For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -१४' (Now closed with 694 Replies)

चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -१४ '

नमस्कार दोस्तों !

इस बार की चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक-१४ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है | सदियों से मनोरंजन के एक साधन के रूप में प्रयोग किये जाने के साथ-साथ कठपुतलियों के माध्यम से समाजोपयोगी व सार्थक सन्देश भी जन-जन तक पहुँचाये जाते रहे हैं |

साथियों ! इस बार जो चित्र प्रतियोगिता के लिए चयनित किया गया है उसमें  इन कठपुलियों से खेलते हुए इस बच्चे की उत्सुकता बहुत कुछ कह रही है, वैसे तो यह एक सामान्य चित्र ही प्रतीत हो रहा है परन्तु यदि इसे कुछ अलग नज़रिए से देखा जाय तो यहाँ पर कठपुतलियाँ मात्र कठपुतलियाँ ही नहीं बल्कि भगवान के हाथ में इंसान की डोर का प्रतीक भी हैं और बच्चे तो भगवान का ही एक रूप हैं |

आँखों में सपने लिए, बाल रूप में भोर.

ईश्वर के आधीन जग, उसके हाथों डोर..

आइये तो उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, और हाँ.. पुनः आपको स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह प्रतियोगिता सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगी, कृपया इस प्रतियोगिता में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है |

साथ-साथ इस प्रतियोगिता के तीनों विजेताओं हेतु नकद पुरस्कार व प्रमाण पत्र  की भी व्यवस्था की गयी है ....जिसका विवरण निम्नलिखित है :-

"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता हेतु कुल तीन पुरस्कार 
प्रथम पुरस्कार रूपये १००१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company 

 

द्वितीय पुरस्कार रुपये ५०१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali

A leading software development Company

 

तृतीय पुरस्कार रुपये २५१
प्रायोजक :-Rahul Computers, Patiala

A leading publishing House

नोट :-

(1) १७ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |

(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे | 

सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक कृतियां ही स्वीकार किये जायेगें | 

विशेष :-यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|  

अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-१४, दिनांक १८  मई से २० मई की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य   अधिकतम तीन पोस्ट ही दी जा सकेंगी साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि  नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |

मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव

Views: 14124

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

दिलकश है दोहावली, ऊंची है परवाज़ 
धरमू भाई आप हैं, ओबीओ का नाज़...Yograj ji ne ekdam sahi farmaya hai.

aaj mai OBO ke jis bhi makam pe hun bas! aadarniy Dharmendr ji k karan.

भाई धरमजी, आपकी दोहावलियाँ चित्रानुकूल हैं. सुगढ़ प्रयास हुआ है. इस हेतु विशेष बधाई.

ग़ुरबत के इस दौर में, बालक ढूंढे प्यार 

ऊपर वाले ने किया, कैसा अत्याचार

बहुत सुन्दर कहन और उतना ही सुन्दर शिल्प. हार्दिक बधाई ... . वाह वाह !

बहुत सुन्दर दोहे आदरणीय धरम भाई जी...

सादर बधाई स्वीकारें.

हर दोहा अति सुन्दर.

(प्रतियोगित के  अन्दर प्रतियोगिता के बाहर जो  भी सबको ठीक  लगे मुझको  है स्वीकार ...जय ओ.बी.ओ.)

पावं पांव की बात पूत सपूत कपूत 

किस श्रेणी में आ रहा जानूं हों अभिभूत 

 

 चला दौर प्रतियोगिता  आदी  अंत न  छोर

पढ़ पढ़ मंच  मुग्ध  हुआ  मै भी भाव विहोर 

 

प्रथम  बार आया मजा  दोहों की बारात 

रात भर पढता रहा फिर  हो गया प्रभात 

 


 है आनंद बंधे  बंद   सजा  तोरण   द्वार 

दूर  दूर से कवि आये स्वागत है सरकार 

 

 

 शामिल हों सब प्रबुद्ध जन सभी जश्न मनावें 

ज्ञानी गुण जन संग मिल  गीत  मंगल गावें 

  

