For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिन्‍दगी से प्‍यार

कभी तो प्‍यार हमको वो किया होता

वफा के नाम पे धोखा दिया होता

तड़पती रूह को भी चैन आ जाता

कफ़न उसने हमारा गर सिया होता

शिकायत जिन्‍दगी से हम नहीं करते

दवा बन दर्द वो मेरा लिया होता

न मैखाने कभी जाते भुलाने गम

हमारे अश्‍क उसने गर पिया होता

हमें तो जिन्‍दगी से प्‍यार हो जाता

अगर वो साथ दो पल बस जिया होता

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

Views: 406

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Amod Kumar Srivastava on August 5, 2014 at 10:08pm

हमें तो जिन्‍दगी से प्‍यार हो जाता

अगर वो साथ दो पल बस जिया होता ......... वाह ... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 6:36pm

आप मेहनत कर रहे हैं, इसकी पूरी उम्मीद है. किन्तु, ऐसे कई तथ्य हैं जिनको रचनाकर्म के पहले ही साधना होता है.  आप उनपर ध्यान दें. यह स्वाध्याय से ही संभव है.

एक बात :

आपने कहाँ देखा है कि कफ़न सिला हुआ होता है ? कफ़न में सिलाई होती है भी है क्या ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 11:58am

आदरणीय अखंड भाई , खूब सूरत गज़ल के लिये बधाइयाँ !!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 3:27pm

में तो जिन्‍दगी से प्‍यार हो जाता

अगर वो साथ दो पल बस जिया होता

बधाई सर जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 4, 2014 at 1:41pm

गह्मरी जी

बेहतरीन i

Comment by Meena Pathak on August 4, 2014 at 11:41am

बहुत सुन्दर अखंड जी ....सादर बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी आदरणीय सम्मानित तिलक राज जी आपकी बात से मैं तो सहमत हूँ पर आपका मंच ही उसके विपरीत है 100 वें…"
24 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इसी विश्व के महान मंच के महान से भी महान सदस्य 100 वें आयोजन में वही सब शब्द प्रयोग करते नज़र आ…"
27 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मैं यह समझ नहीं पा रहा हूँ कि आपको यह कहने की आवश्यकता क् पड़ी कि ''इस मंच पर मौजूद सभी…"
38 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीया रिचा यादव जी सादर अभिवादन बेहतरीन ग़ज़ल हुई है वाह्ह्हह्ह्ह्ह! शैर दर शैर दाद हाज़िर है मतला…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर अभिवादन उम्द: ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई शैर दर शैर स्वीकार करें!…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन!आपका बहुत- बहुत धन्यवाद आपने वक़्त…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर नमस्कार आपका बहुत धन्यवाद आपने समय दिया ग़ज़ल तक आए और मेरा हौसला…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी, सादर आभार।"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service