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जिन्दा एक सवाल है (कविता )

जिन्दा इक सवाल है ।

सबका एक ख्याल है ।।

कुछ मंदिर को दो ,

कुछ मस्जिद को दो ..

सब को जरूरत है खुशियों की

ईश्वर भी निढाल है

जिन्दा एक सवाल है

रोटी , कपड़ा , मकान

जरुरत है हर इंसान

वो बंगलों में रख दो

वो झोपड़े में रख दो

कंफ्यूशन , है बवाल है

जिन्दा एक सवाल है।

कमरा बना नहीं पाते

की बच्चे सुरक्षित हों !

मंदिर बनेगा..मस्जिद बनेगी

जमीनें आरक्षित हों ???

कौंधता , हृदय में मलाल है ।

जिन्दा एक सवाल है।।

आमोद बिन्दौरी / मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on March 11, 2018 at 3:16pm

जनाब आमोद जी आदाब,अच्छी कविता है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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