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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - 51

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 51 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह मशहूर शायर जनाब अब्दुल हामिद 'अदम' मरहूम की एक बहुत ही मकबूल ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह

 

"साहिल के आस पास ही तूफ़ान बन गए "

221 2121 1221 212

मफऊलु फाइलातु मफाईलु  फाइलुन  

(बह्रे मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ)

रदीफ़ :- बन गए 
काफिया :- आन (तूफ़ान, पहचान, सामान, नादान आदि )

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 सितम्बर दिन सोमवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 23 सितम्बर दिन मंगलवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 सितम्बर दिन सोमवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - 51 में आप सभी का स्वागत है। 

तरही मुशायरे का शुभारम्भ हुआ. सभी सुधीजनों का स्वागत है.

कल सायं देहरादून से चला तो ट्रेन में सिग्नल स्थायी नहीं बना रह पा रहा था.

221 2121 1221 212

जो जानते थे सच, सभी अनजान बन गए

क़ातिल इसी लिए यहाँ भगवान बन गए

 

बह बह के शक्ल आंसुओं की नज़्म सी हुई

इक साथ अश्क़ जब हुए दीवान बन गए

 

जो जो ख़ुलूस के लिए अस्बाब थे बने           

अफसोस सारे मौत के सामान बन गए

 

तू साथ था तो रौनकें थोड़ी ज़रूर थीं  

लेकिन तेरे बग़ैर क्या बेजान बन गए ?

 

अन्दर की भीड़ ने कभी हल्ला किया बहुत

बदली जो सोच, शह्रें भी वीरान बन गए  

 

बेमोल  चीज़ लूटने  आये थे  यार  सब

हम  जानते  रहे सदा,  नादान बन गए

 

ये कैसी  मेजबानी की है मुल्क ने यहाँ

अपने ही मुल्क में हमीं महमान बन गए

 

ता फिर न हौसले को कहीं जा बचे नहीं 

साहिल के आसपास ही तूफ़ान बन गए

*******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

बह बह के शक्ल आंसुओं की नज़्म सी हुई

इक साथ अश्क़ जब हुए दीवान बन गए

बहुत खूब आदरणीय बधाई हो...

आदरणीय भुवन भाई , हौअला अफजाई के लिए आपका दिली शुक्रिया |

  आदरनीय गिरिराज जी, इस उम्दा गजल के साथ शुरुआत के लिए धन्यवाद 

    ये शे'र मुझे बहुत ही सुंदर लगा 

जो जो ख़ुलूस के लिए अस्बाब थे बने           

अफसोस सारे मौत के सामान बन गए

 

आदरणीय मोहन भाई , आपका बहुत बहुत आभार |

जो जानते थे सच, सभी अनजान बन गए

क़ातिल इसी लिए यहाँ भगवान बन गए

 **

बेमोल  चीज़ लूटने  आये थे  यार  सब

हम  जानते  रहे सदा,  नादान बन गए

आदरणीय भाई गिरिराज जी , वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही बेहतरीन बन पड़ी है लेकिन ये दो शेर मन में गहरे उतर गए . हार्दिक बधाई स्वीकारें .

आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आभारी हूँ |

मुशायरे का शुभारम्भ आपकी जिस ग़ज़ल से हुआ है, उसके मतले ने ही मुग्ध कर दिया. इन दो मिसरों ने वो बात कही है जो जन-जन की समझ है. सही बात है, आदरणीय गिरिराजभाईजी, आज जिनको सच कहने और सच के अनुसार बरतने का दायित्व है वे ही चुप्पी मारे बैठे हैं. हर पहलू और आयाम के लिए अलग-अलग मान्य-अमान्य कारण हो सकते हैं. परन्तु, सच्चाई यही है कि जानकारों ने दायित्व निर्वहन न कर दायित्व निर्वहन करने से मुँह फेर लिया है. अनजान बन गये हैं. उन्होंने चुप्पी साध ली है. इसका जो परिणाम जो होना है वो सामने है.
सामाजिक सत्य को उठाते हुए इस मतले के लिए दिल से धन्यवाद.

बह बह के शक्ल आंसुओं की नज़्म सी हुई
इक साथ अश्क़ जब हुए दीवान बन गए
बहुत खूब ! यह भी सही है कि संप्रेषण का सदा से दर्द और आँसूओं का रिश्ता रहा है. अच्छा शेर हुआ है.

जो जो ख़ुलूस के लिए अस्बाब थे बने           
अफसोस सारे मौत के सामान बन गए
ख़ुलूस की उम्मीद जगाते असबाबों का मौत का सामान होना इतनी सामान्य घटना नहीं हुआ करती. लेकिन यदि हो जाय तो बस .. लाहौलविलाकुव्वत.. !

तू साथ था तो रौनकें थोड़ी ज़रूर थीं  
लेकिन तेरे बग़ैर क्या बेजान बन गए ?
ग़ज़ब की चपत लगायी है आपने आदरणीय, उन सभी को जो बज़्म में अपने न होने की धमक से आतंकित किया करते हैं. सही है, किसी के न होने से प्रवाह नहीं रुकता. बल्कि वे खुद ही हाशिये पर चले जाते हैं.. वाह भाई वाह !  

अन्दर की भीड़ ने कभी हल्ला किया बहुत
बदली जो सोच, शह्रें भी वीरान बन गए  
बहुत ही उम्दा शेर हुआ है यह भी. बहुत खूब !
शह्रें को मात्र शह्र ही रहने दें. व्याकरण के अनुसार यहाँ शह्र बहुवचन ही होगा.

बेमोल  चीज़ लूटने  आये थे  यार  सब
हम  जानते  रहे सदा,  नादान बन गए
और देश के आम जनों और नादानों की ऐसी चुप्पियों से आगे भारत की दशा और दिशा दोनों ही बदल गयी.

ये कैसी  मेजबानी की है मुल्क ने यहाँ
अपने ही मुल्क में हमीं महमान बन गए
सही बात, सही बात ! एक गहरे दर्द को शब्द और स्वर मिले हैं.. .

ता फिर न हौसले को कहीं जा बचे नहीं
साहिल के आसपास ही तूफ़ान बन गए
ग़िरह को यों आप और खूबसूरत बना सकते थे. बहरहाल बढिया और संयत कोशिश हुई है, आदरणीय

इस उम्द ग़ज़ल केलिए और ऐसी उम्दा ग़ज़ल से मुशायरे का आग़ाज़ करने के लिए ढेर सारी बधाइयाँ.
शुभ-शुभ

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया  और सराहना ने मेरी मेहनत सफल कर दी , उम्मीद से जादा खुशी मिली , आपका तहे दिल से शुक्रिया | छिपे हुए इशारे भी आप बखूबी समझ  लिए , मुझे दिली खुशी हुई , नमन है आपको |

मेरी टिप्पणी का मान रखने के लिए सादर धन्यवाद, आदरणीय गिरिराजभाईजी.

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