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ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 55 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

सु्धीजनो !
 
दिनांक 22 नवम्बर 2015 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 55 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी हैं.

इस बार प्रस्तुतियों के लिए दो छन्दों का चयन किया गया था, वे थे दोहा और रोला 

वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के लिहाज से अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें.

फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, ओबीओ

*************************************

१. आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी
दोहा-गीत [दोहा छन्द पर आधारित]
=======================
स्वच्छ हमारा देश हो, जग में ऊँची शान.
कितने सुंदर नेक थे,
बापू के अरमान..

जगी स्वच्छता की अलख, शेष रही ना भ्रान्ति.
जागृत जन मन हो गया, हुई देश में क्रांति..
करता वंदन राष्ट्र यह,
चला स्वच्छ अभियान.
कितने सुंदर नेक थे,
बापू के अरमान..

कचरा बिखरा हो जहाँ, गन्दा हो परिवेश.
स्वस्थ कभी होगा नहीं, तन मन से वह देश..
जग में भारत देश की,
हो निर्मल पहचान.
कितने सुंदर नेक थे,
बापू के अरमान..


जुटे लोग उत्साह में, दिखे मुहिम के साथ.
करें सफाई लोग कुछ, लिए फावड़ा हाथ..
रहे भान छूटे नहीं,
भीड़ मध्य अभियान.
कितने सुंदर नेक थे,
बापू के अरमान..

कूड़ा इक नर ढो रहा, देता इक निर्देश.
रीते तसले बोलते, भटके ना उद्देश..
करें सफाई आज मिल,
लेकर यह संज्ञान.
कितने सुंदर नेक थे,
बापू के अरमान..

गमछे दल के डाल गल, घूम रहे कुछ लोग.
लगे न शुचि अभियान को, राजनीति का रोग..
सुना उचित परहेज से,
होता रोग निदान.
कितने सुंदर नेक थे,
बापू के अरमान..

नीली पगड़ी बाँध कर, खींच रहा इक चित्र 

कहीं शुचित अभियान को, लगे न लांछन मित्र..
रहे बोध ना हो कहीं,
शुचिता का अवमान.
कितने सुंदर नेक थे,
बापू के अरमान..

(संशोधित)

**********************************
२. आदरणीय मिथिलेश वामनकर
दोहे
===
सुन्दर ये अभियान है, रखना भारत साफ़
देश अगर ये साफ़ तो, सारी गलती माफ़

कूड़ा करकट से उगे, जाने कितने रोग
स्वस्थ्य भला कैसे रहे, नव भारत के लोग

साफ़ सफाई से बड़ा, यार न कोई काम
दुनिया की ताकत बने, हो भारत का नाम

स्वच्छ बने वातावरण, ये जीवन का सार
नव पीढ़ी को दो ज़रा, ये सुन्दर उपहार

साफ़ सफाई देख कर, सबको होगा हर्ष
फिर दुनिया कहने लगे, जय जय भारत वर्ष
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३. आदरणीया राहिला जी

दोहे
====
उठा बहारा चल पड़े, आडंबरी पुजारी
फोटो होड़ ऐसि पड़ी,कनिष्ठ का अधिकारी 

साफ़-सफाई सब करें,जब घर की हो बात
मुद्दा गली का जो उठे,सोइ ढाक के पात 

घूरा कहे पुकार के,साफ़ कर दे तु मोय
नहिं तो पाल बीमारियां,मैं देखत फिर तोय

दौड़े बन के जो लहू,आदत कैसे जाय
इक-दो दिन काबू करी,खुजली पुनि,खुजलाय

एक दिना से होत का, कूड़ा बरकत,रोज
देखि दिखाने जुड़ गये, जैसन गरूण भोज

नेता करे न चाकरी,पूत नवाब सलाम
इक दो तसले डारि के,औंधे गिरे धड़ाम

गलि कूचन सर्वत्र पड़ी,भांति-भांति कि करकट
आबादी प्रदूषण भरि,जा से भलो मरघट

गांधी जयंती बात भर, फिर दिन होय समान
झूठे मुंह पूछत नहीं, नियम गये शमशान
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४. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
दोहा
===

