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घर
प्यार औ अपनत्व
जब दीवारों की
छत बन जाता है
वो मकान
घर कहलाता है
रजनी छाबरा

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Comment

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Comment by Sanjay Kumar Singh on June 22, 2010 at 2:59pm
Bahut badhiya kavita, chota kavita lekin arth badaa, bahut sunder,
Comment by satish mapatpuri on June 21, 2010 at 3:39pm
प्यार औ अपनत्व
जब दीवारों की
छत बन जाता है
वो मकान
घर कहलाता है
यथार्थ . बहुत- बहुत बधाई.
Comment by Admin on June 21, 2010 at 12:19pm
रजनी दीदी, प्रणाम,
बहुत ही सुंदर रचना है, कम शब्दों मे बहुत बड़ी बात कहने मे यह कविता समर्थ है, ईट , सीमेंट ,बालू , गिट्टी ,छड़ से भवन बन सकता है ,पर घर तो बनता है उसमे रहने वाले लोगो के प्यार ,अपनत्व , सौहार्द और विश्वास से, बहुत ही उम्द्दा अभिव्यक्ति , बधाई स्वीकार करे, कृपया ,

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