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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-107

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 107वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब

कैफ भोपाली  साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"चाँद बता तू कौन हमारा लगता है "

22    22    22    22        22    2

फ़ेलुन    फ़ेलुन     फ़ेलुन     फ़ेलुन     फ़ेलुन  फ़ा

(बह्र: मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ 12-रुक्नी   )

रदीफ़ :- लगता है    
काफिया :- आ  (हमारा, दरिया, बेगाना, काला, चेहरा आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 मई दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आद लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' भाई जी
स्नेहिल टिप्पणी के लिए आभार

आदरणीय अमोद जी गजल कहने का अच्छा प्रयास हुआ बधाइयां

अच्छी ग़ज़ल कही है़ आद.आमोद जी मेरी बधाई स्वीकारें 

आन पड़े जब मुश्किल घड़ियां जीवन में।
एक रु'पइया एक हजारा लगता है ।।...............आदरणीय आमोद श्रीवास्तव जी,  सुंदर गज़ल। हार्दिक बधाई।

आ. भाई आमोद जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई।

Amod shrivastav जी अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई, मतला मैं समझ नहीं पाया 

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई भाई आमोद श्रीवास्तव जी बहुत-बहुत बधाई आपको

आदरणीय आमोद जी, प्रयास अच्छा हुआ है .. दीर्घकालिक सतत अभ्यास बना रहे. 

शुभातिशुभ

तपती धूप में जैसे दरिया लगता है
मुझको ऐसे उसका चेहरा लगता है

दिल की धड़कन जाने क्यों बढ़ जाती है
शायद उसने मुड़कर देखा लगता है

रात गए चुप के छत पे आ जाता है
'चाँद बता तू कौन हमारा लगता है'

देख के मुझको तो ये कहता आईना
ये तो बिलकुल मेरे जैसा लगता है

जबसे उसको देखा मुझको होश नहीं
अब तो अपना भी बेगाना लगता है

दण्डपाणि नाहक
मौलिक एवम् अप्रकाशित

जनाब दण्डपाणि 'नाहक़' जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

आयोजन में अपनी सक्रियता दिखाएँ ।

आ. भाई दंडपाणि जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आद.दंडपाणी जी बहुत बहुत मुबारकबाद 

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