For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अगर माँगू तो थोड़ी सी नफ़ासत लेके आ जाना (इस्लाही)

1222 1222 1222 1222

अगर माँगू तो थोड़ी सी नफ़ासत लेके आ जाना,

मुहब्बत है तो दिल में तुम शराफ़त लेके आ जाना ।

रिवाज़-ओ-रस्म-ए-उल्फ़त को सनम तुम भूल जाना मत,

सफ़र ये आशिक़ी का है नज़ाक़त लेके आ जाना ।

जो दिल तेरा किसी भी ग़ैर के दिल में धड़कता हो,

मगर तुम मेरी ख़ातिर वो अमानत लेके आ जाना ।

वफ़ा के क़त्ल की साज़िश तुम्हारी भूल जाऊँ मैं,

अगर आओ तो अहसास-ए-नदामत लेके आ जाना ।

जो भेजे थे कभी अश्कों से लिखकर तुमको ख़त मैंने,

वो यादों की अमानत हैं सलामत लेके आ जाना ।

यही ख़्वाहिश है इस दिल की रफ़ाक़त हो सलीके से,

जी तुम आओ ज़माने की नज़ाफ़त लेके आ जाना ।

यूँ भी कर देंगे साबित ख़त हमारी बेगुनाही को,

जमानत के लिए उनको अदालत लेके आ जाना ।

----

नफ़ासत= कोमलता

मुंतजिर= इंतज़ार

रफ़ाक़त=दोस्ती/नज़दीकियाँ

नज़ाफ़त= शुध्दता

नदामत= पश्चाताप

----------

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 787

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on March 7, 2018 at 10:53pm

आदरणीय समर जी

इस बेशकीमती इस्लाह का

दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ।

सादर ।

Comment by Samar kabeer on March 7, 2018 at 9:51pm

4थे शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ जुज़्वी है जो मान्य है,फिर भी इसमें 'भूल जाऊंगा' को  "भूल जाऊँ मैं" कर सकते हैं ।

शैर नम्बर 6 सही है,फिर भी आप चाहें तो सानी मिसरा यूँ कर लें:-

'जो तुम आओ ज़माने की नज़ाफ़त लेके आ जाना'

Comment by Harash Mahajan on March 7, 2018 at 9:03pm

आदरणीय कबीर जी आदाब । आपकी इस्लाह के लिये

के कोटि-कोटि धन्यवाद। 

सर ग़ज़ल तो पोस्ट कर दी लेकिन दो बातें इस ग़ज़ल में मुझे फिर से परेशान कर रही हैं ।

1) शेर नo: 4 सर

"वफ़ा के क़त्ल की साज़िश तुम्हारी भूल जाऊँगा,

अगर आओ तो अहसास-ए-नदामत लेके आ जाना ।"

सर इस शेर में तकाबुले रदीफ़ का दोष !

जो दूसरे शेर से दूर हुआ और इसमें आ गया ।

2) शेर नo: 6

"

यही ख़्वाहिश है इस दिल की रफ़ाक़त हो सलीके से,

तू जब आये ज़माने की नज़ाफ़त लेके आ जाना ।"

सर सभी शेर ('तुम') बहुवचन शब्द इस्तेमाल किया । लेकिन इस शेर में ( 'तू' ) एकवचन इस्तेमाल हुआ है ।

मेरी शंका का समाधान सर ।

सादर ।

Comment by Harash Mahajan on March 7, 2018 at 6:22am

आदरणीय समर जी बेहद शुक्रिया । इतने तफ़सील से बात की इसके लिए आभार । आगे भी आपसे प्रतिक्रयाओं का लाभ उठाता रहना चाहूंगा । शुक्रिया सर ।

सादर । 

Comment by Samar kabeer on March 6, 2018 at 11:01pm

आपकी ग़ज़ल की रदीफ़ है 'ले चले आना' और इसका अर्थ भी वही है जो मेरी सुझाई हुई रदीफ़ का है,'लेके आ जाना' आपके अशआर के भाव वही हैं,बदले नहीं ।

तक़ाबुल-ए-रदीफ़ का मुआमला ये है कि ये दो तरह का होता है,पहला जुज़्वी और दूसरा कुल्ली,जुज़्वी मान्य है,कुल्ली मान्य नहीं,उम्मीद है समझ गए होंगे?