राज मार्ग पर देखिये, कचरे की भरमार।

परेशान जनता मगर, अंध बधिर सरकार॥

 

कुंभकर्ण की तर्ज पर, सोती है सरकार।

न्यायालय फटकार दे, तब ही करें विचार॥

 

नेता आये सामने, करने जन उद्धार।                 

नाटक है ये स्वच्छता, फोटो लिये हजार॥

 

शुभारम्भ मंत्री किये, स्वच्छ शहर अभियान।

पा जायेंगे पद्मश्री, और बढ़ेगा मान॥

 

कपड़े रंग बिरंग के, कचरा रंग बिरंग।

मक्खी मच्छर मस्त हैं, नगर निवासी दंग॥

 

कचरा औ’ दूषित हवा, बहुत दुखद संयोग।

गंध गई यदि नाक में, बीमारी का योग॥

 

दूषित जल नकली दवा, मिलावटी आहार।

मिलकर मारेंगे हमें, डाक्टर औ’ सरकार॥   

 

कूड़ा करकट फेंकते, जहाँ कहीं जिस ठौर।

चलो देखते हैं वहाँ, यही तमाशा और॥

(संशोधित)
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५. आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
दोहे
=====
चलो किसी की प्रेरणा , आयी तो है काम
मंज़िल से पहले मगर , मत करना विश्राम

जितना कचरा दिख रहा, उस से ज़्यादा लोग
बना रही क्या स्वच्छता, बसने के संजोग

अगर दिखावे के लिये, चला रहे अभियान
तय जानो अभियान फिर, झेलेगा व्यवधान

जैसे कचरा बाहरी, हट जायेगा आज
मन- कचरा भी दे कभी, अंदर से आवाज

धोखे बाजी कीच सम , गद्दारी है रोग
ये कचरे भी हट सकें , कभी बनें संयोग

कुछ कचरा मैदान में , कुछ मित्रों के वेश
कुछ पर्दे में हैं छिपे , सोया अपना देश

राजनीति भी हो गयी, जैसे कूड़ा दान
जा कर दुश्मन देश में, बेच रही सम्मान

किसे हटाना है प्रथम, चिंतन कर लें आज
दूषित किससे है अधिक, अपना देश, समाज

कचरे पर कचरा खड़ा, कचरा चारों ओर
किसको कौन हटा रहा, प्रश्न बड़ा मुहजोर 
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६. आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी
दोहा
====
पसरा कूड़ा बोलता ,मानव नाटक छोड़
तूने ही पैदा किया ,ना अब नाक सिकोड़

नेता अफसर सब जुटे ,जारी है केम्पेन 
जल्दी से फोटो खिंचे,हाय पीठ में पेन

कमर लगे कमरा यहाँ ,उस पर भारी पेट 
लिये फावड़ा हाथ में ,कचरा रहे समेट

सच्चाई से रूबरू ,शर्ट बनी रूमाल
जन्म मरण होता यहीं ,सोचो उनका हाल

इधर ,उधर कचरा भरा ,रोये आज जमीन 
जिस माँ ने इतना दिया ,किया उसे ग़मगीन

दोनों पक्के यार हैं ,इक कूड़ा इक रोग
आओ मिलकर तोड़ दें ,इन दोनों का योग

नारे और प्रचार से ,नहीं बनेगी बात
हर इक मन में लौ जगे ,दें कचरे को मात

कचरा घर का झाड़ के ,दिया सड़क पे डाल
इस आदत ने ही किया ,आज देश बेहाल

(संशोधित)
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७. आदरणीय सचिन देव जी
दोहा
====
आज सफाई के लिये, छेड़ दिया अभियान
नगर निवासी कर रहे, हर संभव श्रमदान

