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भोजपुरी दोहे:

संजीव 'सलिल'
*
नेह-छोह राखब सदा, आपन मन के जोश.
सत्ता धन बल पाइ त, 'सलिल; न छाँड़ब होश..
*
कइसे बिसरब नियति के, मन में लगल कचोट.
खरे-खरे पीछे रहल, आगे आइल खोट..
*
जीए के सहरा गइल, आरच्छन के हाथ.
अनदेखी काबलियत कs, लख- हरि पीटल माथ..
*
आस बन गइल सांस के, हाथ न पड़ल नकेल.
खाली बातिय जरत बा, बाकी बचल न तेल..
*
दामन दोस्तन से बचा, दुसमन से मत भाग.
नहीं पराया आपना, 'सलिल' लगावत आग..
*
प्रेम बाग़ लहलहा के, क्षेम सबहिं के माँग.
सूरज सबहिं बर धूप दे, मुर्गा सब के बाँग..
*
शीशा के जेकर मकां, ऊहै पाथर फेंक.
अपने घर खुद बार के, हाथ काय बर सेंक?.

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Replies to This Discussion

भाईजी, का कहे के बा जब आपने घर फूँकि के लोगवा हाथ सेंकि रहल बा..
कुल्हि दोहन के रूप सँवरल बा.. आ भाव निखरि के सोझा आइल बा.

अनुमति दीहीं तऽ हमहूँ अतना जोरबि -

मूँदल आँखी का लउकी के बाँची बड़ भागि
टिनही पत्तर जानि ले, सलिल हाथ में आगि..

आचार्य जी, इ दोहन के जेतना तारीफ़ कईल जाव कम बा, उ कहल जाला नू की देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर, त उ बात बा, सब दोहा बहुत गहिरा अर्थ लेहले बा,

दामन दोस्तन से बचा, दुसमन से मत भाग.
नहीं पराया आपना, 'सलिल' लगावत आग..

 

इ दोहा त सन्न से करेजा चिरत बा, एक दम से सही कहनी हा रौआ , आज घरी दोसरा से नईखे डर , अपने से डर बा , कोई कहले बा नू कि घर जर गईल घरही के चिराग से , उहे बात बा |

कुल मिलाके बहुते निक लागल, उम्मीद करब जा कि राउर लेखनी हिंदी के साथ साथ भोजपुरी साहित्य के भी एही तरे समृद्ध करी, बहुत बहुत बधाई एह रचना पर |

 

जय राम जी की,

///////// बहुत बढियां बाय आप  के हमार नमस्कार .....................

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