For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"दामादजी को छोड़ना चाहवे है, अरे! पति बिना भी कोई जगह होवे है औरत की।" पति को छोड़ मायके आयी बेटी को माँ समझाना चाह रही थी।
"माँ! मैं कोई भी काम कर अपनी बच्ची पाल लूँगीं लेकिन अब वापिस नही जाऊँगी।"
"ये क्या कह रही है तु छोरी, ऐसा आखिर क्या हो गया?"
बस माँ। मैं 'उस नशेबाज' को और बर्दाश्त नही कर सकती, सारा दिन बस पीना, हंगामा करना और.......।"
"तो क्या हुआ छोरी, तेरा बापू न पिये, मैंने तो न छोड़ दिया उसे।" माँ ने कुछ तमक कर बेटी की बात काट दी।
"हाँ माँ, नही छोड़ा तुने!" बेटी माँ की आँखो में झांकने लगी। "बस जलती रही... सुलगती रही..... राख के ढेर में कोयले की तरह।"
बेटी की आँखो में माँ के अतीत और अपने वर्तमान दोनो का दर्द झलकने लगा था।

.
'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 706

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 26, 2015 at 9:59pm

अच्छी प्रस्तुति हुई है - "बस जलती रही... सुलगती रही..... राख के ढेर में कोयले की तरह।" आदरणीय वीरेन्द्र वीर जी!

Comment by kanta roy on August 25, 2015 at 9:21am

"बस जलती रही... सुलगती रही..... राख के ढेर में कोयले की तरह।"...... यही तो होता आया है अब तक तभी तो वो सीता कहलाती है । अंतर्मन को झिकझोरती सार्थक रचना आदरणीय वीर मेहता जी । बधाई स्वीकार करें ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 25, 2015 at 3:44am

बहुत सुंदर लघुकथा ,आदरणीय वीरेंदर जी. कथा के मूल भाव को बहुत ही सुन्दरता से स्पष्ट किया है आपने. प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 24, 2015 at 10:52pm
आदरणीय अर्चना जी कथा पर आपके समय देने और मूल्यवान प्रतिक्रिया देने के लिये तहे दिल से आभार। आपके सुझाव का स्वागत है। मगर कथा के अंत मे दी गयी पंकत्तियां मुजे इस लिये अवाशयक लगी क्योकि यही सब दुःख बेटी भी सहन कर रही थी और यह इस अंतिम लाईन से स्पष्ट होता है। एक बार फिर से सादर आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 24, 2015 at 10:44pm
आदः प्रतिभा जी बहुत सही कहा आपने अब कई ऐसी बाते जो मिथक बनती जा रही थी समाप्त हो रही है जो हमारे समाज के लिये बेहतर समय का आभास दिलाता है।कथा पर आपके समय देने और आगमन के लिये सादर आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 24, 2015 at 1:34pm
आदः ओमप्रकाश जी रचना पर आपके आगमन के लिये दिल से आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 24, 2015 at 1:30pm
आदः मिथिलेश भाई जी कथा पर प्रतिक्रिया देकर हौसला अफजाई करने के लिये आपका सादर आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 24, 2015 at 1:28pm
आदः राजेश कुमारी जी कथा पर समय देने और हौसला अफजाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया।
Comment by pratibha pande on August 24, 2015 at 9:13am

 'उस घर से अब बस तेरी अर्थी ही निकले' , जैसी बातों से हम धीरे धीरे अब बाहर आ रहे हैं ये अच्छा संकेत है , इस सशक्त रचना के लिए आपको  बधाई आ० वीरेन्द्र जी

Comment by Omprakash Kshatriya on August 24, 2015 at 6:53am
आ वीरेंद्र जी बहुत ही सुन्दर व सन्देश परख रचना हुई है । हार्दिक बधाई आप को ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
4 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
4 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service