For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रामबली गुप्ता's Blog – March 2016 Archive (12)

पद्य-शृंगारिक एवं कृष्ण-स्तुति

(1)

चंद्रमुखी! हे मृगनयनी! क्या यौवन-रूप सजाया है।
ओष्ठ-अरुण मधुरस के प्याले, सुंदर कंचन-काया है।
लोच कमरिया-इंद्रधनुष, लट-केश घटा की छाया है।
कटि गगरी धर जाने वाली, तूने हृदय चुराया है।

(2)

मुरलीधर धर मुरली अधरन, ग्वालिंन को नचावत हो।
विश्वम्भर भर प्रेम हृदय में, राधा को रिझावत हो।
चक्रपाणि पाणि चक्र धर, अधर्म को मिटावत हो।
दामोदर दर-दर भटकूँ मैं, क्यों न मोहि उबारत हो?

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on March 28, 2016 at 3:00pm — 6 Comments

गीत-प्रीतम सपने में आये थे

प्रीतम सपने में आये थे।

सखि! मुझको बड़ा सताये थे।।

सुंदर वसन सजा तन पर,

वे मंद-मंद मुस्काये थे।

प्रीतम सपने में आये थे।

स्नेह-सेज पर सोई थी।

यादों मे उनके खोई थी।

नयनों ने पट ज्यों बंद किये।

उनके ही दर्शन पाये थे।

प्रीतम सपने में आये थे।

साँवली सूरत नैन विशाल।

लख छवि सखि! मैं हुई बेहाल।।

मणियों की माला साजे उर।

कंदर्प-रूप धरि आये थे।

प्रीतम सपने में आये थे।

प्यारी-प्यारी बातें कीन्हां।

बाहों में मुझको भर… Continue

Added by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 2:51pm — 5 Comments

गीत-ये प्रथम मिलन की रात

ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!

तुम भूल न जाना।

तन-यौवन-रूप सजाया ज्यों,

घर-बार सजाना।।

ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!

तुम भूल न जाना।



सुख-दुख में तुम सहभागी अब,

ये मन तुम पर अनुरागी अब।

तुमसे कुछ नही छिपाना है,

हिय का सब हाल बताना है।।

निश्छल मन में, निश्छल मन से,

अब तुम बस जाना।

ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!

तुम भूल न जाना।।



पतझड़-सा सूना जीवन था,

नीरस मेरा घर आँगन था।

अब तुम जीवन में आई हो,

सतरंगी सपने… Continue

Added by रामबली गुप्ता on March 21, 2016 at 10:57am — 11 Comments

आया सुखमय बसन्त-चौपाई छंद

आया सुखमय बसंत आया।

अंग-उमंग तरंगहि लाया।।

राग-रंग का ऋतु है भैया।

नाचे तन-मन ता ता थैया।।

नव पल्लव तरुओं पर आये।

पछुआ गुन-गुन गीत सुनाये।।

आम्रकुंज फूले बौराये।

सुरभित वात हृदय महकाए।।

सरसों के सुम पीले-पीले।

पीताम्बर-से भू पर फैले।।

सजी धरा-वधु हिय पुलकाए।

पीत वसन ज्यों तन पर छाए।।

पशु-पक्षी सब नाचे गायें।

कोयल नित नव राग सुनाये।।

मोर-मोरनी विहरें वन में।

नाचे-झूमें हरखें मन में।।

स्वच्छ गगन दिनकर ले… Continue

Added by रामबली गुप्ता on March 19, 2016 at 11:26am — 2 Comments

गीत-देखो आये ऋतुराज प्रिये!

देखो आये ऋतुराज प्रिये!

अंग-उमंग, तरंग भरे उर,

राग-रंग सुर-साज लिए।

देखो आये ऋतुराज प्रिये!



नित नवीन पल्लव तरु आए,

 सारे आम्रकुंज बौराए।

आये, कामदेव-सुत आये,

सुरभि-सुगंधित साथ लिए।

देखो आये ऋतुराज प्रिये!



चारो ओर कुसुम हर्षाएँ।

पुष्प पराग कलश छलकाएँ।।

तितली-भौंरे अति इतराएँ,

मन-मधुरस की आस लिए।

देखो आये ऋतुराज प्रिये!