दूर हटाने गंदगी, जुटे हुये इक साथ
कोई थामे फावड़ा, तस्सल कुछ के हाथ

चमक चाँद का आदमी, कचड़ा ले भरपूर
ऊपर कर पतलून को, चला फेंकने दूर

काम-दूसरे छोडकर, छान रहे हैं ख़ाक
कूड़े से बदबू उठे, बाँध रखी है नाक

सर पे पगड़ी बाँधकर, ले कचड़े का भार
पग से ऊपर हाथ हैं, बहुत खूब सरदार

नेताजी आधे झुके, कचरा रहे निकाल
चश्मा नीचे ना गिरे, रखना जरा सँभाल

गले तौलिया डालकर, लोग जरा समवेश
कैसे कचरा साफ़ हो, देते हैं निर्देश

दिखे न नारी एक भी, पुरुष लडाते जान
नारी के बिन ये मिशन, दिखता पुरुष प्रधान
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८. आदरणीय अरुण कुमार निगम जी
रोला
====
कहती है तस्वीर, जरूरी बहुत सफाई
काम बड़ा ही नेक, करें हम मिलकर भाई
इसमें कैसी शर्म, करें सेवायें अर्पण
शहर रहे या गाँव , यही है अपना दर्पण ||

लिये फावड़ा हाथ , घमेला भरते जायें
गाँधीजी का स्वप्न, पूर्ण हम करते जायें
कूड़ा-करकट फेंक, मनायें नित्य दिवाली
स्वस्थ रहें सब लोग, तभी आती खुशहाली ||

सब लेवें संकल्प, हिंद को स्वच्छ बनायें
इधर - उधर अपशिष्ट, गंदगी ना फैलायें
सबको दें संदेश, बात यह बिलकुल पक्की
स्वस्थ जहाँ के लोग, देश वह करे तरक्की ||
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९. आदरणीय सतविन्दर कुमार जी 

दोहे
========
फैला कचरा देख कर,मनवा करे पुकार।
ऐसे ही फैला रहा,तो पक्के हों बिमार।।

उठाके झाड़ू हस्त में,पाना चाहें सम्मान।
देख कौरा पाखण्ड ये,मन में हो व्यवधान।।

कचरा-कचरा है सब और,कैसे हो निपटान?
सब अपना निपटा लेवें,न्यारा हो सब काम।।

देखो कचरा भी आज,बन बैठा है खास।
नर प्रसिद्धि की चाहत से,लगा रहे हैं आस।।

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१०. आदरणीय सुशील सरना जी

संसद के जो मान को, पल पल करते भंग 

 

१०. आदरणीया सुशील सरनाजी

दोहे 

===

संसद के सम्मान को, पल-पल करते भंग 

झाडू ले कर आ गये, भेद भुला कर संग ॥1॥

धवल धवल परिधान में, आये नेता चंद 
पोज बना कर हैं खड़े ,कौन उठाये   गंद ।।2।।


कचरा कचरा जप रहे, कचरे का गुणगान ।

कचरे से बढ़ने लगी, नेताओं की शान ।।3।।

साफ़ सफाई में जुटे, मिल कर नेता आज ।
कचरे ने पहना दिया, उनके सिर को ताज ।।4।।

अखबारों में छप गया, नेताओं का नाम ।
झाड़ू ले देने लगे , कचरे को अंजाम ।।5।।

(संशोधित)
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११. आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी
दोहे
===
करे दिखावा क्यों भला, ऐसे सारे लोग ।
करते हैं जो गंदगी, खाकर छप्पन भोग।।

