For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र-ए-वाफ़िर मुरब्बा सालिम (ग़ज़ल)

ग़ज़ल (वो जब भी मिली)

बह्र-ए-वाफ़िर मुरब्बा सालिम (12112*2)

वो जब भी मिली, महकती मिली,
गुलाब सी वो, खिली सी मिली।

हो गगरी कोई, शराब की ज्यों,
वो वैसी मुझे, छलकती मिली।

दिखाई पड़ीं, वे जब भी मुझे,
उन_आँखों में बस, खुमारी मिली।

लगाने की दिल, ये कैसी सज़ा,
वफ़ा की जगह, जफ़ा ही मिली।

कभी वो मुझे,बताए ज़रा,

जो मुझ में उसे, ख़राबी मिली।

गिला भी किया, ज़रा भी अगर,
पुरानी मगर, सफाई मिली।

'नमन' तो चला, भलाई की राह,
उसे तो सदा, बुराई मिली।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 641

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on July 20, 2019 at 6:51pm

//मिली थी ख़ता, हुई जो ख़फ़ा,
बताई न क्या, खराबी मिली"

मेरे ख़याल में इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-

'कभी वो मुझे,बताए ज़रा

जो मुझ में उसे,ख़राबी मिली'

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 20, 2019 at 12:53pm

आदरणीय समर साहिब बहुत आभार। क्या उस शेर की जगह यह ठीक रहेगा।

मिली थी ख़ता, हुई जो ख़फ़ा,
बताई न क्या, खराबी मिली।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 20, 2019 at 12:11pm

आदरणीय अजय तिवारी जी बहुत आभार।

Comment by Samar kabeer on July 20, 2019 at 12:01pm

जनाब बासुदेव जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करे ।

जनाब अजय जी की बात का संज्ञान लें ।

Comment by Ajay Tiwari on July 20, 2019 at 10:19am

आदरणीय बासुदेव जी, 

'हुई क्यों ख़फ़ा, पता न चला,'  'क्यों' और 'क्या' कभी गिराए नहीं जाते.

एक अच्छी कोशिश के लिए हार्दिक बधाई. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
17 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
17 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
17 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
18 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
23 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service