आयोजन  तो  है आम बड़ों का दंगल 

छोटे भी तान रहे उनका भी हो मंगल 

 

 

माँ    वंदना साध कर गुरुवरों  को प्रणाम

आशीष दो मोहय को  सफल होय  सब काम 

 

प्रतीक्षा गुरु आपकी जल्दी आयो धाय 

चातक प्यासा मर रहा बूँद दियो पिलाये 

 

स्वागत  गुरु आपका आयो तत बुलाये 

समर महा संग्राम सा धरती रही डुलाये

 

मिला  आशीष आपका  दोहे से शुरुआत 

मानी आज्ञा आपकी होगा कभी प्रभात 

 

 

कठपुतली कठपुतली है मानव हट पुतली 

उसे नचाये ईश्वर इसे नचाये सुतली 

 

 

राम  भरोसे  बैठ  के   काहे टटोले कर्म  

मानव सेवा  प्रथम  कर  निभाएं  दूजा धर्म 

 


मोती   तो सीपन बसें पहले हंसा खाएं 

कलियुग में ऐसा बदला कौवा रहे चबाये 

 

  

नहीं कमाई पास क्या निज कर्मों की भौरी 

भूखा  नहीं सोता कोई महिमा शिव गौरी  

 

 

सूरज जैसा प्रभु मेरा जैसे चन्द्र  चकोर 

निश दिन उसको मैं जपूँ हाथ जीवन  डोर  

 

  

कठपुतले  तो बना दिए देकर अपने रंग 

डोर काट वे चल दिए प्रभु जी हो गए दंग

 

 

थे  नियंत्रित  हाथ  प्रभु  द्वापर त्रेता सतयुग 

कठपुतला बदलेगा जान गए है  कलियुग 

 


मानव मानव को नोचे  चढ़ा मांस पर गिद्ध 

भूल  गए सब संस्कार थे जिसके लिए प्रसिद्ध

 

  

जानता मानव कुछ नहीं फिर कैसी लाचारी 

लूट खसोट में रत निरंतर बन बैठा व्यभिचारी 

 

नित नित रंग बदलता देखता नित नव  सपने 

नहीं जाने प्रभु  लीला यहाँ  न कोई अपने 

 


संभल  जा मानव कर चलने  की तैयारी 

कर  काम जग में ऐसा याद करे फुलवारी 

 

 दूसरी रचना 

 चल रही प्रतियोगिता  बैठा आस लगाय

प्रथम गुर  चरण वंदना  दूसर न कोई सहाय
दीजे अब  आशिस मुझे   प्रस्तुत  छन्द  समान 
है  दोहा या छन्द  ये  इसका न   अबहू   ज्ञान 
निरख निरख पुतलियाँ  मन हुआ भाव विहोर 
एक डोर मेरे हाथ है दूजी प्रभु की ओर
रंग बिरंगी पुतलियाँ नयनन रही लुभाय 
चिततेरे भगवान् की देखो महिमा गाय 
कठपुतलियां निर्जीव हैं मानव में  है जान 
इन्हें नचाता मानव है मानव को भगवान् 
भले भलाई करन  लगे पकड़ प्रीत की डोर 
पल  भर  में मिट जाएगा  कंचन काया  छोड़ 
पुतलियाँ  निष्काम  है मानव है सरबोर   
लोभ   दासता से भरा कपटी लम्पट चोर 
रंग बिरंगी पुतलियाँ मन को खूब लुभाती 
नशा गरीबी उन्मूलन जग शिक्षा दे जाती 

 

bahut khoob..

कठपुतली के खेल में, हम सब शामिल आज.

शब्दों में क्या पंख हैं, क्या उन्नत परवाज.

क्या उन्नत परवाज, गगन छोटा है जिसको

मगन मुदित मन देख, सृजन कहते हैं किसको

कात रहे सब भ्रात, सफल भावों की तकली

देख देख हरषाय, रही होगी कठपुतली.

इस उत्तम और सफल आयोजन के लिए सभी मित्रों/गुरुजनों को सादर बधाईयाँ....

जय ओ बी ओ....

शुभ रात्री.

sunder..shubh-ratri

पहुँच रही अंजाम तक,कठपुतली की बात.