ये कचरे का ढेर भी, पूछे एक सवाल ।
कैसे मैं पैदा हुआ, जिस पर मचे बवाल ।।

मर्म सफाई के भला, जाने कितने लोग ।
अंतरमन की बात है, जैसे कोई योग ।।

नेता अरू सरकार से, ये कारज ना होय ।
जन जन समझे बात को, इसे हटाना जोय ।।

गांधी के इस देश में, साफ सफाई गौण ।

गांधी के विचार कहां, पूछे पर सब मौन ।।

रोग छुपे हे ढेर पर, सब जाने हो बात ।
रोग भगाने की कला, सीखें सभी जमात ।।

रोला गीत
=======
चलो भगायें रोग, गंदगी दूर भगायें ।
हाथ से हाथ जोड़, गीत सब मिलकर गायें ।

धरे हाथ कूदाल, साथ में टसला रापा ।

मिले सयाने चार, ढेर पर मारे छापा ।।
करते नव आव्हान, चलो अब देश बनायें ।
चलो भगायें रोग, गंदगी दूर भगायें ।

ऐसे ऐसे लोग, दिखे हैं कमर झुकाये ।
जो जाने ना काम, काम ओ आज दिखाये ।
बोल रहे वे बोल, चलो सब हाथ बटायें ।
चलो भगायें रोग, गंदगी दूर भगायें ।

स्वव्छ बने हर गांव, नगर भी निर्मल लागे ।
घर घर हर परिवार, निंद से अब तो जागे ।।
स्वच्छ देश अभियान, सभी मिल सफल बनायें ।
चलो भगायें रोग, गंदगी दूर भगायें ।
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१२. आदरणीया राजेश कुमारी जी
दोहे
====
साफ़ सफाई का लगा ,नया नया इक रोग|
उठा रहे कूड़ा सभी , मिलकर नेता लोग||

धवल-धवल परिधान है,मुख पर ढके रुमाल|
दोनों हाथों में लिए ,तसला और कुदाल||

बढ़ जायेगा सोचकर,निज पार्टी का मान
लेकर तसला फावड़ा, करते हैं श्रमदान

लगे रहो जबतक खड़ा,फोटोग्राफर मित्र|
कल के ही अखबार में ,छप जाएगा चित्र||

आदत से मजबूर हैं,सभी जानते बात|
चार दिनों की चाँदनी,फिर अँधियारी रात||

साफ़ सफाई की सुनो, आदत बेहद नेक|
जीवन भर अपनाइये,दिवस चुनो मत एक||

साफ़ वतन अपना रहे ,स्वच्छ रहें सब लोग|
बिना दवा दारू कटें ,तन मन के सब रोग||

मिलकर ही निपटाइये,कूड़ा करकट झाड़|
चना अकेला क्या कभी,सुना फोड़ता भाड़||
*****************************
१३. आदरणीय अशोक रक्ताले जी
रोला छंद
======
इक दिन का यह जोश, चले हैं सभी दिखाने |
लिए फावड़ा हाथ, आ गए चित्र खिंचाने,
निश्चित यह श्रमदान, नहीं है मानें सारे,
नेताओं की नाव, चलेगी इसी सहारे ||

इक कचरे का ढेर, और हैं नेता सत्तर |
करते हैं श्रमदान, मगर है हालत बदतर,
कुछ बांधे हैं हाथ, और कुछ भीड़ बढाते,
खाली तसले और, ढेर तो यही बताते ||

करें गन्दगी साफ़, त्याग दें शर्म ज़रा सब |
होगा भारत स्वच्छ, और जग भी सुंदर तब,
होंगे सारे स्वस्थ, लोग खुशहाल बनेंगे,
हर दिन होगी तीज, नित्य त्यौहार मनेंगे ||
**********************
१४. आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
दोहा
====
देख रहा हूँ मैं इसे चकित दृष्टि से मित्र 

खींचा है किस बंधु ने ऐसा चित्र विचित्र      (संशोधित)

