For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह नवम्बर 2015 - एक संक्षिप्त रिपोर्ट

ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या /काव्य गोष्ठी माह नवम्बर 2015 पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट
प्रस्तुति - डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव

दीपावली का परवर्ती बिहान I मौसम में आकस्मिक बदलाव I हवा में हल्की से खुनक I भवानी चौराहा, लखनऊ में स्थित सुकवि मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ का आवास ‘मानस सदन’ और ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के तत्वावधान में दिनांक 21 नवम्बर 2015 की साहित्य संध्या I यह साहित्य संध्या काव्य पाठ पर आधारित थी जिसकी अध्यक्षता घनाक्षरी के सिद्धहस्त कवि डा0 अशोक कुमार पाण्डेय ‘अशोक’ ने की I अध्यक्ष महोदय द्वारा माँ सरस्वती को धूप –पुष्प अर्पित करने के उपरान्त कार्यक्रम का प्रारम्भ संचालक मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ की ‘वाणी वंदना’ से हुआ I एक के बाद एक सिंहावलोकन छंदों की अद्भुत वर्षा से वातावरण स्वतः काव्यमय हो उठा और सभी के अधरों पर यह छंद थिरकने लगा -
मंद –मंद मुसुकाय माय दरशन देहु
पाय के दरस सब छूटि जाय दंद-फंद
फंद छूटि जाय नीच पापिन की संगति को
छिछले विचारन को आना-जाना होय बंद
बंद होय झूठ के कपाट औ ललाट खुलै
रस भरि देव अम्ब मनुज के छंद-छंद
छंद-छंद मां अनंद केरी बरसात होय
झूमि झूमि जांय श्रोता मुसुकांय मंद-मंद
माँ का सरस स्मरण करने के उपरान्त संचालक ‘मनुज’ ने केवल प्रसाद ‘सत्यम’ को काव्य पाठ हेतु आमंत्रित किया I केवल प्रसाद ने कुण्डलिया और चौपैया छंदों के माध्यम से अपनी भावाभिव्यक्ति की I उनके द्वारा पढ़ी गयी कुण्डलिया की एक बानगी प्रस्तुत है –

क्रूर कौम के जानवर, कहलाते खूँख्वार
किन्तु सभी जन से डरें भागें पूंछ संवार
भागें पूंछ संवार कभी ना पंगा लेते
कठिन समय में मनुष प्यार बस अपना लेते
मगर धूर्त मक्कार भेड़िये आज मान्यवर
निशिदिन करते वार क्रूर कौम के जानवर
दूसरे कवि थे स्वतंत्र शुक्ल जिनकी कविता में पीड़ा में भी राहत की अभिलाषा प्रतिध्वनित होती है I वे कहते हैं –
अंतर्मन की पीड़ा को सहलाये दुलराये कौन ?
घावों पर जीवन के स्नेह लेप लगाए कौन ?
पंकज कृष्ण श्रीवास्तव की व्यथा है कि कल्पनाओं से पेट नहीं भरता यानि जब पेट भरा होता है तभी कल्पना का सुखद होना संभव है –
नहीं पेट भरता कल्पना की रोटियों से
जीवन के पतझड़ में
सपनों की हरियाली से
जीवन को है फलीभूत कर लेना
कल्पना में ही है मधुर जीवन जी लेना
पेट तो भरता सिर्फ आटे की रोटियों से
नहीं पेट भरता कल्पना की रोटियों से
सुरेश चंद्र ब्रह्मचारी ने गीत सुनाकर सुधीजनों का समर्थन प्राप्त किया –
सीमाओं में मत बांधो मैं बहता गंगाजल हूँ
गंगोत्री से गंगासागर
भजन सुनाती आयी
गंगा की लहरों से निकली
मुक्तक और रुबाई
भावों में डूबा उतराता माटी का गीत ग़ज़ल हूँ
सीमाओं में मत बांधो मैं बहता गंगाजल हूँ
डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने ‘दीवार’ और ‘फंदा’ शीर्षक से दो अतुकांत कवितायेँ सुनाईं I ‘फंदा तो केवल आचरण है मैं देश का कानून हूँ ‘ कहकर उन्होंने जहाँ कविता के शीर्षक का पर्दाफाश किया वहीं ‘दीवार’ को कुछ इस प्रकार परिभाषित किया –
घुस आया है एक चोर
तुम्हारे घर मेरे भाई
मैं आना चाहता हूँ
तुम्हे बचाने
उस चोर के आतंक
और चौर्य से
पर आऊँ कैसे
तुमने खड़ी जो कर दी है
एक अंतहीन दीवार
हमारे हृदय के बीच
आज की गोष्ठी का सूरज जब मध्याकाश से होता हुआ ढलान की ओर जाने की तैयारी कर रहा था, अचानक ही कुछ युवाओं का आयोजन स्थल में प्रवेश हुआ. मनोज शुक्ल ‘मनुज’ जी के आमंत्रण पर उनकी उपस्थिति ने हम सबको चकित किया क्योंकि ऐसा लगता था कि नवागत दल के सदस्यों ने बिल्कुल हाल ही में कैशोर्य पार किया है. हमें पता चला कि पूरे भारत के कवि सम्मेलन के मंचों में उनकी ओजस्वी रचनाओं ने स्फूर्ति फूँक दी है. हम उन्हें सुनने को आतुर हो उठे. कनक तिवारी और कमल ‘आग्नेय’ ने आज की राजनैतिक भावना से ओतप्रोत राष्ट्रप्रेम की रचनाएँ सुनाईं और उनके ओजस्वी रचनाकार होने की ख्याति की पुष्टि की. उनके अन्य साथी योगेश दुबे ने अपनी रचनाओं की कमनीयता और अपने सुमधुर स्वर से पूरी महफ़िल लूट ली –
घाव थे अंतस में जितने बिन कहे कुछ सी लिया
ना मिले जब कृष्ण उनका नाम लेकर जी लिया
इसको मीरा का दीवानापन या पागलपन कहूं
विष मिला तो उसको भी अमृत समझ कर पी लिया
अगले कवि थे डा0 सुभाष ‘गुरुदेव’ I उनके मौजूदा अहसास कुछ इस प्रकार हैं -
अब तो समय कटता नहीं, काटता सा लगता है
रोटियों को जैसे कोई छांटता सा लगता है
दीपावली के सुर में सुर कैसे मिलाएं
सहिष्णुता पर जब जालिम डांटता सा लगता है
ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के संयोजक डा0 शरदिंदु मुखर्जी ने दो अतुकांत कवितायें सुनायी. पहली कविता “प्रार्थना” में वे दार्शनिक अंदाज़ में कहते हैं
जब तुम आओ,
अपने स्पर्श से मेरी अज्ञानता को झंकृत कर,
नए शब्दों की, नए संगीत की
और हरित वेदना की रश्मि डोर पकड़ा देना,
मैं उसके आलोक में
तुम्हारे आनंदमय चरणों तक
स्वयं चलकर आऊंगा मेरे प्रियतम.
दूसरी कविता “आँखमिचौनी” में जीवन-मृत्यु की निरंतरता को इंगित कर वे ईश्वर से कहते हैं
रोशनी और अँधेरे के इन धागों से
गुँथे पर्दे के पीछे बैठकर
तुम मुस्कुराओगे
मैं भी मुस्कुराऊँगा कि
मैंने तुम्हें देख लिया है –
अब यह आँखमिचौनी का खेल
जब तक चाहे चले
हम दोनों की मर्जी से....
तुम भी खुश रहो और मैं भी.
सभा के अंत में डा0 अशोक कुमार पाण्डेय ‘अशोक’ ने कार्यक्रम को ऐतिहासिक बताते हुये कविता के भविष्य को उज्ज्वल करार दिया और अपनी रसमय घनाक्षरी से काव्य-रस की झड़ी लगाते हुए सिद्ध किया कि उन्हें घनाक्षरी का अप्रतिम कवि क्यों कहा जाता है I उनके छंद की एक बानगी इस प्रकार है -
छलिया कहाते थे परन्तु ब्रजराज देखा
पग-पग पर सदा आप ही छले गये
गोपियों के वस्त्र जो चुराए यमुना के तीर
वे भी सब द्रौपदी के चीर में चले गये
कविता के दीप ने बढ़ते अँधेरे को रोक रखा था पर संचालक ‘मनुज’ के धन्यवाद ज्ञापन के साथ ही वह गहरा गया I मनुज जी की गहरी आत्मीयता के साथ सामंजस्य रखते हुए जलपान की व्यवस्था ने साहित्य संध्या को विशेष स्तर पर पहुँचा दिया था. अंततः परस्पर मिलकर आगामी आयोजन में पुनः मिलने के संकल्प के साथ हमलोग विदा हुए I