पिक उपवन में कूक लगाएं,

हरखें, राग वागश्री गायें।

मोर-मोरनी रास… Continue

Added by रामबली गुप्ता on March 18, 2016 at 7:58pm — 2 Comments

कुण्डलिया छंद

सरस्वती माँ! शारदे, करूँ वंदना आज।
हर लो तम उर ज्ञान दो, सफल करो सब काज।।
सफल करो सब काज, जननि सुर में बस जाओ।
भर दो नित नव राग, हृदय में ज्योंति जगाओ।।
हरूँ जनों के त्रास, सुखी होए धरती माँ।
ऐसा दो वरदान, जयति जय सरस्वती माँ ।।

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on March 18, 2016 at 7:49pm — 3 Comments

मत्तगयन्द सवैया

आय गयो मधुमास सखी! प्रिय की अब याद सताय सदा रे।
रात कटे नहि प्रीतम के बिन जोगन हो गइ पंथ निहारे।
सौतन के घर जाय बसे प्रिय लीन्हि नही सुधि मोहि बिसारे।
नैनहि नीर बहे अब तो मन धीर धरे नहि आज पुकारे।

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on March 15, 2016 at 8:42pm — 4 Comments

कुण्डलिया छंद

मधु मधुऋतु मधुकाल हे! कुसुमाकर ऋतुराज।
रंग-बिरंगे पुष्प हैं, स्वागत में सुर-साज।।
स्वागत में सुर-साज, आज मन नाचे गाये।
अंग-अंग मदमात, पात नव तरु पर आये।।
वसुधा पुलकित आज, सजी जैसे नूतन वधु।
कोयल गाये राग, मधुप इतराएं पी मधु।।

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on March 15, 2016 at 7:39pm — 5 Comments

"छप्पय छंद"

करे वंदना आज, नाज हिय तुम पर करके।
रहो वीर सरताज, आज दो आँसूं छलके।।
तुम वीरों की शान, आन पर मिटने वाले।
देश करे अभिमान, जान-तन देने वाले।।
श्रद्धा-सुमन स्वीकार करो, राष्ट्र-क्रांति-प्रतिमान हे!
चंद्रशेखर! सत्य वीर्यवर! पूज्यमूर्ति-बलिदान हे!

--रामबली गुप्ता
क्रांतिवीर चंद्रशेखर आजाद को शत-शत नमन
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on March 10, 2016 at 4:37pm — 1 Comment

ग़ज़ल-आरजू तुमसे मिलने की करने लगी

वह्र-212 212 212 212





आरजू तुमसे मिलने की करने लगी।

हसरतें मेरे दिल की सँवरने लगीं।।



कौन हो तुम अभी जानती भी नही।

जाने तुम पर ही क्यूँ ऐसे मरने लगी।।



हो गया है मुझे क्या ऐ मेरे सनम।

आहटों पर भी मैं गौर करने लगी।।



हुश्न की हूँ परी सब मुझे बोलते।

तुमसे मिलके मैं इतना निखरने लगी।।



झूठ कुछ भी किसी से न कहती थी मैं।

तुमसे मिल के बहाने भी करने लगी।।



देख लूँ जो सनम तुम चले आ रहे।

बन के राहों में कलियाँ… Continue

Added by रामबली गुप्ता on March 9, 2016 at 11:30am — 3 Comments

कुण्डलिया छंद

"कुण्डलिया"

साजे उर अहि-माल तुम, हृदय बसो गिरिजेश।
उमा-सहित तुमको नमन, हे! व्योमेश महेश।।
हे! व्योमेश महेश, केश से निकली गंगा।
नाचें सुर-नर-शेष, धिनक-धिन बजे मृदंगा।।
भंग रमे तन-भस्म, डमाडम डमरू बाजे।
हरो जनों के कष्ट, शीश पर विधु को साजे।।

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on March 7, 2016 at 9:16pm — 6 Comments

कुण्डलिया छंद

कर्पूरी आभा लिए, हे! करुणा अवतार।
नाच रहे शशि-शिखर-धर, गले सर्प का हार।।
गले सर्प का हार, हरो जग-त्रास जगतपति।
नीलकण्ठ भगवान, करो कल्याण उमापति।।
विनय करूँ कर जोर, करो श्रद्धा सब पूरी।
बसो हृदय में ईश, लिए आभा कर्पूरी।।

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on March 7, 2016 at 3:30pm — 7 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"विषय पर सार्थक दोहावली, हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण भाईजी|"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाईसुशील जी, अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।  इसकी मौन झंकार -इस खंड में…"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"दोहा पंचक. . . .  जीवन  एक संघर्ष जब तक तन में श्वास है, करे जिंदगी जंग ।कदम - कदम…"
Saturday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"उत्तम प्रस्तुति आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service