For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Zohaib Ambar
  • Male
  • Amroha, Uttar Pradesh
  • India
Share on Facebook MySpace
 

Zohaib Ambar's Page

Latest Activity

Samar kabeer commented on Zohaib Ambar's blog post ग़ज़ल
"जनाब ज़ोहेब 'अम्बर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें । ग़ज़ल के साथ अरकान भी लिख दिया करें,इससे नए सीखने वालों को आसानी होती है । 'यारों हमारे नाम से है मयक़दे की शान' इस मिसरे में 'यारों' को…"
Jan 29, 2020
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Zohaib Ambar's blog post ग़ज़ल
"आ. जोहेब भाई, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।"
Jan 28, 2020
रवि भसीन 'शाहिद' commented on Zohaib Ambar's blog post ग़ज़ल
"जनाब ज़ोहेब अम्बर साहब, आदाब। इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर आपको शेर दर शेर हार्दिक बधाई।"
Jan 27, 2020
Zohaib Ambar posted a blog post

ग़ज़ल

माना नशात ए ज़ीस्त है बेज़ार आज भी,हम हैं मता ए ग़म के ख़रीदार आज भी..माना बदल चुकी है ज़माने कि हर रविश,दो चार फिर भी मिलते हैं गम-ख़्वार आज भी..बच कर जहां पे बैठ सकें ग़म की धूप से,मिलता नहीं वो सायए दीवार आज भी..सुलझेंगी किस तरह मिरि किस्मत की उलझनें,उलझे हुऐ हैं गेसुए-ख़मदार आज भी..यारों हमारे नाम से है मयक़दे की शान,मशहूर है तो हम ही गुनहगार आज भी..आवाज़-ए-हक़ दबाये दबी है न दब सके,मन्सूर है बहुत से सर-ए-दार आज भी..सींचा है अपने ख़ून से हमने भी ये चमन,"अम्बर" हमीं नहीं है वफ़ादार आज भी..!!मौलिक एवं…See More
Jan 26, 2020
Zohaib Ambar updated their profile
Jan 26, 2020

Profile Information

Gender
Male
City State
Amroha U.P.
Native Place
Amroha
Profession
Unamploid

Zohaib Ambar's Blog

ग़ज़ल

माना नशात ए ज़ीस्त है बेज़ार आज भी,

हम हैं मता ए ग़म के ख़रीदार आज भी..

माना बदल चुकी है ज़माने कि हर रविश,

दो चार फिर भी मिलते हैं गम-ख़्वार आज भी..

बच कर जहां पे बैठ सकें ग़म की धूप से,

मिलता नहीं वो सायए दीवार आज भी..

सुलझेंगी किस तरह मिरि किस्मत की उलझनें,

उलझे हुऐ हैं गेसुए-ख़मदार आज भी..

यारों हमारे नाम से है मयक़दे की शान,

मशहूर है तो हम ही गुनहगार आज भी..

आवाज़-ए-हक़ दबाये दबी है न दब सके,

मन्सूर…

Continue

Posted on January 26, 2020 at 9:55pm — 3 Comments

ग़ज़ल (ज़ख्म सारे दर्द बन कर)

दर्द सारे ज़ख्म बन कर ख़ुद-नुमा हो ही गये,

राज़-ए-पोशीदा थे आख़िर बरमला हो ही गये..

तू ना समझेगा हमें थी कौन सी मजबूरियाँ,

तेरी नज़रों में तो अब हम बे-वफ़ा हो ही गये..

इश्क़ क्या है, क्या हवस है और क्या है नफ़्स ये,

उठते उठते ये सवाल अब मुद्द'आ हो ही गये..

एक मुददत बाद उस का शहर में आना हुआ,

बे-वफ़ा को फिर से देखा औ फ़िदा हो ही गये..

फिर सुख़न में रंग आया उस ख़्याल-ए-ख़ास का,

फिर ग़ज़ल के शेर सारे मरसिया हो ही…

Continue

Posted on October 21, 2018 at 2:45am — 1 Comment

ग़ज़ल (सुन कर ये तिरी ज़ुल्फ़ के मुबहम से फ़साने)

सुन कर ये तिरी ज़ुल्फ़ के मुबहम से फ़साने,

दश्ते जुनुं में फिरते हैं कितने ही दीवाने..

कब साथ दिया उसका दुआ ने या दवा ने,

आशिक़ को कहाँ मिलते हैं जीने के बहाने..

मुमकिन है तुम्हें दर्स मिले इनसे वफ़ा का,

पढ़ते कुँ नहीं तुम ये वफ़ाओं के फ़साने..

इस दौर के गीतों में नहीं कोई हरारत,

पुर-सोज़ जो नग़में हैं वो नग़में हैं पुराने..

इस इश्क़ मुहब्बत में फ़क़त उन की बदौलत,

ज़ोहेब तुम्हें मिल तो गये ग़म के…

Continue

Posted on October 21, 2018 at 2:30am — 3 Comments

किस कि सुनता है (ग़ज़ल)

किसकी सुनता है मन की करता है,

मुँह में रखता ज़बान-ए-गोया है..

हक़ बयानी ही उसका शेवा है,
कब उसे ज़िन्दगी की परवा है..

मौत पर ये जवाब उसका है,
क्या अजब है कि इक तमाशा है..

वो जो हर ग़म में इक मसीहा है,
कौन जाने कहाँ वो रहता है..

क्यूँ ख़्यालों में है अबस मेरे
किस ने ज़ोहेब उसको देखा है..??

मौलिक एवं अप्रकाशित।

Posted on September 11, 2018 at 10:30am — 1 Comment

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service