आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय वसुधा जी, प्रस्तुत लघुकथा का कथानक बहुत बढ़ीया है परन्तु प्रस्तुतिकरण उतना बढ़ीया नहीं बन पाया जिस वजह से लघुकथा कुछ कमजोर रह गई । लघुकथा की अंतिम पंक्ित / तुम्हारे पिताजी, मुझे ऐसी ही बस्ती से ब्याह लाये थे। शादी के बाद उन्होंने मुझे पढाया और नौकरी करने की हिम्मत दी। उनका सपना तो पूरा हुआ था फिर मेरा क्यों नही होगा?"/ बहुत प्रभावशाली है । लघुकथा का शीर्षक चयन बहुत ही कमजोर है, इस पक्ष की और भी ध्यान दें । बहरहाल ! आयोजन में आपकी सहभागिता के लिए बधाई । सादर
आपकी यह लघुकथा बहुत ही सार्थक सन्देश दे रही है आ० वसुधा गाडगिल जी. कोई साहित्यिक रचना यदि कलापक्ष को अक्षुण्ण रखते हुए देश और समाज के हित की बात करें तो वह अपने मकसद में सफल मानी जाती है. मुझे यह देखकर अति हर्ष हुआ कि आपकी रचना अंत तक एक साहित्यिक कृति बनी रही, वर्ना ऐसे कथानकों पर लिखी रचनाएँ प्राय: नारे का रूप ले लेती है. सतत प्रयास, अभ्यास एवं अध्ययन से आपके लेखन में और परिक्वता आएगी, ऐसा मुझे विश्वास है. सुधि साथिओं द्वारा दी गई बहुमूल्य सलाहों का गंभीरता से संज्ञान लें तथा प्रदत्त विषय से पूर्ण न्याय करती हुई इस लघुकथा के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
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