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हम को तो सागर का लेकिन रोष दिखाई देता है (एक हिंदी ग़ज़ल 'राज')

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २  

.

दूजे  में हमको जो अक्सर दोष दिखाई देता है 
अपने में तो वो खूबी का कोष दिखाई देता है

 

उथला पथली हो लहरों की, चाहे समझो अँगडाई 
हम को तो सागर का लेकिन रोष दिखाई देता है

 

कितना टूटा होगा बादल खुद की हस्ती को खोकर

लेकिन नभ के मुख दर्पण में तोष दिखाई देता है

 

जिसके मन में खोट नहीं है उसको लगता सब अच्छा             

 पतझड़ में भी जीवन का उद्धोष  दिखाई देता है

 

खुशियाँ हो तो नैनों की झीलों में है उगता सूरज

बदली छाई हो तो बिम्ब प्रदोष दिखाई देता है 

जीवन की आपा धापी में खुश रहना वो सीख गये   

थोड़ा पाकर भी जिनमे संतोष दिखाई देता है 

 

ओढ़े आखर तानों के या कोष्ठ भरे फरमानों के

पर बेचारा कागज़ तो निर्दोष दिखाई देता है 

.

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2015 at 9:43am

प्रिय प्रतिभा पाण्डेय जी ,आपकी इन तीन वाह ने दिल लूट लिया ये बहुत है मेरे लिए दिल से बहुत बहुत, बहुत, आभार आपको इस ग़ज़ल का मान बढ़ाने के लिए .

Comment by pratibha pande on July 14, 2015 at 6:42pm

कविता  के  technical  पहलू  का ज्यादा  ज्ञान मुझे नहीं है क्योंकि  हिंदी साहित्य कभी मेरा विषय नहीं रहा फिर भी ये ही कहूँगी आ० राजेश कुमारी जी कि आपकी कविता वाह  वाह और बस वाह 


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Comment by rajesh kumari on July 14, 2015 at 10:36am

आ० गिरिराज जी,आप जैसे ग़ज़लकारों से प्रतिक्रिया ,सराहना पाना बहुत मायने रखता है कुछ सुधारुप्रांत ये ग़ज़ल पाठकों को आश्वस्त कर पाई तो लिखना सार्थक हुआ हाँ ये सही है काफ़िया में ऑप्शन कम थे फिर भी ढूँढ- ढूँढ कर  काम चल ही गया| आपका दिल से बहुत बहुत आभार  


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Comment by rajesh kumari on July 14, 2015 at 10:31am

आ० मोहन सेठी जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई इस उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभार आपका  


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Comment by गिरिराज भंडारी on July 14, 2015 at 10:19am

आदरणीया राजेश जी , बहुत कठिन काफिया चुन कर आपने सरलता से निभा लिया है ॥ क्या बात है ! आदरणीया सभी अश आर लाजवाब हुये हैं , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

उथला पथली हो लहरों की, चाहे समझो अँगडाई 
हम को तो सागर का लेकिन रोष दिखाई देता है

 

कितना टूटा होगा बादल खुद की हस्ती को खोकर

लेकिन नभ के मुख दर्पण में तोष दिखाई देता है    -- इनका जवाब नहीं , बहुत बहुत बधाई ।

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 14, 2015 at 10:02am

आदरणीया rajesh kumari जी इस उम्दा ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाई सभी शेर बढ़िया लगे ....सादर 


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Comment by rajesh kumari on July 14, 2015 at 9:13am

आ० वीनस जी,ग़ज़ल पर आकर बहुत सी बातें स्पष्ट की आपने जिस और ध्यान ही नहीं गया था इस त्रुटी को अभी ठीक कर रही हूँ बहुत बहुत आभार आपका  तथा मिथिलेश भैय्या का | 


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Comment by rajesh kumari on July 14, 2015 at 9:11am

सावित्री मिश्रा जी ,दिल से आभार आपका |


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Comment by rajesh kumari on July 14, 2015 at 9:10am

आ० धर्मेन्द्र जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से शुक्रिया |मिसरों में संशोधन तो करना ही पड़ेगा |

Comment by वीनस केसरी on July 14, 2015 at 4:04am

शानदार ग़ज़ल है
सुन्दर सलाह है

अंगड़ाई २२२ से अँगड़ाइयाँ २२१२ बनता है ....
जैसे लड़की २२  से लड़कियां २१२  बनता है लड़कीयां २२२  नहीं बनता
यह भाषा व्याकरण का सामान्य सा नियम है आप व्याकरण की किसी भी किताब में देख सकती हैं

चाहे २२ को गिरा कर २१ कर के पढ़ा जाए तो मिसरा बहर में है बस आप अँगड़ाईयाँ की वर्तनी शुद्ध कर लें

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