क्रैश हुआ शायद यहाँ कोई नभग विमान
कचरा जिसका बीनते कुछ सज्जन श्रीमान

कुछ तो हैं गैंती लिए कुछ देते निर्देश
खोजो मिलकर ध्यान से रहे न कुछ भी शेष

कुछ अलसाये से खड़े पर कुछ है तल्लीन
विवश दबाये नाक कुछ रहे ध्यान से बीन

निश्चय ही इस यान में कुछ तो था अनमोल
नहीं व्यर्थ ही लोग सब कचरा रहे टटोल

ब्लैक-बाक्स की भी सदा रहती है दरकार
उसके सारे आँकड़े मानेगी सरकार

वरना अपनी राय सब देते यहाँ स्वतंत्र
गतिविधि है आतंक की अथवा है षड्यंत्र

रोला

मोदी जी ने वाह ! स्वच्छ अभियान चलाया
अफसर थे सब मस्त होश उनको भी आया
गैंती, डलिया हाथ सड़क पर सत्वर आये
कूडा करते साफ़ हाथ से नाक दबाये

कुछ करते संकोच किसी ने हाथ दिखाये
कूडे में है खोज भाग्य से कुछ मिल जाए
ऐसी है यदि सोच सफाई से क्या होगा
है असाध्य जब रोग दवाई से क्या होगा
***********************
१५. आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी
दोहे
====
फ़ैल रही है गंदगी, ये जी का जंजाल
नेता आपस में सभी, खूब बजाते गाल | -1

स्वच्छता अभियान दिखा, नेताओं का शोर,
बिगड़ रहा पर्यावरण, बदबू है चहुँ ओर | -- 2

कैसा है परिद्रश्य यह, कचरा चारों ओर,
कुछ ले झाड़ू हाथ में, मद में हुए विभोर | - 3

इतराते कुछ दिख रहे, अपने मद में डूब,
खिचवाते झाड़ू लिए, नेता फोंटों खूब | - 4

चोब हुई कुछ नालियां सड़के गन्दी झील,
कई जगह तो हो गई,दलदल में तब्दील | - 5

देख शहर की दुर्दशा, पक्षी हुए उदास,
चुगने को दाना नहीं, कीड़ों का आवास | - 6

घुली हवा में गंदगी, है साँसों पर भार,
शासन आँखे मूंदता, चिंतित पानीदार | - 7

फैलाते कचरा सदा, वही बुलाते रोग,
सख्ती हो क़ानून की, जागरूक हो लोग |- 8

करे सफाई रोज ही, निखरे शहरी रूप,
नई कोपलें ले सके, अपनेपण की धूप | - 9
*****************
१६. आदरणीय योगराज प्रभाकर जी
दोहे (हृदय के उदगार)
साफ़ सफाई हो जहाँ, करें देवता वास
कूड़ा करकट तो मियाँ, शैतानों को रास
.
सरकारी से हो अगर, सहकारी अभियान
तब दुनिया जय जय करे, बढे देश की शान
.
हिन्दू, मोमिन, साथ हैं, साथ खड़े सरदार
भारत को चमका रहे, मिल सारे दिलदार
.
साफ़ सफाई गर चले, हफ्ते के दिन सात
अपना हर इक गाँव भी, दे पैरिस को भी मात
.
गाफिल थे अब तक रहे, रहा समय का फेर
अब गायब हो जायेंगे, सब कूड़े के ढेर
.
हे मेरे परमात्मा, बख्श समय अनुकूल
कूड़े करकट की जगह, दिखें हमें भी फूल
-----------------------------------------
(वास्तविकता)
सरकारी आदेश से, झाड़ू पकड़ा हाथ
क्या साहिब क्या संतरी, करें सफाई साथ
.
अखबारें कुछ भी कहें, कुछ बोले सरकार
नाटकबाजी है फकत, झाड़ूबाज़ी यार
.
बीच खड़ा जो कह रहा, करो सफाई ठीक
पान चबाकर थूकता, जगह जगह वो पीक
.
अपने आस पड़ोस को, करके कचरिस्तान
आगे बढ़ बढ़ कर रहा, आज वही श्रमदान
.
साफ़ सफाई ठीक है, पर गुस्ताखी माफ़ !
सड़कों से पहले ज़रा, मन भी करलो साफ़
.
झाड़ू लेकर थे गए, जो होते ही भोर
साँझ ढले बढ़ जायेंगे, सब ठेके की ओर
*********************
१७. आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी
दोहा
=====
कोई मिटा सका नहीं, कचरे का अभिमान ।
अब सरकार चला रही, स्वच्छ देश अभियान ।।

