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दीपक कुमार
  • 40, Male
  • Munger
  • India
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"आदरणीय समर कबीर साहब, बहुत-बहुत शुक्रिया ! 'मेरे ख़्वाबों की ले गवाही लो मेरी आँखें लहू-लहू है वही' कृपया  ऊला मिसरे के बारे में थोड़ा विस्तार से बताएँगे शिल्प कमज़ोर क्यूँ है और इसे दुरुस्त कैसे किया जा सकता है, ताकि ग़ज़ल…"
Jun 27, 2020
दीपक कुमार replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-120
"ज़िंदगी तुझसे गुफ़्तगू है वही जुस्तजू थी जो, जुस्तजू है वही मेरे ख़्वाबों की ले गवाही लो मेरी आँखें लहू-लहू है वही हाल की बात हो या माज़ी की देख मंज़र चहार-सू है वही मिल सकूँ या न मिल सकूँ लेकिन "तुझसे मिलने की आरज़ू है वही" कौन आया है इतनी…"
Jun 27, 2020

Profile Information

Gender
Male
City State
New Delhi
Native Place
Munger, Bihar
Profession
L.D.C. in Government Service
About me
जाते-जाते मुझे जला जाना / मक़बरे का चिराग़ मैं ही हूँ

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दीपक कुमार's Blog

ग़ज़ल (नया नग्मा कोई गाओ)

1 2 2 2     1 2 2 2

नया नग्मा कोई गाओ

पुराने ग़म चले आओ

तुम्हें उड़ना सिखा दूँगा

मिरे पिंजड़े में आ जाओ

अकेलापन अगर अखड़े

उदासी को बुला लाओ

अरे भँवरे, अरी चिड़िया

ग़ज़ल कोई सुना जाओ

शजर बोला परिंदे से

मुहाजिर लौट भी आओ

हमारा दिल तुम्हारा घर

कभी आओ, कभी जाओ

 

मौलिक और अप्रकाशित

...दीपक कुमार

Posted on January 17, 2017 at 1:37pm — 9 Comments

ग़ज़ल (दिल ने धड़कन उधार ले ली है)

2 1 2 2  1 2 1 2   2 2/1 1 2 /2 2 1/1 1 2 1

दिल ने धड़कन उधार ले ली है

कितनी मोटी पगार ले ली है

ख़ूबसूरत लगी तो हमने भी

इक उदासी उधार ले ली है

फिर हवाओं से एक ताइर ने

दुश्मनी बार-बार ले ली है

हमने सुनसान राह में यादों की

इक रिदा ख़ुशगवार ले ली है

हँस-हँसा कर ज़रा संवर जाओ

आँसुओं से निखार ले ली है

 

मौलिक और अप्रकाशित

...दीपक कुमार

Posted on January 16, 2017 at 3:00pm — 5 Comments

ग़ज़ल (पिछली यादों में लौट आए हैं)

फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन/फइलुन

पिछली यादों में लौट आए हैं

हम बहारों में लौट आए हैं

जाग जाओ उदास ताबीरों 

ख़्वाब आँखों में लौट आए हैं

हम मिले भी यहीं, यहीं बिछड़े

किन ख़यालों में लौट आए हैं

चेहरे पे नूर लौट आएगा

अश्क आँखों में लौट आए हैं

जो मकानों से जा चुके थे मकीं 

वो मकानों में लौट आए हैं 

मौलिक और अप्रकाशित

...दीपक कुमार

Posted on January 6, 2017 at 10:30am — 10 Comments

ग़ज़ल (उदास रात के साये में ख़्वाब पहने हुए)

उदास रात के साये में ख़्वाब पहने हुए 

निकल पड़ा है मुसाफ़िर अज़ाब पहने हुए

डरा सकेगी नहीं जुगनुओं को तारीकी 

निकल पड़े हैं वो तो आफ़ताब पहने हुए

नज़र-नज़र से मिली और खा गये धोक़ा 

वो दिलफ़रेब मिली थी नक़ाब पहने हुए

यहाँ उदास मैं भी हूँ, वहाँ उदास वो भी है 

बहार भी है ख़िज़ां के गुलाब पहने हुए

लो आ गया मिरा महबूब फिर ख़्यालों में 

''सितारे ओढ़े हुए माहताब पहने हुए''

मौलिक व…

Continue

Posted on November 12, 2016 at 9:30am — 4 Comments

ग़ज़ल

सूद पहले फिर असल दो

इक मुहब्बत की ग़ज़ल दो

जो परिन्दे छत पे आयें

उनको दाने और जल दो

शक्ल वैसी ही रहेगी

आईना चाहे बदल दो

धर्मशाला है ये दुनिया

रात काटो और चल दो

ये बदन कल तक नया था

अब पुराना है बदल दो

तुम सवेरे-शाम आओ

मेरे जीवन में खलल दो

......दीपक कुमार

Posted on January 10, 2012 at 7:13pm — 14 Comments

ग़ज़ल

सामान उठाते हैं

अब लौट के जाते हैं

दिल मेरा दुखाने को

अहबाब भी आते हैं

ये चाँद-सितारे भी

रातों को रुलाते हैं

जो टूट के मिलते थे

वो रूठ के जाते हैं

मैं उनका निशाना हूँ

वो तीर चलाते हैं

हम अपनी उदासी को

हँस-हँस के छुपाते हैं

की ख़ूब अदाकारी

पर्दा भी गिराते हैं

.......दीपक कुमार

Posted on January 10, 2012 at 12:25am — 10 Comments

Comment Wall (8 comments)

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At 9:04pm on March 1, 2014,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

जन्म दिन की हार्दिक बधाई, ईश्वर आपको प्रत्येक क्षेत्र में सफल करें ......

At 11:43am on January 9, 2012, Arun Sri said…

और ये मेरा सौभाग्य है !

At 1:05pm on March 1, 2011, PREETAM TIWARY(PREET) said…
MANY MANY HAPPY RETURNS OF THE DAY DEEPAK BHAI....HAVE A GREAT TIME
At 9:01am on March 1, 2011,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 12:09am on September 19, 2010,
सदस्य टीम प्रबंधन
Rana Pratap Singh
said…

At 6:08pm on September 18, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 10:34pm on September 17, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…

At 8:34pm on September 17, 2010, Admin said…

 
 
 

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"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday

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