For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम्हारी कसम ...

तुम्हारी कसम ...

सच
तुम्हारी कसम
उस वक़्त
तुम बहुत याद आये थे
जब
सावन की फुहारों ने
मेरे जिस्म को
भिगोया था

जब
सुर्ख़ आरिज़ों से
फिसलती हुई
कोई बूँद
ठोडी पर
किसी के इंतज़ार में
देर तक रुकी रही

जब
तुम्हारे लबों के लम्स
देर तक
मेरे लबों से
बतियाते रहे

जब
घटाओं की
कड़कती बिजली में
मैं काँप जाती

जब
बरसाती तुन्द हवाओं से
चराग़ बुझ कर
मुझे तन्हा
कर जाते

जब
सहर के वक्त
बिस्तर पर
न कोई सलवट होती

बिखरे गज़रे के फूल होते

जब
तारीकियों में
हर आहात खामोश हो जाती
बस
होती थी तो
जिस्म में
शेष बची साँसों की तरह
इक इक सांस पे
रुकी हुई बरसात की
टपकती हुई
इक इक बूँद की
टप टप की आवाज़
जो
मेरी हर कसमसाहट को
अंगारों की तड़प दे जाती
सच
तुम्हारी कसम
उस वक्त तुम
मेरे तसव्वुर की चौखट पर
बिना दस्तक आये थे
मैं
कुछ कह न सकी
बस
भीगती रही , भीगती रही
बरसती बारिश में
तुम्हारी आगोश के
इंतज़ार में
इक इक पल
भीगता रहा
उस वक़्त
हाँ
उस वक़्त
कसम से
तुम बहुत याद आये थे

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 586

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on June 25, 2017 at 2:40pm

आ.डॉ. गोपाल जी भाई साहिब आपके मुखारविंद से निकली इस काव्यात्मक प्रशंसा का  हार्दिक आभार सर। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2017 at 10:36pm

अब क्या मिसाल दूं मैं  तुम्हारे शबाब की ----- सादर .

Comment by Sushil Sarna on June 20, 2017 at 5:50pm

आदरणीय नरेंद्र सिंह जी सृजन को अपनी मधुर प्रतिक्रिया से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। कुछ अपरिहार्य कारणों से प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा। 

Comment by Sushil Sarna on June 20, 2017 at 5:49pm

आदरणीय सोमेश कुमार जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया। कुछ अपरिहार्य कारणों से प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा। 

Comment by narendrasinh chauhan on June 16, 2017 at 4:38pm

वाह, लाजवाब रचना 

Comment by somesh kumar on June 16, 2017 at 2:51pm

तुम्हारी कसम 
उस वक्त तुम 
मेरे तसव्वुर की चौखट पर 
बिना दस्तक आये थे 
मैं 
कुछ कह न सकी 
बस 
भीगती रही , भीगती रही 
बरसती बारिश में 
तुम्हारी आगोश के 
इंतज़ार में 
इक इक पल 
भीगता रहा 
उस वक़्त 
हाँ 
उस वक़्त 
कसम से 
तुम बहुत याद आये थे

bhut ghre tk utrte hue ahssas 

bhig gya mn aa gyi yaad

thanks  for sharing such a deep meaningful creation !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
5 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service