कतरा कचरे का कहे, फैला कर दुर्गंध ।
नेता कैसे ले रहे, लेकर इक सौगंध  ॥  (संशोधित)

घूरे की किस्मत जगी, आया सबके काम ।
राजनीति लगती भली, चर्चा में है नाम ।।

कचरा होता काम का, बनते कुछ उत्पाद ।
बिज़ली भी है बन रही, बनती रहती खाद ।।

घर से हर सरकार तक, है कचरे का राज ।
कचरे जैसे हैं कई, कचरा है सरताज ।।

रोला छंद
========
लेकर इक संकल्प, जुट गये देखो नेता ।
देकर महज प्रकल्प, बन गये सहज प्रणेता ।।
शुचि का नहीं विकल्प, समझ ले सारी जनता ।
प्रकल्प है अत्यल्प, काश जीवन भर चलता ।।

***********************************************************************
१८. आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी
दोहा
======
बापू जी सिखला गए,सरल सभ्यता ग्राफ।
घर हो चाहे देश हो, रखना प्यारे साफ।।1

घर-आँगन चिकना दिखे,करे लक्ष्मी बास।
कूड़ा-करकट से लगे,सुन्दर घर बकवास।।2

मनसा, वाचा, कर्मणा, देव-तुल्य हो जाय।
मैल अगर भीतर न हो,ईश मनुज कहलाय।।3

सुनो महत्ता स्वच्छता,की देकर तुम कान।
साफ-सफाई से मिली,भारत को पहचान।।4

साफ रखे दिल को अगर,घर-आँगन सा मान।
जन-जन का होगा तभी, पूर्णतया कल्यान।।5
********************

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Replies to This Discussion

आदरणीय गोपाल नारायणजी, आपने जिस मासूमियत से सवाल पूछा है, वह बरबस मुख पर तिर्यक स्मित का कारण बन जा रहा है..  :-)) 

आदरणीय, सुभग का उच्चारण क्या होता है ? .. सु+भग  या  सुभ+ग ?

सु+भग  न ?  

फिर आगे कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं है. अब आप स्वयं समझ रहे हैं होंगे कि हम क्या कहने जा रहे हैं. 

सादर 

आ० सौरभ जी --सचमुच  छमा मांगने भी शर्म  आने लगी है  तथापि  संशोधन कर रहा हूँ  आशा है अब स्वीकार्य होगा - खींचा है किस बंधू ने ऐसा चित्र विचित्र . सादर . छमा याचना सहित .

आदरणीय गोपाल नारायण जी, 

बंधू  या  बंधु  ?

आदरणीय  सही शब्द जो मैं चाहता हूँ वह  'बंधु ' है   त्रुटिवश  बंधू टंकित  हो गया .  सादर .

जय-जय !

आदरणीय, यथा निवेदित .. तथा संशोधित !

आदरणीय मंच संचालक महोदय, मेरी रचना को संकलन में स्थान देने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद । दर्शायी गयी त्रुटियों को यथासंभव प्रयास करते हुए संशोधित कर ने के बाद प्रेषित कर रही हूँ अवलोकनार्थ। विनम्र निवेदन है कि क्रमांक 3 पर मेरी रचना के स्थान पर यह संशोधित रचना संकलन में सम्मिलित करें ।


दोहे
====
बहारा उठा चल पड़े, पुजारी भये शिष्ट ।
फोटो होड़ यहाँ पड़ी, अधिकारी ये निष्ठ ।।

