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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 56 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-57

विषय - "तुला / पलड़ा / तराजू "

आयोजन की अवधि- 10 जुलाई 2015, दिन शुक्रवार से 11 जुलाई 2015, दिन शनिवार की समाप्ति तक  (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान मात्र एक ही प्रविष्टि दे सकेंगे.  
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 10 जुलाई 2015, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

हृदयी अग्नि बुझ चुकी है
आँच में अब तपिश नहीं
शांत नदी सी बहना है
सागर मिलना रास नहीं...बहुत खूब दी ..सादर बधाई

आभार तहे दिल से आदरणीया सविता बहिन रचना के मर्म को समझने के लिए

आदरणीया कांता जी , विषय के अनुरूप प्रस्तिति के लिये हार्दिक बधाई आपको ।

प्रदात्त विषय पर  एक अलग अंदाज  में  गीत  रचना पसंद आयी आदरणीया  | मन की तुला पर ह्रदय भाव से रचित गीत के लिए बधाई 

आदरणीया कान्ता रॉय जी,

प्रदत्त विषय पर सुकोमल शब्दों से सुसज्जित सुन्दर रचना हेतु बधाइयाँ...............

इस सुंदर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आ. कांता रॉय जी 

चंद दोहे

बोल हिया से तोल के , बोल सदा इंसान।
बोल बोल में प्रेम है , बोलों  में  भगवान।।


शब्द सरोवर प्रेम का ,लहर लहर में नेह।
तोल तोल के बोलियो, बोल प्रेम की देह।।

बिन तोले ही बोलते, शब्द प्रेम  में  नैन।
खा के धोखा प्रेम में ,घन  बरसायें  नैन।।


बिन तोले मिलता नहीं ,कोई भी सामान।
बिना तौल सामान में , है छिपा बईमान।।


मौलिक एवं अप्रकाशित

तोल तोल कर बडे ही सुंदर दोहे गढे हम तो पढकर मगन हुए ।बहुत खूब लिखा है आपने आदरणीय सुशील सरना जी । बधाई

आदरणीय कान्ता रॉय जी दोहों पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाका हार्दिक आभार। 

बहुत सुन्दर दोहे आदरणीय सुशील सरना जी , बधाई आपको ..

आदरणीय विनय कुमार सिंह जी दोहों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

बिन तोले ही बोलते, शब्द प्रेम  में  नैन। 
खा के धोखा प्रेम में ,घन  बरसायें  नैन।।---बहुत सुन्दर आ० सुशील जी 

सुन्दर दोहे हुए हैं आदरणीय हार्दिक बधाई आपको 

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