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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-165

विषय : "रक्षा"

आयोजन अवधि- 17 अगस्त 2024, दिन शनिवार से 18 अगस्त 2024, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.


ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 17 अगस्त 2024, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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आदरणीय हरिओम जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर

प्रकृति को संसृति करता हूं

दूसरा और को औ' ही रखा है।

आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर

कोई कहीं कुटुंब न बिखरे
रिश्तों की गर्माहट निखरे
हर नाते को खुद करनी है
भीतों से आंगन की रक्षा।....परिवार के बिखराव को रोकना आज की महती आवश्यकता है.  सुन्दर.

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर, प्रदत्त विषय पर आपने एक गीत के द्वारा प्रकृति के हर अवयव को आवश्यक मानकर उसे रक्षित करने का सन्देश दिया है. इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

आदरणीय अशोक रक्ताले जी, मेरे प्रयास को मान देने और उसके मर्म तक पहुंचकर अनुमोदित करने के लिए हार्दिक आभार। सादर

-कुण्डलिया-

1

बड़ा  अनोखा  पर्व  है, राखी का त्योहार।

जिसमें  रेशम डोर में, बहिन बाँधती प्यार।।

बहिन बाँधती प्यार, और  पीहर है जाती।

कच्चे धागे बाँध, वचन  रक्षा  का  पाती।।

बंधन यह अनमोल, प्रेम का पावन चोखा।

रक्षाबंधन   पर्व,  हमारा   बड़ा  अनोखा।।

2-

भाई को बाँधे बहिन, राखी में जब प्यार।

तब  भाई देता उसे,  रक्षा  का  उपहार।।

रक्षा  का  उपहार, बहिन भाई से  पाती।

होती यदि ससुराल, दौड़कर पीहर जाती।।

कच्चे धागे बाँध, सजाती  बहिन  कलाई।

बहिनों  से  हरहाल, बँधाते  राखी  भाई।।

       

           (मौलिक व अप्रकाशित)

             -हरिओम श्रीवास्तव-

आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी, सुंदर कुण्डलियों के लिए बधाई स्वीकार करें।

हार्दिक आभार आदरणीय दयाराम जी।🙏

आदरणीय हरिओम जी पुनः हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति हेतु। सादर

 

हार्दिक आभार आदरणीय वामनकर सर।

अनुमोदन हेतु आभार 

आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी सादर, प्रदत्त विषय पर दोनों ही कुण्डलिया छंद आपने उत्तम रचे हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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