साफ़-सफाई सब करें,जब घर की हो बात ।
मुद्दा गलियों का उठे, सोइ ढाक के पात ।।

घूरा कहे पुकार के, साफ़ कर दे तु मोय ।
नहिं तो पाल बीमारियां,मैं देखत फिर तोय ।।

दौड़े बन के जो लहू, आदत कैसे जाय।
इक-दो दिन काबू करी,खुजली पुनि,खुजलाय।।

एक दिना से होत का, कूड़ा बरकत, रोज ।
लोगन दिखाय जुड़ गये, जैसन गिद्ध भोज ।।

नेता करे न चाकरी, पूत नवाब सलाम ।
इक दो तसले डारि के,औंधे गिरे धड़ाम ।।

गलि कूचन सर्वत्र पड़ी, करकट इतनी भाँति ।
आबादी दूषित भयी, भायी मरघट-शांति ।।

गांधी जयंति मन रही, फिर दिन होय समान ।
झूठे मुंह पूछत नहीं, नियम गये शमशान ।।
********************­****************

आदरणीया राहिलाजी, आपने अपने हिसाब से पंक्तियों को संशोधित करने का प्रयास किया है. लेकिन चरणों और पंक्तियों की कुल मात्रा के अलावा शब्दों की व्यवस्था भी देखनी होती है. आपने क्या दोहे पर का आलेख पढ़ा है ? यदि हाँ तो शब्दों की व्यव्स्था पर जो कुछ लिखा गया है संभवतः आप समझ नहीं पायी हैं. आपको अवश्य पूछना था.
मैं आपके दोहों में शब्दों की व्यवस्था ठीक कर दे रहा हूँ. पंक्तियों के भाव आप ही के रहेंगे. लेकिन अर्थ फिर भी आपसे पूछना होगा. इस प्रयास से होगा ये कि आपको शब्दों को चरणों और पंक्तियों में रखने की समझ बनने लगेगी. आप इसी क्रम में दोहा पर के आलेख को देखती रहिये शुरुआत में थोड़ी मेहनत कर लीजिये, आगे आप सहज भाव से छान्दसिक रचना करने लगियेगा.

बहारा उठा चल पड़े, पुजारी भये शिष्ट ।
फोटो होड़ यहाँ पड़ी, अधिकारी ये निष्ठ ।।

उठा बहारा चल पड़े, भये पुजारी शिष्ट
फोटो हित बस होड़ है, अधिकारी ये निष्ठ ... अधिकारी ये निष्ठ का क्या अर्थ हुआ ? दूसरे शिष्ट और निष्ठ की तुकान्तता मान्य नहीं होगी.

साफ़-सफाई सब करें,जब घर की हो बात ।
मुद्दा गलियों का उठे, सोइ ढाक के पात ।।
यह दोहा शब्द व्यवस्था के अनुसार सही है. लेकिन सोइकी जगह वही करने में क्या परेशानी है ? अर्थ एक ही है, जबकि वही कर देने से पंक्ति की संप्रेषणीयता बढ़ जाती है और भाव समझ में आ जाता है.

घूरा कहे पुकार के, साफ़ कर दे तु मोय ।
नहिं तो पाल बीमारियां,मैं देखत फिर तोय ।।

घूरा कहे पुकार के, साफ़ करे तू मोय
वर्ना रोग कई मिलें, मैं देखूँगी तोय ॥ .. कालजयी दोहा माटी कहे कुम्हर से.. पर आधारित यह प्रस्तुति और अच्छी हो सकती थी.

दौड़े बन के जो लहू, आदत कैसे जाय।
इक-दो दिन काबू करी,खुजली पुनि,खुजलाय।।
इस दोहे का शब्द संयोजन भी सही है. लेकिन ’करी’ सही क्रिया रूप नहीं है. करी का सही स्वरूप अवश्य ही की होगा. करी अशुद्ध प्रयोग है. भले यह दिल्ली और उसके आस-पास ’करी’ जैसा क्रिया स्वरूप प्रचलित है.

