ग़ज़ल (पत्थर निकला ) -------------------------
- 2122 ---1122 ---1122 --22
मेरि बर्बाद मुहब्बत का ये मंज़र निकला /
जिसको उल्फत का ख़ुदा समझा वो पत्थर निकला /
दिल को तस्कीन तो हासिल हुई हमदर्दी से
पर निगाहों से नहीं ग़म का समुन्दर निकला /
ज़ुल्म ने जब भी ज़माने में उठाया है सर
लेके ख़ुद्दार क़लम अपना सुख़नवर निकला /
नीम शब मिलने की तदबीर भी बेकार गयी
सुबह होते ही गली कूचे में महशर निकला…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 31, 2016 at 12:56pm — 21 Comments
रंगों की दुनिया में असुरक्षा का माहौल बनता देख लाल ,पीले और नीले रंग के मंत्रियों ने सफ़ेद रंग के सरदार से आपात मीटिंग बुलाने को कहा /हर तरह के रंगों को आमंत्रित किया गया /.... मीटिंग शुरू हुई --मुद्दा था ऐसा क्या करें कि हर वर्ग हमें प्यार से देखे /..... लाल और पीले रंग बोल उठे ,हमारे रंग को हिन्दुओं ने पसंद कर लिया ,मुसलमान हमारी तरफ अजीब नज़रों से देखते हैं /.... नीले और पीले एक साथ कहने लगे हम दोनों से बने हरे रंग को मुसलमानों ने अपना लिया , हिन्दू हमें नफरत की नज़र से देखते हैं /.....…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 31, 2016 at 10:00am — 7 Comments
2122 ----2122 -----2122 ----212
आप की गलियों के कुछ मंज़र हमें अच्छे लगे
ठोकरें खाते हुए पत्थर हमें अच्छे लगे
सुनके हर्फ़े आरज़ू माथे पे शिकनें पड़ गयीं
हुस्न के बिगड़े हुए तेवर हमें अच्छे लगे
इस तरफ आहो फ़ुग़ाँ और उस तरफ रंगीनियाँ
अहलेज़र से मुफ़लिसों के घर हमें अच्छे लगे
नर्म गद्दों के बजाये सो गए इक टाट पर
फ़ाक़ाकश मज़दूर के बिस्तर हमें अच्छे लगे
वक़्ते रुख़सत ग़म के मारे आगये जो आँख…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 10, 2016 at 7:00pm — 17 Comments
122 122 122 12
हमें मत भुलाना नये साल में
मुहब्बत निभाना नये साल में
ख़ुदा से दुआ आप मांगें यही
बढ़े दोस्ताना नये साल में
सुख़नवर फ़क़त तू हि बेहतरनहीं
न यह भूल जाना नये साल में
तुम्हारी ख़ुशी में ख़ुशी है मेरी
न आंसू बहाना नए साल में
खफ़ा हैं कई साल से यार जो
उन्हें है मनाना नए साल में
गये साल पूरी न हसरत हुई
गले से लगाना नये साल…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 3, 2016 at 6:00pm — 7 Comments
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