Comment by Harash Mahajan on March 6, 2018 at 10:02pm

आदरणीय समर कबीर जी आदाब और दिल से आभार । आपकी पारखी नज़र ने मेरी ग़ज़ल में वो त्रुटि आसानी से दूर कर दी जो प्रश्न बनकर आपके समक्ष आने वाली थी । आपकी दिव्य दृष्टि को सलाम । 

सर व्याकरण की दृष्टि से तो कृति एक दम परफेक्ट हो गयी पर अभी मेरी ज़ुबाँ पर आने में समय मांग रही है । शब्दावली बदलने से अहसास में फर्क महसूस सा होने लगा है । लेकिन इस वजह से ग़ज़ल गर ग़ज़ल न रहे तो क्या फायदा ।

सर जिस त्रुटि की मैं बात कर रहा था वो मेरी ग़ज़ल के दूसरे शेर में तकाबुले रदीफ़ का दोष । जिसे आपने आसानी से दुरुस्त किया है। जिसे मैं हटाने की कोशिश किया था पर मज़ा नही आ रहा था । सर मैने आगे भी कई गज़लों में ये दोष देखा है । क्या ये दोष ज़्यादा महत्व नही रखती क्या?

आपकी छत्र छाया में कलम में सुधार की उम्मीद में हूँ सर । कृपा बनाये रखियेगा ।

सादर !

Comment by Samar kabeer on March 6, 2018 at 9:31pm

यही ख़्वाहिश है इस दिल की रफ़ाक़त हो सलीक़े से

तू जब आये ज़माने की नज़ाफ़त लेके आ जाना

यूँ भी कर देंगे साबित ख़त हमारी बेगुनाही को

जमानत के लिए उनको अदालत लेके आ जाना

ये आपकी ग़ज़ल की इस्लाह हो गई, कोई प्रश्न हो तो पूछ सकते हैं ।

Comment by Samar kabeer on March 6, 2018 at 6:36pm

जनाब हर्ष महाजन जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें ।

ग़ज़ल की रदीफ़ व्याकरण  की दृष्टि से सही नहीं है,इसकी जगह 'लेके आ जाना' होना चाहिए,इसी के हिसाब से कुछ सुझाव दे रहा हूँ :-

अगर माँगूँ तो थोड़ी सी नफ़ासत लेके आ जाना

महब्बत है तो दिल में तुम शराफ़त लेके आ जाना

रिवाज-ओ-रस्म-ए-उल्फ़त को सनम तुम भूल जाना मत

सफ़र ये आशिक़ी का है, नज़ाकत लेके आ जाना

जो दिल तेरा किसी भी ग़ैर के दिल में धड़कता हो

मगर तुम मेरी ख़ातिर वो अमानत लेके आ जाना

वफ़ा के क़त्ल की साज़िश तुम्हारी भूल जाऊँगा

अगर आओ तो अहसास-ए-नदामत लेके आ जाना

जो भेजे थे कभी अश्कों से लिखकर तुमको ख़त मैंने

वो यादों की अमानत हैं सलामत लेके आ जाना

बाक़ीके अशआर रात को देखता हूँ ।

Comment by Harash Mahajan on March 5, 2018 at 5:36pm

ग़ज़ल आपको पसंद आई तो यकीन मानिए मेरी मेहनत वसूल हुई आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब । नज़रें इनायत के लिए ममनून हूँ सर ।

सादर !

Comment by Mohammed Arif on March 5, 2018 at 5:12pm

यूँ भी कर देंगे साबित ख़त मेरी उस बेगुनाही कोजमानत के लिए वो सब अदालत ले चले आना । वाह! वाह!!  बहुत ख़ूब ग़ज़ल का मकता कहा है जनाब ने । मज़ा आ गया । बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें आदरणीय हर्ष महाजन जी । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे, इंतज़ार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
9 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' joined Admin's group
Thumbnail

धार्मिक साहित्य

इस ग्रुप मे धार्मिक साहित्य और धर्म से सम्बंधित बाते लिखी जा सकती है,See More
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"गजल (विषय- पर्यावरण) 2122/ 2122/212 ******* धूप से नित  है  झुलसती जिंदगी नीर को इत उत…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सादर अभिवादन।"
18 hours ago
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service