आदरणीय काव्य-रसिको,
सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार उनसठवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ – 18 मार्च 2016 दिन शुक्रवार से 19 मार्च 2016 दिन शनिवार तक
इस बार गत अंक में से तीन छन्द रखे गये हैं - चौपाई छन्द, दोहा छन्द और सार छन्द.
यानी, दोहा छन्द फिर से सम्मिलित हुआ है.
क्योंकि होली है !
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.
इन छन्दों में से किसी एक या तीनों छन्दों में प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द रचना करनी है.
इन छन्दों में से किसी उपयुक्त छन्द पर आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
[प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से प्राप्त हुआ है]
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो तीनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
दोहा छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
चौपाई छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
सार छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने केलिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 18 मार्च 2016 दिन से 19 मार्च 2016 दिन यानि दो दिनों के लिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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विशेष :
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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बहुत-बहुत आभार आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी.किन्तु ध्यान रहे मेरे नाम से दोहे के विषम चरण को प्रारम्भ नहीं किया जा सकता है. :)
आदरणीय अशोक भाईजी
संक्षिप्त किंतु सार गर्भित दोहे , हार्दिक बधाई होली की शुभकामनाओं के साथ
राधा कोरी रह गई , हुए कन्हैया लाल ||....... श्याम रंग राधा हुई , हुए कन्हैया लाल ||
छंदों को सराहने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब, आपका सुझाव भी उत्तम है किन्तु उसमे थोड़ा और बदलाव करना पडेगा.सादर.
आदरणीय अशोक रक्ताले सर, होली पर केन्द्रित बहुत सार्थक दोहावली हुई है. शिल्प और कथ्य में संयत और बहुत सधे हुए दोहा छंद पद प्रस्तुत हुए है. शब्द चयन और वाक्य विन्यास का महत्त्व इन दोहा छंद पदों के चरणों में देखा जा सकता है. जैसे -
आये चल दहलीज तक, फागुन के मृदु पाँव |
झूम उठे उल्लास से , गली नगर अरु गाँव ||............ वाह वाह
महगाई जैसे समसामयिक विषय को होली से जोड़ते हुए सार्थक दोहा भी बहुत अच्छा लगा. लेकिन आखिरी दोहे ने मुग्ध कर दिया. अद्भुत दोहा..... झूम रहा हूँ इसे पढ़कर-
रंगा अम्बर गेरुआ, ऐसा किया धमाल |
राधा कोरी रह गई , हुए कन्हैया लाल ||
वाह वाह वाह ...... नमन
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर, आपसे छंदों पर इतनी सुंदर प्रतिक्रिया पाकर मन मुग्ध हुआ. बहुत-बहुत आभार.सादर.
मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय
आ० 'हुई ऋतू रंगीन यह ' ऐसा समझौता क्यों , 'मौसम भी रंगीन है पाकर सबका साथ ' आप स्वयं समर्थ है मैंने आपके आलस्य को जगाया भर है . अंतिम दोहे को नमन . सादर .
आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपने जिस नम्रता और गरिमा के साथ अपनी बातें की हैं, वह अनुकरणीय है.
सादर
सत्य कहा है आदरणीय सौरभ जी.सादर.
आदरणीय डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब सादर नमन, उचित कहा है आपने. मैं सावधानी रखूंगा. छंदों पर सराहने के लिए आपका दिल से आभार. सादर.
सारे दोहों सुगढ़, शिल्प-भाव अनुपात
’ऋतु’ को मत करना ’ऋतू’, बस इतनी सी बात
:-))
आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुति संयत और गंभीर है.
हार्दिक शुभकामनाएँ
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