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ek se badhkar ek ghazale aayi hai, padh kar to maja aa raha hai. mai apna comment nahi de pa raha hu is ka mujhe bahut dukh hai. lekin ab kuchh hi dino me exam bhi khatm ho jayega.
ek baar fir se saare ghazalkhwaan ko mai badhai deta hu. wartmaan paristhitiyon par likhe gaye sher behad pasand aa rahe hai.
ये भारत है, महाभारत समय ने ही कराया है.
लड़ा सत से असत सिर असत का नीचा कराया है..
//वाह वाह वाह - भारतीयता की सुगंध से भरे इस मतले से सुन्दर आरम्भ किया !//
निशा का पाश तोड़ा, साथ ऊषा के लिये फेरे..
तिमिर हर सूर्य ने दुनिया को उजयारा कराया है.
//आहा हा हा हा हा - क्या दृश्य-चित्रण किया है आचार्य जी !//
रचें सदभावमय दुनिया, विनत लेकिन सुदृढ़ हों हम.
लदेंगे दुश्मनों के दिन, तिलक सच का कराया है..
//दुश्मनों के दिन अवश्य लदेंगे - बहुत सुन्दर शे'र //
मिली संजय की दृष्टि, पर रहा धृतराष्ट्र अंधा ही.
न सच माना, असत ने नाश सब कुल का कराया है.
//आँख के साथ साथ जब मनुष्य निज-स्वार्थ से भी अँधा होगा तो नाश होना निश्चित ही है !//
बनेगी प्रीत जीवन रीत, होगी स्वर्ग यह धरती.
मिटा मतभेद, श्रम-सहयोग ने दावा कराया है..
//आमीन !//
रहे रागी बनें बागी, विरागी हों न कर मेहनत.
अँगुलियों से बनें मुट्ठी, अहद पूरा कराया है..
//वाह वाह वाह !//
जरा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया हैं।
हुए हैं एक फिर से नेक, अँकवारा कराया है..
//बटवारे के दर्द को भुलाने का बहुत ही सुन्दर परिहार सुझाया है आपने - आनंद आ गया !//
बने धर्मेन्द्र जब सिंह तो, मने जंगल में भी मंगल.
हरी हो फिर से यह धरती, 'सलिल' वादा कराया है.
//सुन्दर मकता !//
आचार्य जी, मत्ले का शेर फिर चूक गया।
इस तरही मिसरे में यही समस्या थी। 'कराया है' देखते ही ध्यान भटक जाता है और 'है' रह जाता है रदीफ़ 'कराया' काफि़या का शब्द।
वहॉं तो काफि़या 'ई' स्वर था इसलिये मसहरी, गिलहरी काफि़या के रूप में ठीक थे, हॉं जिसने घोषणा नहीं पढ़ी होगी उससे रदीफ़़ में चूक हुई होगी, शायद आपका आशय वही है; अभी तक ऐसी कोई ग़ज़ल वहॉं दिखी नहीं।
यहॉं भी घोषणा पढ़ने के बाद रदीफ़ काफि़या नोट नहीं किया तो केवल ध्यान के आधार पर रदीफ़ की त्रुटि की संभावना है।
यहॉं एक पाठ मिलता है कि तरही मिसरा और रदीफ़, काफि़या पूरी तरह नोट करना चाहिये, स्मरण शक्ति पर विश्वास ठीक नहीं।
शुक्र यानि जुम्मा का अलग ही महत्व है, यह तो सर्वविदित है अब शुक्र गुजार लिया तो मज़ा आ गया। नमाज़ भी अदा हो गयी और जुम्मे का वादा भी पूरा हो गया। शुक्रिया तो पूरी तरह से भोपाली देन लगता है; कर रिया, मर रिया, लड़्र रिया, शुक् रिया।
खैर ये तो हुआ मज़ाकिया उत्तर। अगर सवाल गंभीर है तो सोचना पड़ेगा।
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