अम्बरीश जी  दें  बिदा, बहुत  हो  गई  रात.

तुम  काठ  के  शिल्प   न  मात्र  लगौ,
नव  सृष्टि  को  आज  सन्देश  दई l
जस  प्रेम  के  धागन  माहिं  बंधी,
तस  प्रेम  के  नेह  के  गेह  मई l
तुम  शाँत  रही  नित  सिन्धु  तना,
दुःख  दर्द  की  पीर  छुपाय   गई l
जन  में  नित  हास  बिखेरइ   का,
अपने  मन  मा  प्रण ठानि   लई ll


तुम   मानि  जमूरे  की  बात  सबै,
हमका  दीन्हें  उपदेश  कई l
भटकूँ  भगवान  की  राह  से  ना ,
मन  माथे  हमारे  ये  सीख  दई l
यह  माटिक  देह  मिली  सबका,
तुमरी  यह  काठ  कि  छाप  नयी l
अब  केवट   बानि    विवेक  लगै ,
कलिकाल  में   आय  के  साँच भईll

मित्रों ,
अति व्यस्तताओं के चलते आप सबकी रचनाओं पर कुछ नहीं लिख पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं ।

हालांकि कई रचनाएं पढ़ी अवश्य हैं …

अब सारी रचनाएं एक साथ लगेंगी तब एक साथ पढ़ूंगा ।

मेरे लिखे छंदों को पसंद करने के लिए एक बार पुनः हृदय से आभार और कृतज्ञता !

स्नेह भाव बनाए रहें …

हार्दिक शुभकामनाओं सहित … 

:-))))))))))))))

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Usha Awasthi shared their blog post on Facebook
5 hours ago
Balram Dhakar posted a blog post

ग़ज़ल : बलराम धाकड़ (पाँव कब्र में जो लटकाकर बैठे हैं।)

22 22 22 22 22 2 पाँव कब्र में जो लटकाकर बैठे हैं।उनके मन में भी सौ अजगर बैठे हैं। 'ए' की बेटी,…See More
6 hours ago
Usha Awasthi posted a blog post

मन नहीं है

मन नहीं हैउषा अवस्थीअब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है क्या कहें ? साहित्य के नाम परचलाए जा रहे व्यापार…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post होता है इंक़िलाब सदा इंतिहा के बाद (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। बहुत बहुत हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Chetan Prakash's blog post सावन गीत....कजरी
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर कजरी हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Dr. Vijai Shanker's blog post सत्य और झूठ -- डॉ० विजय शंकर
"आ. भाई विजय शंकर जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') posted a blog post

भविष्य निधि (लघुकथा)

                                                    एक सर्वेक्षण-कर्ता की डायरी दिनांक :- ३०…See More
yesterday
Balram Dhakar posted a blog post

ग़ज़ल: अगर कोशिश करेंगे आबोदाना मिल ही जाएगा।

1222 1222 1222 1222 अगर कोशिश करेंगे आबोदाना मिल ही जाएगा।किराए का सही कोई ठिकाना मिल ही जाएगा।.अगर…See More
yesterday
Balram Dhakar commented on Balram Dhakar's blog post ग़ज़ल : बलराम धाकड़ (पाँव कब्र में जो लटकाकर बैठे हैं।)
"बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय समर सर. सादर."
yesterday
Balram Dhakar commented on Balram Dhakar's blog post ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (मुहब्बत के सफ़र में सैकड़ों आज़ार आने हैं)
"आदरणीय दण्डपाणी जी, हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया. सादर."
yesterday
Balram Dhakar commented on Balram Dhakar's blog post ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (मुहब्बत के सफ़र में सैकड़ों आज़ार आने हैं)
"बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आदरणीय दयाराम जी. सादर."
yesterday
Balram Dhakar commented on Balram Dhakar's blog post ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (मुहब्बत के सफ़र में सैकड़ों आज़ार आने हैं)
"आदरणीय अजय तिवारी जी, हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया. आपको ग़ज़ल पसंद आई, मेरा कहना सार्थक…"
yesterday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service