एक दिना से होत का, कूड़ा बरकत, रोज ।
लोगन दिखाय जुड़ गये, जैसन गिद्ध भोज ।।

एक दिना से होत का, कूड़ा बरकत रोज़
लोग दिखे औ जुट गये, लगा गिद्ध का भोज ॥.. ... दोहा छन्द लिखने का मतलब यह नहीं कि भाषा अनावश्यक मोय-तोय आदि कर भदेस कर दी जाय. खड़ी भाषा में या हिन्दी के आधुनिक स्वरूप में भी अच्छे दोहे लिखे जा रहे हैं.

नेता करे न चाकरी, पूत नवाब सलाम ।
इक दो तसले डारि के,औंधे गिरे धड़ाम ।।.......... एक श्लाघनीय प्रयास हुआ है ! वाह !!

गलि कूचन सर्वत्र पड़ी, करकट इतनी भाँति ।
आबादी दूषित भयी, भायी मरघट-शांति ।।
उपर्युक्त दोहा को तनिक और संप्रेषणीय करना उचित होगा. थोड़ी और कोशिश सही होगी.

गांधी जयंति मन रही, फिर दिन होय समान ।
झूठे मुंह पूछत नहीं, नियम गये शमशान ।।
उपर्युक्त दोहे की भी संप्रेषणीयता ठीक करनी होगी, वर्ना अर्थ बहुत स्पष्ट नही हो रहा.

विश्वास है, आपको अपने ’संशोधित दोहे’ में हुई शाब्दिक व्यवस्था अब समझमें आ रही होगी. आप इस परिवर्तन को अपने दोहे से मिलाइये. बहुत कुछ स्पष्ट होने लगेगा.

पुनः, छन्द की भाषा पुरानी भाषा सी या उसकी नकल जैसी नहीं होनी चाहिये. आज की हिन्दी और उसके स्वरूप में भी अच्छे दोहा छन्द लिखे जा रहे हैं.
सादर

पूज्य सौरभ सर
आपको और मंच को सादर नमन।
अपनी भूल के लिए क्षमा चाहूँगा।भूल को सुधरने के लिए रचना को यथासम्भव प्रयास क्र आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।कृपया अवलोकन कर यथोचित संशोधन करें।
सादर

दोहे

1.फैला कचरा देखकर,मनवा करे पुकार।
फैला रहा ऐसे ही,पक्के हो बीमार।।
2.लेकर झाड़ू हाथ में,पाना चाहे मान।
इस कोरे पाखण्ड से,मन ना हो हैरान।।
3.कचरा-कचरा सब तरफ,कैसे हो निपटान?
निपटा लेत अपना सब,न्यारा हो सब काम।।
4.देखो आज कचरा भी,बन बैठा है खास।
नर प्रसिद्धि की चाहत से,लगा रहे है आस।।

आदरणीय सतविन्दरजी, आप पहले दोहा छन्द पर आलेख पढ़ जाइये.  कई तथ्य स्पष्ट हो जायेंगे जो आपकी रचना में ग़लती का कारण बन गये है. 

शुभेच्छाएँ 

जी पूज्यवर।
आदरणीय सतविन्दर जी,शेख शहज़ाद उस्मानी साहब,मिथिलेश जी,आदरणीया राजेश कुमारी जी आप सभी का मेरे द्वारा किये गये प्रयास की सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। यह आगे लिखते रहने की प्रेरणा देता है।
सादर ममता
आदरणीय सौरभ जी! सादर प्रणाम, आपकी प्रतिक्रिया पढ़ी दरासल कुछ असमंजस की स्थिति में थी क्या करूं? और कुछ व्यक्तिगत कारणों से भी पूरी तरह समर्पित भाव से लेखन नही कर पा रही हूं । संसोधन से पहले मुझे पूछना था लेकिन नही पूछ पाई और अभी भी ।इस तरफ ध्यान नही दे पा रही हूं क्षमा प्रार्थी हूं । सादर ।

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