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यार गर फिर बावफ़ा हो जाएगा(ग़ज़ल)/सतविन्द्र कुमार राणा

बह्र2122 2122 212

यार गर फिर बावफ़ा हो जाएगा
प्यार मेरा फिर हरा हो जाएगा।

साथ मिल कोशिश करें सब ही सही
तो जहाँ फिर खुशनुमा हो जाएगा।

हाँ पकड़ कर बह्र को गर तुम चलो
तो गजल कहना भला हो जाएगा।

हो अकेले में जरा गर हौंसला
फिर तो पीछे काफिला हो जाएगा।

हो सही हिम्मत खुदी में दोस्तो
साथ में फिर तो खुदा हो जाएगा।

साथ रहकर बात हमदम से करो
छोड़ते ही बेवफ़ा हो जाएगा।

कुछ मुहब्बत जो करें कुदरत से भी
फिर हमें भी आसरा हो जाएगा।

प्यार का ही गर पकड़ लो रास्ता
ये जमाना आपका हो जाएगा ।

मान जिसको हम रहे इंसान ही
ख्याल खुद के में खुदा हो जाएगा।

कट नहीं पाएगी मेरी जिंदगी
इल्म गर मुझसे जुदा हो जाएगा।

दाग 'राणा' बेवफ़ाई का गलत
आम ये फिर सिलसिला हो जाएगा

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 15, 2016 at 4:16pm
आदरणीय समर कबीर जी सादर नमन,आपके अनुमोदन,प्रोत्साहन और मार्गदर्शन के लिए आभारी हूँ।मैं उक्त शैरको हटा दे रहा हूँ।सादर
Comment by Samar kabeer on November 10, 2016 at 8:23pm
जनाब सतविन्द्र कुमार'राणा'साहिब आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
सातवें शैर के ऊला मिसरे में'घास के क़तरे'? "क़तरे"तो तरल पद्धार्थ के होते हैं न ?और इस शैर में क़ाफ़िया दोष भी आ गया है,देखिएगा ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 10, 2016 at 4:30pm
आदरणीय सुशील सरना जी सादर नमन।इस प्रयास के अनुमोदन एवं स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए तहेदिल आभार।
Comment by Sushil Sarna on November 10, 2016 at 3:58pm

वाह आदरणीय सतविंदर जी  .... दिलकश अशआर और खूबसूरत अदायगी। .... इस सुंदर ग़ज़ल के  लिए हार्दिक बधाई। 

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