For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बीती ताहि बिसार दे (लघुकथा)

"भैया ये दुनियादारी के रिश्ते निभाने से निभते है बातो से नही, ये मैं ही थी जो अब तक निभाती आयी मगर अब नही।" 'आप्रेशन' के बाद जब से भावना को होश आया उसके दिमाग में यही बात बार बार आ रही थी जो उसने दो वर्ष पहले क्रोध में आ भाई को कही थी और उसकी कही बात ने उनके रिश्ते को एक अंतहीन चुप्पी में बदल दिया था। यही नही भाई की घोर परेशानी में भी उसने अपनी जिद के चलते दोबारा भाई के घर का रूख नही किया था।
"रिपोर्टस आर नाॅर्मल भावना, डाॅक्टर ने कहा है जल्दी ही छूट्टी मिल जायेगी।" पति की आवाज ने उसकी सोच को कुछ क्षण के लिये बाधित कर दिया पर जल्दी ही उसने सोच का सिरा फिर पकड़ लिया। "समय तो बहती हवा है कब किसे क्या रंग दिखाये पता नही तभी तो मुझे भी एक रंग दिखा ही दिया। बीमारी ने पकड़ा तो अपने पराये सभी को दूर जाते देखती रही, अब ऐसे में तो मानो भाई के लिये भी पत्थर दिल बन बदला लेने का समय आ गया था, लेकिन....... !"
"क्या सोच रही हो भावना? अब तुम बिलकुल ठीक हो।" पति ने उसको फिर कहीं खोया देख आवाज दी। "ईश्वर भला करे उस अजनबी का जिसने तुम्हे 'किडनी' देकर तुम्हारा जीवन बचाया और उसकी महानता देखो, अपनी पहचान भी जाहिर नही होने दी। फरिश्ता ही होगा कोई?" पति उसे दुआ देते हुये कह रहे थे और भावना अपनी गीली आँखे पोछने लगी क्योंकी वो जानती थी उस फरिश्ते को। अर्धबेहोशी की हालत में भी उसने भाई के प्यार भरे स्पर्श को महसूस कर लिया था और भाई के कहे शब्द अभी तक मन को 'बीती ताहि बिसार दे' का पाठ पढ़ा रहे थे। "भावो, पता नही मैं रिश्ते निभा पाया जा नही, पर मन से कभी रिश्ता तोड़ नही पाया। पता नही तुम मेरा ये 'फैसला' स्वीकार करती या नही, शायद इसीलिये मैं सामने आने की हिम्मत नही कर पा रहा हूँ।"

.
'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 743

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on September 11, 2015 at 5:19pm
सुन्दर लघु कथा के लिये बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 11, 2015 at 2:55pm

आदरणीय वीरेंदर जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. कई धारावाहिकों तथा फिल्मों में ऐसे कथानक यहाँ वहां पड़े है इसलिए ये बिलकुल चकित नहीं करते बल्कि इनका पूर्वाभास फिर 'वही वही' की याद अवश्य दिलाते है. इन दिनों 'किडनी-कथा' तो डेली सोप और फिल्मों का प्रिय विषय बन गया है. ऊपर से केवल दो साल पहले जिस भाई से दूरियां बढ़ी उसे पतिदेव नहीं पहचानते ये भी बड़ी 'डेली सोप वाली' विडंबना है. सादर 

Comment by Nita Kasar on September 11, 2015 at 12:15pm
कुछ रिश्ते एेसे होते है जिन्हें प्रत्यक्ष शब्दों की ज़रूरत नहीं होती मन से जुड़े मन के तार सदैव समझदार होते है,बधाई मेरी ओर से आद०वीर मेहता जी ।
Comment by TEJ VEER SINGH on September 11, 2015 at 10:03am

हार्दिक बधाई वीर मेहता जी!रिश्तों के उतार चढाव को कितनी खूबसूरती से एक मार्मिक लघुकथा के रूप मे पिरोया है!आपकी लेखनी को बार बार सलाम!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service