For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हक़ की लड़ाई (लघुकथा)- डॉo विजय शंकर

दोनों बुराई के लिये लड़ रहे थे, एक दूसरे पर खूब कीचड़ उछाल रहे थे ।
देखने वालों ने समझा दोनों बुराई मिटा के रहेंगे ,
जब कि वो दोनों बुराई पर अपना अपना हक़ जता रहे थे।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 709

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 31, 2015 at 9:00am
आपका आभार एवं धन्यवाद , आदरणीय सुश्री रेखा मोहन जी , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 26, 2015 at 8:39am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 26, 2015 at 8:37am
आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रीय जी , आपका आभार एवं धन्यवाद, टाइप त्रुटि की ध्यानाकर्षण आपका , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2015 at 8:18am

आदरणीय विजय भाई , आपकी कथा एक कटु सत्य कहती लगी , बुराइयों पर अपना अपना हिस्सा पाने की ही लड़ाई चल रही है अभी । हार्दिक बधाई आपको ।

Comment by Omprakash Kshatriya on July 26, 2015 at 8:14am
आदरणीय विजय शंकर जी
प्रणाम ।
इस कसी हुई शानदार रचना के लिए बधाई ।
केवल जाता को जता कर लीजिएगा ।
Comment by kanta roy on July 25, 2015 at 9:02pm
जी , बिलकुल सही कह रहे है आदरणीय मिथिलेश जी , यह कालजयी रचना हुई है । ऐसी दृष्टि बहुत ही कम रचनाओं में देखने को मिलती है । ये गूढ चिंतन का सार है । लघुकथा के मानकों पर बिलकुल खडी उतरने वाली अद्वितीय रचना है । बधाई आदरणीय डा. विजय शंकर जी एकबार फिर से ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 25, 2015 at 8:30pm

कुछ रचनाएँ सभी  देश, काल और वातावरण के सापेक्ष कालजयी ही है. इस रचना को उसी श्रेणी में माना जाना उचित प्रतीत होता है...

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 25, 2015 at 8:06pm
आदरणीय विनोद जी , प्रसन्नता है , आप समझ चुके हैं , विषय गम्भीर हो तो इशारा ही काफी होता है। बहुत विस्तार में जाने की जरूरत शायद नहीं हैं , न हैं लघु-कथा की आवश्यकता है. आभार , आपका स्वागत है। सादर।
Comment by विनोद खनगवाल on July 25, 2015 at 7:53pm

आदरणीय डाॅ. विजय शंकर जी। आपकी बातें सही है लेकिन किस बुराई के बारे में कहा गया है यह कुछ स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। कहीं संसद में हो रहे गतिरोध भाजपा और कांग्रेस के आपस में एक दूसरे पर कीचड उछालने पर तो यह कथा नहीं है? लघुकथा किसी घटना या दुर्घटना में से ही तो बनती है। अगर वो स्पष्ट हो जाए तो कथा को समझने में बहुत मदद मिलेगी। सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 25, 2015 at 7:14pm
आदरणीय विनोद खनगवाल जी आपकी टिप्पणी विचारणीय है पर कथानक बिलकुल सरल एवं स्पष्ट है , प्रायः बुराई के लिए एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे लोग बुराई के समापन के लिए नहीं लड़ते वरन दूसरे की बुराई की तुलना में स्वयं की गई बुराई को नगण्य बताते हैं और बुराई करने के अधिकार पर अपना स्वामित्व भी जताते हैं. विचार करें , कहीं ऐसा है अथवा नहीं ?
सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service