For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2×15

कोई दरिंदा घात लगाकर जब घर में ही बैठा हो,
सहमी हुई मासूम कली का कितना बड़ा दुपट्टा हो.

अपनी बीवी के अश्कों की वो भी कद्र नहीं करता,
जिसने मम्मी को बचपन में रोज सिसकते देखा हो.

वक्त जरूरत पर ये दुनिया बेपर्दा हो जाती है,
दुनिया वाले तू भी मुझ पर थोड़ा सा बेपर्दा हो.

मेरे बच्चों में इक बच्चा ऐसा भी हो मेरे ख़ुदा,
मेरे जैसा दिल हो उसका ,उसके जैसा दिखता हो.

हमने कल्पना ऐसी बगिया की जाने क्योंकर कर ली,
जिसमें ऐसे फूल खिलें जो सारी जिंदगी ताजा हो.

मैं अपने टूटे सपनों को सोच सोच पछताता हूँ,
जब कोई कहता है सबका तेरे जैसा बेटा हो.

पूछ पूछ कर हार गया मैं लोगों से तेरी बातें,
ऐसा कोई नहीं मिला जो तेरा खेल समझता हो.

चार कहानी सुना लुटेरे दुनिया को बहलाते हैं,
ऐसा कोई पीर दिखा दे जिसने तुझको देखा हो.

तन्हाई का दामन पकड़े इतनी दूर चले आए,
अब यह सोचके क्या हासिल है आगे रस्ता कैसा हो.

बचपन के वो साथी जो आंखों में सब पढ़ लेते थे,
मेरी गजलें यूँ पड़ते हैं जैसे सब कुछ झूठा हो.

खामोशी की ठंडी झील में उसने बिता दिया जीवन,
शायद दूर अटारी पे कोई आस का दीपक जलता हो.

हमने विदेशों से सीखी है स्वागत की ये परिपाटी,
आंखों में लोलुपता हो और हाथों में गुलदस्ता हो.

खुद से खुद के छुटकारे का एक तरीका ये ही है,
अपने हिस्से के दुख अपने खुशियों पर हक सबका हो.

'अहसास' कलम रखने से पहले बस इतना ही कहना है,
आप भी कुछ ऐसा लिखना जो मुझको अपना लगता हो.

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 356

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on November 10, 2019 at 6:48pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब

इस ग़ज़ल पर पुनः काम करता हूँ

सादर

Comment by Samar kabeer on November 9, 2019 at 2:55pm

जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'कोई दरिंदा घात लगाकर जब घर में ही बैठा हो,
सहमी हुई मासूम कली का कितना बड़ा दुपट्टा हो'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।

'वक्त जरूरत पर ये दुनिया बेपर्दा हो जाती है'

इस मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,यूँ कर सकते हैं:-

'वक़्त पड़े तो ये दुनिया भी बे पर्दा हो जाती है' 

'मेरे बच्चों में इक बच्चा ऐसा भी हो मेरे ख़ुदा,
मेरे जैसा दिल हो उसका ,उसके जैसा दिखता हो'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।

'हमने कल्पना ऐसी बगिया की जाने क्योंकर कर ली, 
जिसमें ऐसे फूल खिलें जो सारी जिंदगी ताजा हो'

इस शैर की लय बाधित है ।

'मैं अपने टूटे सपनों को सोच सोच पछताता हूँ, 
जब कोई कहता है सबका तेरे जैसा बेटा हो'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।

'चार कहानी सुना लुटेरे दुनिया को बहलाते हैं,
ऐसा कोई पीर दिखा दे जिसने तुझको देखा हो'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।

'बचपन के वो साथी जो आंखों में सब पढ़ लेते थे, 
मेरी गजलें यूँ पड़ते हैं जैसे सब कुछ झूठा हो'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।

'खामोशी की ठंडी झील में उसने बिता दिया जीवन, 
शायद दूर अटारी पे कोई आस का दीपक जलता हो'

इस शैर की लय बाधित है ।

'हमने विदेशों से सीखी है स्वागत की ये परिपाटी'

इस मिसरे की लय बाधित है,इसे यूँ कर सकते हैं:-

'हमने ग़ैरों से सीखी है स्वागत की ये परिपाटी'

'अहसास' कलम रखने से पहले बस इतना ही कहना है'

ये मिसरा लय में नहीं है ।

कुल मिलाकर ग़ज़ल अभी समय चाहती है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"//दोज़ख़ पुल्लिंग शब्द है//... जी नहीं, 'दोज़ख़' (मुअन्नस) स्त्रीलिंग है।  //जिन्न…"
43 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, बहतर है।"
58 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। आशा है कि…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की  टिप्पणी क़ाबिले ग़ौर…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये हेर शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ है, फिर भी…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गिरह ख़ूब, अमित जी की टिप्पणी…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी आदरणीय यही कि जिस मुक़द्दमे का इतना चर्चा था उसमें हारने वाले को सज़ा क्या हुई उसका भी चर्चा…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। सुझावों के बाद यह और बेहतर हो गयी है। हार्दिक बधाई…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"वक़्त बदला 2122 बिका ईमाँ 12 22 × यहाँ 12 चाहिए  चेतन 22"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service