बहर :- 2122-2122-2122-212
ख्याल लफ्जों से उतरकर शाइरी हो जाएगा ।।
शेर लब से लब टहलकर कागजी हो जायेगा।।
अब्र से शबभर गिरेंगी ओश की बूंदें मगर ।
दिन ही चढ़ते ये समां इक मस्खरी हो जाएगा।।
हाँ खुमार -ए-इश्क है बातें तो होगी रात दिन ।
जब भी उतरेगा ये सर से मयकशी हो जाएगा।।
उसके हक़ में है सियासत देखना तुम एक दिन।
जाने वो बोलेगा क्या क्या औऱ बरी हो जायेगा।।
दर्द-ओ-गम शुहरत मुहब्बत सब मिलेगा इश्क में ।
इश्क कर के देख ले...खुद जौहरी हो जाएगा।।
आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित
Comment
ऐसा क्या हुआ प्रिय?
अध्यन करें और गाहे गाहे लिखते भी रहें,मायूसी अच्छी चीज़ नहीं ।
आदरणीय समर दादा जी प्रणाम
जी दादा .... ख़याल, ख्याल में मुझे कुछ समझ नहीं आया था इसी लिए
दादा ये अंतिम ही रचना थी आगे अव ग़जल लेखन बंद ही है । मेरी क्षमता जहाँ तक थी मैंने सीखने का प्रयाश किया था पर विधा के आगे के हिस्से अब समझ नहीं आ रहे वैसे मैंने पूरी किताब ग़जल की बाबत , और एक पढ़ी हैं । शुक्रिया दादा ..नमन
जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
आपको कई बार कह चुका हूँ कि बिना अध्यन के शाइरी करना ऐसा ही है जैसे बिना पतवार के समन्दर में नाव चलाना ।
'ख्याल लफ्जों से उतरकर शाइरी हो जाएगा'
इस मिसरे में आपने 'ख़याल' शब्द को 21 पर लिया है जबकि इसका वज़्न 121 होता है,देखियेगा ।
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