्लिसी में ज़िंदगी का, ख़्वाब जल कर रह गया
डर से कोरोना के भी, वो भला अब क्या डरे…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 24, 2021 at 11:30pm — 2 Comments
1222 1222 1222 1222
कफ़स में उम्र गुजरी है परिंदा उड़ न पायेगा
जो तुम आज़ाद भी कर दो घर अपने मुड़ न पायेगा
संभल जाना अगर कोई तुम्हें करने ख़ुदा आये
वगरना ऐसे तोड़ेगा कि दिल फ़िर जुड़ न पायेगा
वो चाहे बेड़ियों से हो या फ़िर की हो किसी दिल से
अगर जो पड़ गई आदत तो बंधन छुड़ न पायेगा
लुटेरे हैं ये सब मुफ़्लिस जो तुम विश्वास दिलाते हो
रिवायत बन गया गर ये भरम फ़िर तुड़ न पायेगा
तमाम आज़ी कुछ आदत…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 24, 2021 at 10:40am — No Comments
22 22 22 22 22 22 22 22
इक रोज़ लहू जम जायेगा इक रोज़ क़लम थम जायेगी
ना दिल से सियाही निकलेगी ना सांस मुझे लिख पायेगी
जिस रोज़ नये लब गाएंगे जिस रोज़ मैं चुप हो जाऊंगा
इक चाँद फ़लक से उतरेगा इक रूह फ़लक तक जायेगी
फिर नये नये अफ़सानों में कुछ नये नये चहरे होंगे
फिर नये नये किरदारों के किरदार नये गहरे होंगे
फिर कोई पिरोयेगा रिश्तों को नये नये अल्फाज़ों में
फिर कोई पुरानी रश्मों को ढालेगा नये रिवाज़ों…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 11, 2021 at 8:00pm — 7 Comments
ज़िंदगी भी मटर के जैसी है
तह खोलो बिखरने लगती है
कितने दाने महफूज़ रहते हैं उन फलियों की आगोशी में
कुछ टेढ़े से कुछ बुचके से कुछ फुले से कुछ पिचके से
हू ब हू रिश्तों के जैसे लगते हैं
कुनबे से परिवारों से कुछ सगे या रिश्तेदारों से
पर सभी आज़ाद होना चाहते हैं कैद से
रिवायतों से बंदिशों से बागवाँ से साजिशों से
ज़िंदगी भी मटर के जैसी है
तह खोलो बिखरने लगती है
(मौलिक व अप्रकाशित)
आज़ी तमाम
Added by Aazi Tamaam on April 8, 2021 at 2:00pm — 4 Comments
कोई ख़्वाब न होता आँखों में
कोई हूक न उठती सीने में
कितनी आसानी होती
या रब तन्हा जीने में
दिल जब से टूटा चाहत में
रिंद बने पैमानों के
ढलते ढलते ढल गई
सारी उम्र गुजर गई पीने में
यूँ ही सांसें लेते रहना
यूँ ही जीते रहना बस
हर दिन साल के जैसा 'गुजरा
हर इक साल महीने में
दुनिया डूबी लहरों में
हम डूबे यार सफ़ीने में
देखीं कैसी कैसी बातें
अज़ब ग़ज़ब दुनियादारी
वो कितने ना पाक…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 8, 2021 at 11:30am — 2 Comments
2122 1122 2112 2122
जैसे जैसे ही ग़ज़ल रूदाद ए कहानी पड़ेगी
वैसे वैसे ही सनम दिल की फज़ा धानी पड़ेगी
रश्म हर दिल को महब्बत में ये उठानी पड़ेगी
दिल जलाकर भी कसम दिल से ही निभानी पड़ेगी
ख़ुश न होकर भी ख़ुशी दिल में है दिखानी पड़ेगी
कुछ न कहकर भी रज़ा दिल की यूँ सुनानी पड़ेगी
हुस्न वालो की सुनो ना ख़ुद पे भी इतना इतराओ
लम्हा दर लम्हा महंगी तुम्हें न'दानी…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 7, 2021 at 3:00pm — 4 Comments
2212 2212 2222 2
मुझको तेरी आवाज़ से खुशबू आती है
तेरे हर इक अल्फाज़ से खुशबू आती है
आँचल से जैसे इत्र सा झरता रहता है…
Added by Aazi Tamaam on April 7, 2021 at 8:00am — 4 Comments
2122 1212 22/112
रोयेंगे और मुस्कुरायेंगे
उम्र भर तुम को गुनगुनायेंगे
तुम जो रहते हो बादलों में सनम
तुम को हम कैसे भूल पायेंगे
जब भी देखेंगे आसमानों को
दिल के अरमाँ मचल ही जायेंगे
ग़म की आँधी न रोक पायेंगे
अश्क आँखों से बहते जायेंगे
कैसे रोकेंगे हसरतें दिल की
चीख कर तुम को फ़िर बुलायेंगे
जी न पायेंगे मर न पायेंगे
दिल जलायेंगे…
Added by Aazi Tamaam on April 5, 2021 at 11:00am — No Comments
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