 

Views: 1369

Reply to This

Replies to This Discussion

यह तो माह नवम्बर 2015 की गोष्ठी का वर्णन है - फिर शीर्षक में "सितम्बर" कैसे हो गया? यदि मुझसे ही यह गलती हुई है तो क्षमाप्रार्थी हूँ. लखनऊ चैप्टर के हर महीने होने वाली गोष्ठी का रिपोर्ताज आयोजन सम्पन्न होने के दो-चार दिन के अंदर ही भेज दिया जाता है. पाठक-पाठिकागण कृपया भूल सुधार कर पढ़ें. आभार.

शीर्षक में महीने का नाम सही हो गया, आदरणीय

 ओबीओ के लखनऊ चैप्टर की मासिक गोष्ठी की अध्यक्षता छन्द मनीषी आदरणीय अशोक कुमार पाण्डेय ’अशोक’ द्वारा की गयी. यह इस तथ्य का सूचक है कि काव्य की सरस धारा को प्रश्रय मिला है. समस्त सहभागी कवियों के प्रति हार्दिक धन्यवाद. 

संलग्न चित्रों से गोष्ठी में हमारी उपस्थिति का आभास हो रहा है. गोष्ठी की सूचना तथा रिपोर्ट के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय शरदिन्दु जी. 

शुभ-शुभ

सादर आभार .आदरणीय

ओबीओ के लखनऊ चैप्टर की मासिक गोष्ठी की सफलता के लिए हार्दिक बधाई निवेदित है. गोष्ठी की सूचना तथा रिपोर्ट के लिए आपका धन्यवाद

आ०मिथिलेश  जी - आपका प्रोत्साहन ही हमारा संबल है .

गोष्ठी का वृतान्त पढते हुए आँखों के सामने ऐसा सुंदर साहित्यिक समागम का परिदृश्य निर्मित हुआ कि हमें लगा ,हम भी शामिल है । युवाओं का गोष्ठी में शिरकत करना साहित्य में नई ऊर्जा का मानो संचार हुआ । समस्त कृतियाँ भी लाजवाब गायी गई है ।गोष्ठी की सफलता हेतु बधाई प्रेषित है ।सादर ।

सादर आभार, आदरणीया

ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या /काव्य गोष्ठी माह नवम्बर 2015 का सार बांटने हेतु सादर आभार.  बेहद सुन्दर एवं रोचक रिपोर्ताज कार्यक्रम की सजीव सृष्टि का  चाक्षुष आनंद प्रदान कर रहा है.

सादर बधाई

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
3 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
17 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service